नईदिल्ली I ओडिशा में एक कंज्यूमर कोर्ट ने अल्ट्रासाउंड करने वाले नर्सिंग होम को एक महिला को 10 लाख रुपए देने का आदेश दिया है. नर्सिंग होम ने एक महिला का तीन बार अल्ट्रासाउंड किया लेकिन तीनों ही टेस्ट में वो भ्रूण में फिजिकल डिफोर्मिटीज का पता लगाने में विफल रहा था. इसके बाद महिला कोर्ट पहुंच गई थी और मामले में सालभर बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया और नर्सिंग होम को मुआवजा देने का आदेश दिया. महिला ने बच्चे को पिछले साल सितंबर में जन्म दिया था, जिसके पास बायां पैर और दाहिनी हथेली नहीं थी.
मामला ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले का है, जहां महिला ने उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में याचिका दायर की थी. आयोग ने फैसला सुनाया कि रेडियोलॉजिस्ट और उनकी पत्नी द्वारा चलाए जा रहे नर्सिंग होम में डिफोर्मिटीज का पता लगाने में विफल होना उनकी द्वारा प्रदान की जा रही सेवा में घोर कमी को दर्शाता है.
रेडियोलॉजिस्ट को मिले तीन मौके
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक आयोग ने कहा कि अगर महिला को भ्रूण की विकलांगता के बारे में बताया जाता तो वह भ्रूण को गिरा सकती थी. नर्सिंग होम पर महिला के अच्छे विश्वास और उनकी रिपोर्ट की वजह से ही महिला ने ऐसा नहीं किया. इसका ही नतीजा है कि महिला ने शारीरिक रूप से विकलांग बच्चे को जन्म दिया. कंज्यूमर कोर्ट ने कहा कि रेडियोलॉजिस्ट ने अल्ट्रासाउंड किया और भ्रूण में डिफोर्मिटीज के बारे में बताए बिना रिपोर्ट जारी कर दी, लेकिन रेडियोलॉजिस्ट को ऐसे तीन मौके मिले, जिसमें वह डिफोर्मिटीज की जानकारी दे सकता था.
मुकदमेबाजी का भी देना होगा खर्च
कंज्यूमर कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर आयोग ने नर्सिंग होम को नोटिस जारी किया था, लेकिन कोर्ट ने बताया कि नर्सिंग होम की तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया. कोर्ट ने नर्सिंग होम को बच्चे के नाम पर बैंक में 10 लाख रुपये जमा करने का आदेश दिया है. साथ ही बच्चे की 24 वर्षीय मां बंदना दास और उसके पति मनोरंजन चुली को भी 50,000 रुपए मुआवजा देने को कहा गया है. इतना ही नहीं मुकदमेबाजी पर आए 4000 रुपए के खर्च भी नर्सिंग होम को ही देना होगा. रेडियोलॉजिस्ट को पैसा जमा करने के लिए 45 दिन का समय दिया गया है.