छत्तीसगढ़

Death in Space: अंतरिक्ष में मरने पर क्या होता है, कैसी होती है डेड बॉडी की हालत?

नईदिल्ली I स्पेस ट्रैवल यानी अंतरिक्ष की यात्रा अब कोई बड़ी बात नहीं रह गई है. ब्लू ओरिजिन, वर्जिन गैलेक्टिक जैसी कंपनियां लोगों को अंतरिक्ष की यात्रा करा रही हैं. एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स मंगल ग्रह पर बेस बनाने की तैयारी कर रहा है. जल्द ही धरती की निचली कक्षा यानी 500 किलोमीटर तक यात्राएं बेहद सामान्य और आसान हो जाएंगी. लेकिन कभी सोचा है कि अगर अंतरिक्ष में मौत हो जाए तो क्या होगा? शरीर के साथ क्या होता है? एस्ट्रोनॉट्स या अंतरिक्षयात्री के मृत शरीर को वापस लाया जाता है क्या?

स्पेस में आज तक सिर्फ एक ही ऐसी घटना घटी है. ये बात है 30 जून 1971 की. सोयूज-11 स्पेस स्टेशन से तीन हफ्ते बाद अलग होकर धरती पर लौटने वाला था. स्पेस स्टेशन से कैप्सूल अलग हुआ. उसमें तीन रूसी कॉस्मोनॉट – जियोर्जी डोब्रोवोलस्की, विक्टर पातासायेव और व्लादिसिलाव वोल्कोव थे. कैप्सूल केबिन का वेंट वॉल्व निकल गया. कैप्सूल के अंदर की सारी ऑक्सीजन खत्म हो गई. तीनों मारे गए. अंतरिक्ष में ऐसा पहली और आखिरी बार हुआ था. लेकिन इनके शरीर का क्या हुआ. उन्हें लाया गया या नहीं वो आजतक नहीं पता.

धरती पर इंसानी शरीर को मरने के बाद डिकंपोज होने के कई तरीके हैं. शरीर का अंतिम संस्कार भी किया जाता है. मृत शरीर के साथ अंतिम क्रिया को लेकर कई तरह की परंपराएं हैं. 1247 में सॉन्ग सी की पहली फोरेंसिक साइंस हैंडबुक आई थी. जिसका नाम था द वॉशिंग अवे ऑफ रॉन्ग्स. जिसमें शरीर के खत्म होने की कई प्रक्रियाएं लिखी हुई थीं. सबसे पहले शरीर से खून का बहाव रुकता है. गुरुत्वाकर्षण की वजह से खून एक जगह जमा होने लगता है. इसे कहते लिवर मॉर्टिस.

फिर शरीर ठंडा पड़ने लगता है, इसे कहते हैं अल्गोर मॉर्टिस. फिर शुरू होता है मांसपेशियों का कड़ा यानी सख्त होना. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर में मौजूद कैल्सियम मांसपेशियों के फाइबर्स को जकड़ने लगता है. इसे कहते हैं रिगोर मॉर्टिस. इसके बाद शरीर में मौजूद एंजाइम और प्रोटीन्स शरीर की कोशिकाओं से बाहर निकलने लगते हैं. उसी वक्त आंतों में मौजूद बैक्टीरिया बाहर आ जाते हैं, पूरे शरीर में फैल जाते हैं. ये नरम ऊतकों को खाना शुरू कर देते हैं. यानी गंध आने लगती है. शरीर से गैसें निकलने लगती है. शरीर फूल जाता है.

रिगोर मॉर्टिस तब तक चलता है जब तक मांसपेशियां पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाती. जब तक नरम ऊतक पूरी तरह से बैक्टीरिया खत्म नहीं कर देते. तब तक शरीर से बद्बू आती रहती है. ये होती है शरीर के खत्म होने की प्रक्रिया. इसके पीछ वातावरण, तापमान, आसपास मौजूद कीड़ों की गतिविधियां, दफनाने जैसी प्रक्रियाएं भी जिम्मेदार होती हैं. लेकिन ये काम अंतरिक्ष में नहीं होता. अंतरिक्ष में शरीर के साथ अलग स्थितियां बनती हैं. वहां शुरू हो जाता है ममीफिकेशन.

ममीफिकेशन यानी शरीर का सूख जाना. यह बेहद गर्म या अत्यधिक ठंडे में होता है. ऐसी जगहों पर जहां ऑक्सीजन नहीं होता. शरीर का पानी अंदर जमा फैट को तोड़ देता है. जो शरीर से बाहर आकर उसके चारों तरफ मोम जैसी परत बना देता है. ये मोम की परत शरीर की त्वचा को खराब होने से रोक देती है. स्किन सड़ती नहीं. इसके अलावा एक काम और होता है. नरम ऊतक खत्म हो जाते हैं. हड्डियां दिखने लगती हैं. लेकिन सख्त ऊतक हजारों सालों तक वैसे ही रह सकते हैं.

अलग-अलग ग्रहों पर ग्रैविटी का लेवल विभिन्न है. इसकी वजह से मृत शरीर का पहला स्टेज यानी लिवर मॉर्टिस प्रभावित होता है. बिना ग्रैविटी के खून शरीर में एक जगह पर जमा नहीं होता. वह बहता ही नहीं है. पूरे शरीर में फैला रहता है. स्पेससूट के अंदर रिगर मॉर्टिस होता है. क्योंकि वह शरीर के अंदर होने वाली रसायनिक प्रक्रिया की शुरुआत है. आंतों में मौजूद बैक्टीरिया अंतरिक्ष में भी आपके शरीर के नरम ऊतकों को खाती है. लेकिन शरीर के अंदर मौजूद बैक्टीरिया को सही से काम करने के लिए ऑक्सीजन चाहिए होता है. कम ऑक्सीजन या नहीं के बराबर होने पर बैक्टीरिया का काम प्रभावित होता है. रिगर मॉर्टिस की प्रक्रिया धीमी हो जाती है.

जमीन पर मौजूद सूक्ष्मजीव शरीर को खत्म करने में मदद करते हैं. लेकिन अंतरिक्ष में ऐसा नहीं होता. इसलिए स्पेस में नरम ऊतक भी सही सलामत रहते हैं. जब हम जिंदा होते हैं, तब हमारी हड्डियां दो चीजों से बनी होती है. ऑर्गेनिक यानी खून की नलियां और कोलेजन. इनऑर्गेनिक यानी क्रिस्टल स्ट्रक्चर. लेकिन शरीर खत्म होने के बाद हड्डियां धरती पर इनऑर्गेनिक स्वरूप में रहती हैं. जैसे- हम किसी लैब में रखे हुए कंकाल को देखते हैं. धरती पर किसी शरीर का गलना, सड़ना और खत्म होना प्राकृतिक संतुलन के लिए जरूरी होता है.

सौर मंडल के अन्य ग्रहों पर ऐसा नहीं है. वहां कीड़े और शरीर खाने वाले जीव नहीं है. यानी मंगल ग्रह पर कोई मरता है तो उसका शरीर गलेगा नहीं. सड़ेगा नहीं. लेकिन तेजी से चलने वाली हवाओं और पत्थरों की रगड़ से शरीर खराब होगा. हड्डियां चूर-चूर हो सकती है. शरीर ममी बन जाएगा. चंद्रमा पर तापमान माइनस 120 से 170 डिग्री सेल्सियस तक रहता है, ऐसे में शरीर जम जाएगा. पत्थर बन जाएगा. अंदर से थोड़ा बहुत सड़ सकता है, लेकिन बाहर से सड़ना मुश्किल है.