नईदिल्ली I बिलकिस बानो केस के दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया है. दोषियों ने कोर्ट में कहा कि उन्हें रिहा किया जाना “उचित” है. इसके साथ ही दोषियों ने गुजरात राज्य सरकार के उन नियमों का हवाला दिया और कहा कि नियम दोषियों की रिहाई की इजाजत देते हैं. दोषियों ने कहा कि गुजरात राज्य के नियम, जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक हैं जो गैंगरेप, हत्या के दोषियों की रिहाई की अनुमति देते हैं. सुप्रीम कोर्ट में टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और सीपीआई-एम नेता सुभाषिनी अली ने एक याचिका दायर की थी, जिसपर दोषियों ने कहा कि उनका एससी में याचिका दायर करने का कोई लोकस नहीं बनता.
वहीं एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि आपराधिक मामलों में तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले की सुनवाई में गुजरात सरकार को दोषियों की रिहाई के मामले में जवाब देने के लिए दो सप्ताह का समय दिया था. सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में टीएमसी सांसद ने महुआ मोइत्रा ने कहा था कि 11 दोषियों की रिहाई, “सामाजिक या मानवीय न्याय को मजबूत करने में पूरी तरह से विफल है.”
1992 की नीति के तहत रिहाई आदेश
कोर्ट में दोषियों की रिहाई पर सवाल उठाते हुए सीपीआई एम नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार और फिल्म मेकर रेवती लौल और पूर्व दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर और कार्यकर्ता रूप रेखा वर्मा ने भी याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि गुजरात सरकार ने 1992 की नीति के आधर पर दोषियों को रिहा कर दिया, जबकि 2014 की नई नीति को नजरअंदाज किया गया, जिसमें गैंगरेप और गंभीर अपराधों के आरोपियों की रिहाई पर रोक है. बिलकिस बानो के परिवार के सात सदस्यों के सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा पाने वाले 11 दोषियों को पिछले महीने रिहा कर दिया गया था.
6000 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट को लिखी चिट्ठी
इन दोषियों ने 15 साल से अधिक जेल की सजा काट ली थी, जिसके बाद उनमें से एक ने अपनी समय से पहले रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. दोषियों की रिहाई की बड़े स्तर पर आलोचना हुई थी और गुजरात सरकार के आदेश पर सवाल भी खड़े किए गए. रिहाई के खिलाफ कार्यकर्ताओं और इतिहासकारों समेत 6000 से ज्यादा लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से मामले में दोषियों की रिहाई को जल्द रद्द करने की मांग की थी.