नईदिल्ली I राजस्थान कांग्रेस का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चाहते हैं कि कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व राहुल गांधी करें, लेकिन गांधी परिवार अगले कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में गहलोत को देखना चाहता है. चक्कर है कि गहलोत सीएम की कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते. अगर उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बना भी दिया जाता है तो वह कांग्रेस अध्यक्ष पद के साथ अपनी सीएम की कुर्सी भी बरकरार रखने की चाहत रखते हैं.
हालांकि कुछ दूसरे नेता भी दोनों पदों पर नजरें गड़ा कर होड़ में लगे हैं. अगर गहलोत दिल्ली चले जाते हैं तो निसंदेह सचिन पायलट मुख्यमंत्री की कुर्सी लेना चाहेंगे. चर्चा में राजस्थान के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में वहां के विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी का नाम भी चल रहा है. मगर गहलोत ऐसा होने देना नहीं चाहेंगे. केंद्रीय स्तर पर शशि थरूर को पार्टी के शीर्ष पद पर अपनी उम्मीदवारी के लिए गांधी परिवार से हरी झंडी मिल चुकी है. कांग्रेस किस ओर जाती दिख रही है? यह कोई नहीं जानता.
कौन हैं सीपी जोशी?
गहलोत ने अपने दो सबसे मजबूत प्रतिद्वंद्वियों सचिन पायलट और सीपी जोशी को मुख्यमंत्री पद के आसपास भी फटकने नहीं दिया है, जो उनके लिए एक बड़ी उप्लब्धि है. 72 साल के जोशी पायलट और गहलोत दोनों के सामने डटे हैं. जुलाई 2020 में जब पायलट अपने वफादार विधायकों के साथ अलग हो गए, तब राज्य की कांग्रेस इकाई में विद्रोह हो गया. ऐसे वक्त गहलोत ने जोशी को मंत्री नहीं बल्कि विधानसभा अध्यक्ष बनाने का फैसला किया. उस समय इसका उद्देश्य पायलट समर्थक विधायकों को अयोग्य घोषित करवाना था. जोशी इस तरह की कठोर कार्रवाई के लिए मुख्य व्यक्ति होते. मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं और जोशी जहां थे, वहीं पड़े रह गए.
जोशी को 2008 राजस्थान विधानसभा चुनाव जीतने के लिए पार्टी को एकजुट करने का श्रेय भी दिया जाता है. तब वह सीएम पद के प्रबल दावेदार थे. हालांकि, वह अपनी ही नाथद्वारा सीट से भाजपा के कल्याण सिंह चौहान से एक वोट से हार गए. एक वोट से विधानसभा चुनाव हारने वाले भारतीय चुनावी इतिहास में वह दूसरे शख्स हैं. 2009 के आम चुनाव के बाद उन्हें मनमोहन सिंह सरकार के यूपीए-2 में कैबिनेट मंत्री नियुक्त किया गया. वैसे तो जोशी गांधी परिवार के वफादार हैं, मगर गहलोत के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा है.
पायलट कैंप ने गतिविधियां तेज कीं
जहां तक पायलट खेमे की बात है तो पिछले हफ्ते का एक वाक्या याद करने लायक है. 12 सितंबर को राजस्थान के खेल मंत्री अशोक चंदना को अजमेर में पायलट समर्थकों ने घेर लिया. रिपोर्ट में कहा गया कि जैसे ही चंदना भाषण देने के लिए मंच पर पहुंचे, भीड़ के एक हिस्से ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया और जूते और बोतलों की मंच पर बौछार कर दी. वह पायलट समर्थक नारे भी लगा रहे थे. गुर्जर नेता चंदना ने बाद में एक बयान जारी किया और पायलट को खुलकर सामने आकर सीधी लड़ाई की चुनौती दी और कहा कि उनमें से कोई एक ही इस द्वंद में बचेगा.
7 सितंबर को पायलट के जन्मदिन पर जयपुर में 21 विधायकों और मंत्रियों ने शक्ति प्रदर्शन में हिस्सा लिया. कई सचिन समर्थक मांग करते रहे हैं कि उन्हें राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया जाए. दिलचस्प बात यह है कि पायलट ने कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव और गहलोत को वह पद मिलने के अनुमान पर चुप्पी साध रखी है.
राजनीतिक खेल करने के लिए मशहूर गहलोत ने अपनी तरफ से कांग्रेस अध्यक्ष पद से खुद को दूर रखने की कोशिश की है. उन्होंने राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी से राहुल गांधी को अध्यक्ष पद के लिए नामित करने के लिए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करवा लिया. हालांकि, राहुल ऐसे प्रस्तावों को 2019 के बाद से ही अस्वीकार करते आ रहे हैं.
अब आगे क्या?
ऐसी पार्टी में जहां हर महत्वपूर्ण निर्णय ‘हाईकमान’ (गांधी परिवार) पर छोड़ दिया जाता है, इस तरह का भ्रम पार्टी को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा में भारी पड़ सकता है.