छत्तीसगढ़

नहीं पलटे जाएंगे ताजमहल के इतिहास के पन्ने, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की जनहित याचिका

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक याचिका ठंडे बस्ते में डाल दी। इसमें ताजमहल के इतिहास के तथ्यों की जांच के साथ परिसर में बने 22 कमरों को खोलने की अपील की गई थी। जस्टिस एमआरशाह और एमएम सुंदरेश की बेंच ने मामले में सुनवाई की और इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश में दखल से इनकार कर दिया। हाई कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दी थी।

रजनीश सिंह ने दायर की थी याचिका 

बेंच ने कहा, ‘हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करने में गलती नहीं की थी। यह जनहित याचिका से कहीं ज्यादा है। याचिका खारिज।’ हाई कोर्ट ने 12 मई को कहा कि याचिकाकर्ता रजनीश सिंह अपने वैध व संवैधानिक अधिकारों के हनन के बारे में बताने में असफल रहे। रजनीश सिंह अयोध्या भाजपा ईकाई के मीडिया इनचार्ज हैं।

दावा- पहले भगवान शिव का मंदिर था ताजमहल 

अनेक हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों का पहले से ही दावा रहा है कि मुगल काल में बना मकबरा भगवान शिव का मंदिर था। इस स्मारक के संरक्षण का कार्यभार ASI (Archaeological Survey of India) के पास है।

सुप्रीम कोर्ट ने 26 सितंबर को ताजमहल की 500 मीटर की परिधि में व्यावसायिक गतिविधियों पर रोक लगाने का आदेश किया था। इसके लिए ताजमहल पश्चिमी गेट मार्केट एसोसिएशन की ओर से जनहित याचिका दायर की गई थी। इसके अनुपालन में एडीए ने 17 अक्टूबर तक का समय 500 मीटर की परिधि के लोगों को व्यावसायिक गतिविधियां बंद करने के लिए दिया था।

दशकों से बंद है परिसर में मौजूद 22 कमरे

कमरों को इसलिए खुलवाने की याचिका है ताकि इसके भीतर देवी देवता की मूर्ति या किसी तरह के शिलालेख के मौजूद होने का पता चल सके। ताजमहल परिसर में मौजूद कुल 22 कमरे दशकों से बंद हैं।