छत्तीसगढ़

Thank God Review: लॉजिक न ढूंढें तो फिल्म करती है एंटरटेन, चित्रगुप्त बन अजय देवगन ने गिनाए इंसानों के ऐब

मुंबई। फिल्‍म थैंक गॉड को लेकर हुए विवाद के बाद फिल्‍म में भगवान चित्रगुप्त को सीजी के तौर पर संबोधित किया गया है। यह फिल्‍म मानवता को सर्वोपरि रखने का संदेश देती है। कहानी रियल एस्‍टेट व्यवसायी अयान कपूर (सिद्धार्थ मल्होत्रा) की है, जो काली कमाई भी करता है। पुलिस में सेवारत अपनी पत्नी रूही (रकुल प्रीत सिंह) और बेटी (कियारा खन्ना) को भी समय नहीं देता है। नोटबंदी की वजह से उसे बहुत नुकसान होता है। ऐसे में वह अपना घर बेचने की कोशिश कर रहा है। इस दौरान एक कार दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो जाती है और वह स्वर्ग पहुंच जाता है। जहां सीजी के साथ ‘लाइफ ऑफ गेम’ खेलता है, जो यह तय करता है कि वह अपने कर्मों के आधार पर स्वर्ग या नर्क में जाएगा। अगर वह खेल जीतता है तो अपनी पत्नी और बेटी के पास वापस भी लौट सकता है।

लॉजिक खोजने की गलती कतई न करें

इश्‍क, मस्ती, धमाल जैसी कई कॉमेडी फिल्में बना चुके निर्देशक इंद्रकुमार ने इस बार संदेश प्रधान फिल्‍म बनाई है। उन्होंने वाइडी यानी यमदूत और चित्रगुप्त को आधुनिक समय के अनुसार दर्शाया है, जिसकी वजह भी एक सीन में स्पष्ट की गई है। हालांकि, इस कहानी में कोई लॉजिक खोजने की गलती कतई न करें। फिल्‍म को समसामयिक और दिलचस्प बनाने के लिए अजय की फिल्म ‘सिंघम’ और गेम शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ (केबीसी) का संदर्भ भी लिया गया है।

लाइफ ऑफ गेम बन सकता था रोचक

‘केबीसी’ की तर्ज पर बनाए गए ‘लाइफ ऑफ गेम’ को रोचक बनाने की भरपूर गुंजाइश थी, जिसमें लेखक और निर्देशक पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाए है। यहां पर यमदूत (महेश बलराज) के किरदार को खास महत्व नहीं दिया गया है। कहानी का काफी हिस्सा स्वर्गलोक पर आधारित है, इसलिए कंप्यूटर ग्राफिक्स का काफी उपयोग किया गया है, लेकिन यह बहुत आकर्षक नहीं बन पाया है।कर्मों का हिसाब-किताब दर्शाने के लिए कहानी कई बार फ्लैशबैक में आती-जाती है, पर उसमें प्रयुक्त प्रसंग बहुत प्रभावशाली नहीं बन पाए हैं। जबकि उन्हें दमदार बनाया जा सकता था। उदाहरण के तौर पर फिल्‍म में गुस्से के मुद्दे को उठाया है, लेकिन इसका प्रभाव अयान की वैवाहिक जिंदगी पर बिल्कुल नहीं दिखाया गया है।

फिल्म की ये बातें पचाना है मुश्किल

कामेडी हो या गंभीर किरदार अजय देवगन सभी में सहजता से ढल जाते हैं। यहां पर सीजी के तौर पर कठोर देवता के किरदार में वह जंचते हैं। हालांकि, ऐसे किरदार वह बहुत आसानी से निभा ले जाते हैं। अयान के स्वार्थी, अहंकारी स्वभाव को सिद्धार्थ मल्होत्रा ने आत्मसात करने की कोशिश की है पर कहीं-कहीं पर सही भावों को पकड़ने में वह फिसलते हुए नजर आते हैं। सही मायने में इन किरदारों पर लेखन स्‍तर पर गहनता से काम करने की जरूरत थी। बहरहाल, फिल्म बीच-बीच में हल्‍के-फुल्‍के पल लाती है, जिसमें ज्यादातर बेसिर पैर के होते हैं। पुलिस अधिकारी के किरदार में र‍कुल के हिस्से में कोई दमदार सीन नहीं आया है। अच्छे-बुरे को लेकर अयान और रूही के बीच कोई बातचीत भी नहीं है। अयान के अलावा सभी किरदारों को अच्छा बताया गया है, जो पचता नहीं है। अयान के माता पिता की भूमिका में सीमा पाहवा और कवलजीत है। मेहमान भूमिका के बावजूद वह अपना प्रभाव छोड़ते हैं। फिल्‍म में नोरा फतेही और सिद्धार्थ पर फिल्माया गाना ‘मनिके मागे हिते’ कर्णप्रिय है। गाने को श्रीलंका की गायिका योहानी ने गाया है। ये पहला मौका है जब योहानी ने अपने ही गाने को हिंदी में गाया है।