नई दिल्ली। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्लूएस) को सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की वैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट जल्द फैसला सुना सकता है। इस मामले की सुनवाई करने वाली पीठ के अध्यक्ष प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित आठ नवंबर को सेवानिवृत हो रहे हैं उनकी सेवानिवृति से पहले फैसला आने की उम्मीद है। पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने साढ़े छह दिन चली लंबी सुनवाई के बाद 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाओं में आर्थिक आधार पर आरक्षण को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ बताते हुए इसे रद करने की मांग है।
सुप्रीम कोर्ट ने शुरुआत में ही विचार के लिए तय किये थे संवैधानिक सवाल
हालांकि सरकार ने कोर्ट में कानून की तरफदारी करते हुए कहा था कि अति गरीबों को आरक्षण का प्रविधान करने वाला कानून संविधान के मूल ढांचे को मजबूत करता है। आर्थिक न्याय की अवधारणा को सार्थक करता है, इसलिए इसे मूल ढांचे का उल्लंघन करने वाला नहीं कहा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने शुरुआत में ही विचार के लिए संवैधानिक सवाल तय किये थे। जिसमें था कि ईडब्लूएस आरक्षण संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन तो नहीं करता और इस आरक्षण से एससी एसटी और ओबीसी को बाहर रखे जाने से मूल ढांचे का उल्लंघन तो नहीं होता। 30 अक्टूबर तक सुप्रीम कोर्ट की छुट्टी है। कोर्ट 31 अक्टूबर को खुलेगा और आठ नवंबर को फिर गुरुनानक जयंती की छुट्टी है। बीच में शनिवार और रविवार भी है। ऐसे में 31 अक्टूबर से लेकर सात नवंबर तक कुल छह कार्य दिवस बचते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के ये हैं नियम
हालांकि, छुट्टी वाले दिन विशेष कोर्ट लगा कर अगर फैसला सुनाया जाता है तो उसकी मनाही नहीं है लेकिन सामान्य तौर पर ऐसा नहीं होता। जस्टिस ललित के रिटायरमेंट से पहले फैसला आ जाएगा, ऐसा माना जा रहा है क्योंकि अगर किसी कारणवश उनकी सेवानिवृति तक फैसला नहीं आया तो तय नियम के मुताबिक मामले पर फिर से नयी संविधान पीठ गठित होगी और नये सिरे से केस पर सुनवाई करनी होगी। लिहाजा माना जा रहा है कि जल्द ही फैसला आ सकता है।
कई राज्यों ने किया EWS आरक्षण का समर्थन
इस मामले में दोनों पक्षों की ओर से करीब 20 वकीलों ने बहस की। कानून के पक्ष में केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल और सालिसिटर जनरल ने बहस की। इसके अलावा मध्य प्रदेश, गुजरात आदि कुछ राज्यों ने भी कोर्ट में ईडब्लूएस आरक्षण का समर्थन किया। केंद्र ने कानून का बचाव करते हुए दलील दी थी कि ईडब्लूएस आरक्षण नये प्रकार का एक अलग श्रेणी का आरक्षण है। इससे एससी एसटी और ओबीसी के आरक्षण पर कोई असर नहीं पड़ता क्योंकि सभी केंद्रीय शिक्षण संस्थानों को इसके लिए 25 फीसद सीटें बढ़ाने के लिए कहा गया है। यह भी दलील थी कि एससी एसटी को पहले से ही आरक्षण का भरपूर लाभ मिल रहा है।
सरकार ने कहा था कि ईडब्लूएस आरक्षण से आरक्षण की तय अधिकतम 50 फीसद की सीमा का उल्लंघन नहीं होता क्योंकि यह आरक्षण एससी एसटी और ओबीसी के लिए तय पचास फीसद आरक्षण से अलग जनरल कैटेगरी के लिए तय बाकी के पचास फीसद की कैटेगरी से दिया गया है। सरकार को आर्थिक आधार पर गरीबों को आरक्षण देने का प्रविधान करने का अधिकार है।