नईदिल्ली I सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया है, जिसमें दहेज प्रताड़ना के एक मामले में पति को अग्रिम जमानत की शर्त के तौर पर अलग हुई पत्नी को 10 लाख रुपये देने को कहा गया था. शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले को लेकर कहा कि इस फैसले का कोई औचित्य नहीं है. दरअसल, हाईकोर्ट ने पिछले साल यानी 2021 में (चार और पांच मार्च) अपने आदेश में पति को अपनी पत्नी के पक्ष में अंतरिम मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपये का डिमांड ड्राफ्ट जमा करने का निर्देश दिया था.
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रवि कुमार की बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा अपीलकर्ता (पति) को अग्रिम जमानत का लाभ उठाने के लिए 10 लाख रुपये का डिमांड ड्राफ्ट जमा करने के लिए कहने का कोई औचित्य नहीं है, लिहाजा अपील की इजाजत दी जाती है. पीठ ने 18 अक्टूबर को अपने आदेश में कहा था कि गैर-संज्ञेय अपराध होने की वजह से अपीलकर्ता पति ने गिरफ्तारी से पहले जमानत के लिए एक आवेदन दायर करके अदालत का दरवाजा खटखटाया था.
मतभेदों के बाद पति ने दायर किया था आवेदन
शीर्ष अदालत ने कहा कि ये मामला पति-पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद का है. उनकी शादी 11 जून 2015 को हिंदू रीति-रिवाजों और रस्मों के मुताबिक हुई थी. लेकिन बाद में मतभेदों की वजह से पति ने 8 जुलाई 2016 को शादी को खत्म करने की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया था. पत्नी ने इसको लेकर 27 जुलाई 2017 को चीफ ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट के सामने अपने पति के खिलाफ एक आपराधिक शिकायत दर्ज कराई. इस शिकायत को बाद में आईपीसी और दहेज निषेध अधिनियम के तहत, 22 फरवरी 2018 को FIR में बदल दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस आधार पर गिरफ्तारी से पहले पति को जमानत दी कि वह अपनी जमानत अर्जी में बताए अनुसार अपनी पत्नी के साथ शादीशुदा जीवन फिर से शुरू करेगा. बेंच ने कहा कि जब जमीनी हकीकत ऐसी है कि इसमें शामिल पति पत्नी वैवाहिक कलह में हैं, तो वैवाहिक अधिकारों को बहाल करने के लिए कार्यवाही शुरू करना संभव नहीं है. पीठ ने कहा, ‘हाईकोर्ट ने धारा 482 सीआरपीसी के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल किया और अपीलकर्ता पति को पत्नी को अंतरिम मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपये का डिमांड ड्राफ्ट जमा करने का निर्देश दिया.’