नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रविधान करने वाले कानून की तरफदारी करते हुए कहा कि यह आरक्षण का एक नया प्रकार है जो एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण से अलग है। यह एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण को कम या खत्म नहीं करता। यह भिन्न श्रेणी है और आरक्षण की अधिकतम 50 प्रतिशत सीमा का हनन नहीं करता। इसलिए संविधान के मूल ढांचे के उल्लंघन का सवाल ही नहीं उठता।
केंद्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल (एजी) केके वेणुगोपाल ने कहा कि एससी-एसटी को आरक्षण का भरपूर लाभ मिल रहा है, ईडब्ल्यूएस आरक्षण से उनके लाभ खत्म नहीं होते। सुप्रीम कोर्ट में बहुत सी याचिकाएं लंबित हैं जिनमें ईडब्ल्यूएस आरक्षण का प्रविधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन कानून को चुनौती दी गई है। प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ आजकल मामले पर सुनवाई कर रही है। मंगलवार को याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस पूरी होने के बाद अटार्नी जनरल ने पक्ष रखना शुरू किया।
अटार्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि एससी-एसटी, ओबीसी प्रत्येक में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग शामिल हैं। जबकि सामान्य वर्ग में एक वर्ग ऐसा है जो बहुत गरीब है। इसलिए यह कानून उस वर्ग के लिए सकारात्मक कदम की बात करता है। इसमें सरकार को उस गरीब वर्ग को आरक्षण देने की शक्ति दी गई है जिसे मौजूदा आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है। वेणुगोपाल ने कहा कि आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा क्यों तय की गई है? यह इसलिए है क्योंकि अगर 50 प्रतिशत की सीमा पार की जाएगी तो उसका परिणाम होगा कि सामान्य वर्ग और ज्यादा कम होता जाएगा। तमिलनाडु में 69 प्रतिशत आरक्षण है। इससे सामान्य वर्ग जिसकी जनसंख्या ज्यादा है, उसे कम मिलेगा।
देश में गरीबों की संख्या पर चर्चा
एजी: देश में कुल गरीबों की जनसंख्या 25 प्रतिशत है
कोर्ट: इसमें सामान्य वर्ग के कितने हैं?
एजी: कुल जनसंख्या में 18.2 प्रतिशत सामान्य वर्ग के गरीब हैं, जो करीब 35 करोड़ हैं
कोर्ट: यह आंकड़ा 2001 की जनगणना का है या 2011 की जनगणना का
एजी: 2011 का
कोर्ट: इसे 11 साल हो चुके हैं, यह अपडेट नहीं है
एजी: नीति आयोग की 2021 की रिपोर्ट भी है और मुझे नहीं लगता कि आयोग गरीबी का आंक़़डा ब़़ढाकर बताएगा