नईदिल्ली I मुंबई बम ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन की कब्र की सजावट को लेकर विवाद शुरू है. अगर एक लाइन में विवाद के मुद्दे के बारे में बताएं तो बीजेपी का कहना है कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली ठाकरे सरकार ने 2020-21 में उसकी कब्र को मजार की तरह सजने दिया. आदित्य ठाकरे का कहना है कि याकूब के शव को उसके परिवार को सौंपना ही नहीं था. बीजेपी ने ऐसा कर के कब्र को क्यों बनने दिया? इस बीच यह बता दें कि याकूब की कब्र ‘मुंबई का बड़ा कब्रिस्तान’ में है. यहीं दाऊद इब्राहिम का आधा खानदान दफन है.
मुंबई का पहला डॉन हाजी मस्तान भी यहीं दफन है. दाऊद इब्राहिम के पिता, मां, भाई, बहन और बहनोई यहीं मौत के बाद अपनी-अपनी कब्रों में सुकून की नींद सो रहे हैं. लेकिन उनको लेकर विवाद खड़ा नहीं हुआ. याकूब मेमन की कब्र पर विवाद इसलिए खड़ा हुआ क्योंकि पाकिस्तान के करांची में बैठे उसके भाई टाइगर मेमन के नाम की धमकी कब्रिस्तान से जुड़े पूर्व ट्रस्टी को दी गई कि वो इस कब्र का स्पेशल तरीके से सजने दें, वरना उन्हें दुनिया से गायब कर दिया जाएगा. इसके बाद याकूब की कब्र का डेकोरेशन हुआ.ऐसे में क्या आप यह जानना नहीं चाहेंगे कि मुंबई के पहले डॉन हाजी मस्तान की कब्र का क्या हाल है? दाऊद इब्राहिम के खानदान के लोगों की कब्रों का क्या हाल है?
दाऊद के रिश्तेदारों की कब्र पर नहीं बवाल, तो याकूब की कब्र पर क्यों सवाल?
दाऊद इब्राहिम के पिता इब्राहिम कासकर, मां अमीना बी, उसकी बहन हसीना पारकर, बहनोई इब्राहिम पारकर की कब्रें भी यहीं है. दाऊद के भाई शब्बीर की कब्र भी यहीं है जिसकी हत्या गैंगवार में करीम लाला के लोगों ने कर दी थी. इनमें से किसी की भी कब्र को मजार की तरह संगमरमर की दीवारों से नहीं घेरा गया है. खासतौर से लाइटिंग की व्यवस्था नहीं की गई है. याकूब की कब्र सजाई गई, उसे मजार की शक्ल देने की कोशिश की गई, इसलिए बवाल हो गया. दाऊद के रिश्तेदारों की कब्रें बिलकुल सादी हैं, उन्हें सजाया नहीं गया है.
कब्रें सजाने का रिवाज नहीं, इसलिए दाऊद के रिश्तेदारों की कब्रें खास नहीं
इस्लाम में इस तरह से कब्रों को सजाने का कोई रिवाज नहीं है. इस्लाम में राजा और फकीर अल्लाह के सामने एक जैसे हैं. इसलिए सबकी कब्रें एक जैसी होनी चाहिए. लेकिन हिंदुस्तान-पाकिस्तान-बांग्लादेश में जो इस्लाम फैला उसमें सूफियों, पीरों और फकीरों की कब्रों को खास इज्जत देने के लिए मजार की शक्ल देने का रिवाज पैदा हो गया. बड़ा कब्रिस्तान के एक मेंबर जजिल नवराने से हमने फोन पर बात की तो उन्होंने यही बताया कि पर्सनल कैपेसिटी से लोग अपने रिश्तेदारों की कब्रें सजाते हैं, इसका कोई धार्मिक आधार नहीं है.
दाऊद के रिश्तेदारों की सादी हैं कब्रें, फिर याकूब की कब्र पर क्यों सजावटें
लेकिन कब्रिस्तान के ट्रस्टियों का कहना है कि उनकी ओर से किसी देशद्रोही की कब्र के लिए सजावट का इंतजाम ना किया गया है, ना किया जाएगा. मीडिया में जो सजावट किए जाने की बात कही जा रही है, वो हैलोजेन लाइटें शबे बारात के लिए लगाई गई थीं, ना कि याकूब मेमन की कब्र को सजाने के लिए. अगर टाइगर मेमन की धमकी से डर कर सजावट की जाती तो दाऊद इब्राहिम के रिश्तेदारों की कब्रें भी सजाई जा सकती थीं.
