नई दिल्ली। अफ्रीकी देश गांबिया में 66 बच्चों की मौत के पीछे भारत से सप्लाई किए गए कफ सीरप की आशंका को केंद्र सरकार ने गंभीरता से लिया है। एक तरफ जहां सरकार कफ सीरप सप्लाई करने वाली आरोपित कंपनी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित कर रही है, वहीं इसकी सच्चाई की तह तक जाने की भी कोशिशें तेज हो गई हैं। दरअसल, बार-बार मांगे जाने के बावजूद इस मामले में डब्ल्यूएचओ की ओर से विस्तृत रिपोर्ट नहीं मिली है। इसे लेकर भी चिंता है।
कंपनी की गलती से भारत की छवि को लग सकता है धक्का
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भारत दुनिया का फार्मेसी हब है और 190 देशों में 24.5 अरब डालर की दवाओं का निर्यात करता है। किसी भी एक कंपनी की गलती से भारत की छवि को धक्का लग सकता है। इसीलिए 29 सितंबर को डब्ल्यूएचओ की ओर से शिकायत मिलने के तत्काल बाद ही सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गेनाइजेशन (SDSCO) ने हरियाणा के राज्य ड्रग कंट्रोलर के साथ मिलकर कफ सीरप सप्लाई करने वाली कंपनी मेडिन फार्मास्यूटिकल्स की इकाई की पड़ताल की और गांबिया भेजे गए कफ सीरप के सैंपल को चंडीगढ़ स्थित रिजनल ड्रग टेस्टिंग लैब में जांच के लिए भेज दिया। नियम के मुताबिक सभी दवा उत्पादक कंपनियों के सप्लाई की गई दवा का सैंपल सुरक्षित रखना होता है। लैब की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। यही नहीं, जांच पूरी होने तक मेडिन फार्मास्युटिकल्स में सभी दवाओं के निर्माण पर रोक लगा दी गई है।
पूरे मामले की जांच के लिए चार सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति गठित
अधिकारी ने कहा कि कंपनी के दोषी पाए जाने पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी। स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि डब्ल्यूएचओ ने अभी तक गांबिया में 66 बच्चों की मौत के लिए सीधे तौर पर मेडिन फार्मास्यूटिकल्स के कफ सीरप को जिम्मेदार नहीं ठहराया है। सिर्फ इसकी आशंका जताई है। SDSCO ने WHO को दो बार पत्र लिखकर हर बच्चे की मौत की असली वजह की रिपोर्ट मांगी है। लेकिन अभी तक यह नहीं मिली है। इसके बावजूद सरकार ने पूरे मामले की जांच के लिए स्टैंडिंग नेशनल कमेटी आन मेडिसिन्स के उपाध्यक्ष डाक्टर वाईके गुप्ता के नेतृत्व में चार सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया है। नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलाजी, पुणे के डाक्टर प्रज्ञा डी यादव, नेशनल सेंटर फार डिजीज कंट्रोल, नई दिल्ली के डाक्टर आरती बहल और सीडीएससीओ के ज्वाइंड ड्रग्स कंट्रोलर एके प्रधान को इसका सदस्य बनाया गया है। उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ने पर टीम गांबिया भी जा सकती है।
एक ही बैच में बनी दवा के कुछ सैंपलों में ही गड़बड़ी कैसे
गांबिया में बच्चों की मौत की असली वजह का पता लगाए बिना मेडिन फार्मास्यूटिकल्स के कफ सीरप को जिम्मेदार ठहराने की डब्ल्यूएचओ की हड़बड़ी पर भी संदेह है। खुद डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार कफ सीरप के 23 सैंपल में से 19 सही पाए गए और केवल चार में ही डाईइथीलिन ग्लाइकोल या इथीलिन ग्लाइकोल की मात्रा ज्यादा पाई गई। सिर्फ चार सैंपल में गड़बड़ी होना आशंका को और गहरा करता है क्योंकि मेडिन फार्मास्यूटिकल्स ने जो कफ सीरप सप्लाई किया था, उसे सिर्फ एक बैच में ही बनाया गया था। एक ही बैच में बनाई गई दवा में कुछ सैंपल में गड़बड़ी कैसे आ सकती है। जाहिर है कि इसकी गहराई से जांच की जरूरत है। यह भी स्पष्ट नहीं हुआ है कि गांबिया ने उपयोग से पहले दवा की इस खेप की जांच की थी या नहीं।
भारत में नहीं इन सीरप को बेचने की मंजूरी
स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने गांबिया भेजे गए कफ सीरप के भारत में बिकने की आशंका को सिरे से खारिज कर दिया। उनके अनुसार जिस फार्मूलेशन के कफ सीरप को गांबिया में आर्डर दिया था, उसे भारत में बेचे जाने की मंजूरी ही नहीं है। उनके अनुसार यह फार्मूलेशन काफी पुराना है और दुनिया के कई देशों में इसकी मंजूरी मिली हुई है। इसी कारण इसके बनाने के लिए ड्रग्स कंट्रोलर जनरल आफ इंडिया से इजाजत लेने की जरूरत नहीं थी। इसे सिर्फ गांबिया में निर्यात करने के लिए ही बनाया गया था।