छत्तीसगढ़

मुस्लिम सर्वे के खिलाफ हिंदू महासंघ जाएगा कोर्ट, कहा- उनके पिछड़ने में हमारा क्या दोष?

नईदिल्ली I महाराष्ट्र सरकार द्वारा करवाए जा रहे मुस्लिम सर्वे के खिलाफ हिंदू महासंघ कोर्ट जाने की तैयारी कर रहा है. हिंदू महासंघ ने सवाल किया है कि अगर घोड़ा पानी नहीं पी रहा है तो इसमें पानी का क्या दोष है? यानी अगर मुस्लिम पिछड़ रहे हैं तो इसमें बहुसंख्यकों का क्या दोष है? पुणे स्थित हिंदू महासंघ के अध्यक्ष आनंद दवे का कहना है कि आगे बढ़ने के लिए सबको समान अवसर है, फिर भी किसी को प्रगति के रास्ते में जाने की बजाए धर्म ज्यादा अहम नजर आता है तो परिणाम के लिए वो खुद जिम्मेदार है.

हिंदू महासंघ की ओर से आनंद दवे ने कहा कि एतराज इस बात पर है कि इसके लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा जनता के करोड़ों रुपए खर्च करने की क्या दरकार है?दो दिन पहले महाराष्ट्र सरकार ने मुस्लिम समाज के लिए एक बड़ा फैसला लिया था. इस फैसले के तहत मुस्लिम समाज की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक परिस्थियों का सर्वे करवाया जाएगा. महाराष्ट्र सरकार ने सर्वे कराने के लिए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज संस्था (TISS) को 34 करोड़ का ठेका दे दिया. इसके तहत 56 ऐसे शहरों में सर्वे किया जाएगा जहां मुसलमानों की तादाद ज्यादा है. इसमें पता लगाने की कोशिश की जाएगी कि राज्य के मुस्लिम अगर पिछड़े हैं तो क्यों हैं और उन्हें आगे लाने के लिए और समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए क्या कोशिशें की जाएं.

‘मुस्लिम पिछड़े तो जिम्मेदार हिंदू कैसे? फिर क्यों बर्बाद किए जा रहे जनता के पैसे?’

महाराष्ट्र सरकार द्वारा साल 2013 में नियुक्त महमूद-उर-रहमान की अध्यक्षता वाली कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर नई रिपोर्ट सबमिट किए जाने के लिए अब एक नया आदेश जारी किया गया है. इस पर हिंदू महासंघ के प्रेसिडेंट आनंद दवे ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ़ कोर्ट जाने की बात कही है. आनंद दवे ने सवाल उठाया कि क्या यही एक समाज पिछड़ा हुआ है? और क्या उसके जिम्मेदार बहुसंख्यक हैं?

75 साल बाद भी वे आगे नहीं आ पाए तो नुकसान बहुसंख्यक क्यों उठाए?’

मुस्लिम समाज के सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक विकास की स्टडी करने के लिए सरकार ने एक निजी कंपनी को क़रीब 34 करोड़ रूपए का ठेका दिया. मुस्लिमों को मुख्यधारा में लाने के लिए भी सरकार ने सुझाव मांगे गए हैं.इसका मतलब तो यही हुआ कि 75 साल बाद भी यह समाज मुख्य धारा में नही आ पाया.

घोड़े को पानी नहीं पीना तो पानी का क्या दोष?

आनंद दवे कहते हैं कि विकास उन तक नहीं पहुंचा और वे विकास तक नहीं पहुंचे. वास्तव में उनके नेता ही नहीं, बल्कि वे भी सोचते हैं कि प्रगति से ज्यादा मजहब अहम है. अगर उन्हें खुद को बदलने की बजाय बहुसंख्यक लोगों के खिलाफ लड़ना पसंद हैं, तो कोई क्या कर सकता है ? अगर घोड़े को पानी नहीं पीना है, तो पानी का क्या दोष?

मुस्लिम सर्वे का सरकार को क्या अधिकार? सभी समाज के सर्वे से क्यों इनकार?

हिंदू समाज यह सवाल भी उठा रहा है कि सरकार किस अधिकार के तहत यह फैसला ले रही है. और अगर सरकार ने सर्वे करवाने की पहल की ही है तो सभी समाज का सर्वे क्यों नहीं किया जा रहा है.अगर ऐसा होगा तो पता चलेगा कि किसे कितना हक मिलना चाहिए और कहां-कहां, कैसे-कैसे मिलना चाहिए. लेकिन यह सोचना कि केवल एक समुदाय ही गरीब है और उसके लिए सब कुछ किया जा रहा है, तो यह हिंदू महासंघ बर्दाश्त नहीं करेगा. आनंद दवे ने कहा कि हमारे वकील इसका अध्ययन कर रहे हैं और हम जल्द ही उच्च न्यायालय में याचिका दायर करेंगे.