दाऊद के अपनों की कब्रें सजी हुई नहीं, लेकिन डॉन की पसंद का कब्रिस्तान है यही
कहा जाता है कि दाऊद इब्राहिम आज भले ही पाकिस्तान के करांची में रह रहा है लेकिन वह अपने बाकी रिश्तेदारों को भी मरने के बाद यहीं दफनाए जाने की चाहत रखता है. इसकी एक खास वजह है. दाऊद इब्राहिम के मूल गांव से इस कब्रिस्तान का नाता है. दाऊद इब्राहिम एक कोंकणी मुसलमान है. महाराष्ट्र के कोंकण में उसका मूल गांव है. दरअसल भारत के सबसे बड़े कब्रिस्तानों में से एक यह बड़ा कब्रिस्तान एक कोंकणी मुस्लिम व्यापारी ने खास कर कोंकणी मुस्लिमों की कब्रें तैयार करने के लिए ही खरीदी थीं और फिर इसे कब्रिस्तान बनाने के लिए दान कर दिया था.
बेहद खास इसकी पहचान, इसलिए डी कंपनी का है यह पसंदीदा कब्रिस्तान
मुंबई के जिस व्यापारी ने यहां जमीनें कब्रिस्तान बनाने के लिए दान की, उनका नाम नाखुदा मोहम्मद अली रोघे था. मुंबई के मरीन लाइंस में 7.5 एकड़ में फैला यह कब्रिस्तान दो जमीनों को मिलाकर बनाया गया है एक 1829 में पारसी विधवा से और दूसरी जमीन 1832 में एक पारसी व्यापारी से खरीदी गई थी. 26 हजार 620 रुपए और 32 हजार 251 रुपए में सौदा हुआ था. इस कब्रिस्तान में 7000 कब्रे हैं. इस कब्रिस्तान के एक तरफ चंदनवाड़ी हिंदू श्मशान घाट है तो दूसरी तरफ पारसी समुदाय के लोगों का अंतिम संस्कार किए जाने की जगह है.
भविष्य के लिए यहां जमीनें करना चाहता है रिजर्व, क्या दाऊद यह करता है डिजर्व?
सवाल यहां यह खड़ा होता है कि अगर दाऊद इब्राहिम हिंदुस्तान लौट पाया तो क्या उसकी अपनी और उसके अपनों की कब्रें यहां बने, उसकी यह चाहत पूरी हो सकेगी? इसका जवाब साफ तौर से ना है. दरअसल कई कब्रिस्तानों में एक व्यवस्था है, जिसे ‘ओटा’ कहते हैं. इस सिस्टम के तहत कोई परिवार चाहे तो पहले से ही आने वाले समय के लिए अपने रिश्तेदारों के नाम पर जमीन रिजर्व कर सकता है. ऐसे कई परिवार होते हैं जो अपने सभी रिश्तेदारों को एक दूसरे के आस-पास ही दफनाना चाहते हैं.
लेकिन मुंबई के बड़ा कब्रिस्तान में यह व्यवस्था जमीन की कमी होने की वजह से 1984 में ही खत्म कर दी गई है और इस बारे में बड़ा कब्रिस्तान से जुड़ा बॉम्बे जुम्मा मस्जिद ट्रस्ट इसकी सूचना समय-समय पर देता रहा है. यही वह वजह है जिससे दाऊद इब्राहिम या और भी कोई चाहे तो अपने रिश्तेदारों के लिए एडवांस में यहां कब्रें तैयार करने के लिए जमीन बुक नहीं कर सकता.
यहां दफन हैं बालीवुड की हस्तियां- नरगिस, श्यामा, सुरैया…
आखिर में यह भी बताते चलें कि मुंबई का यह बड़ा कब्रिस्तान कई बॉलीवुड से जुड़ी हस्तियों की कब्रों का भी स्थान है. यहीं संजय दत्त की मां नरगिस दत्त दफन हैं. यहीं पर अभिनेत्री सुरैया और श्यामा दफन हैं. मशहूर फिल्म डायरेक्टर महबूब खान की कब्र भी यहीं है.