छत्तीसगढ़

फ्रीबीज केसः अब बड़ी बेंच करेगी सुनवाई, अगले हफ्ते नए CJI कर सकते हैं पीठ का गठन

नईदिल्ली I सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव के दौरान मतदाताओं को मुफ्त सामान बांटने या इसका वादा करने से जुड़े मामले पर मंगलवार को सुनवाई की. इस दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यूयू ललित के नेतृत्व वाली दो सदस्यीय पीठ ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ के पास भेज दिया है. अब तीन सदस्यीय पीठ इस मामले पर सुनवाई करेगी. हालांकि 8 नवंबर को सीजेआई यूयू ललित रिटायर हो रहे हैं. ऐसे में 9 नवंबर को नए सीजेआई बन रहे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ही पद संभालने के बाद इस तीन सदस्यीय पीठ का गठन करेंगे.

सुनवाई के दौरान सीजेआई यूयू ललित ने आदेश दिया कि इस मामले को तीन जजों की बड़ी पीठ के पास भेज रहे हैं. सीजेआई ने कहा कि हमारा मानना है कि इस मामले पर जल्द से जल्द तीन सदस्यीय पीठ सुनवाई करे. अभी तक इस मामले की सीजेआई के नेतृत्व वाली दो सदस्यीय पीठ सुनवाई कर रही थी. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील अश्वनी उपाध्याय ने कहा कि अदालत ने इस मसले पर विशेषज्ञ समिति बनाने को कहा था. हम प्रस्ताव देते हैं कि यह समिति बनाई जाए.

कोई समिति बनी तो हम पूरी मदद करेंगे: चुनाव आयोग

वहीं चुनाव आयोग ने इस दौरान कहा कि हम इस समिति में नहीं रहेंगे. यह जरूर है कि अगर कोई समिति बनी तो हम पूरी सहायता करेंगे. इस पर सीजेआई ने कहा कि हम इस मामले को तीन जजों की बड़ी पीठ के पास भेज रहे हैं. बता दें कि यह याचिका वकील अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल की है. इसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वो राजनीतिक दलों को चुनावी माहौल में मुफ्त सामान देने के वादे करने की मंजूरी ना दे. याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दल ऐसा सिर्फ अपने वोटबैंक के लिए करते हैं.

चुनाव आयोग ने मांगे थे सुझाव

वहीं दूसरी ओर, मुफ्त चुनावी सौगातों को लेकर चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के समक्ष आदर्श चुनाव संहिता में संशोधन का एक प्रस्ताव रखा है. आयोग ने इसके तहत चुनावी वादों की वित्तीय व्यवहार्यता के बारे में मतदाताओं को प्रामाणिक जानकारी देने को लेकर राजनीतिक दलों की राय मांगी थी. आयोग ने सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों को लिखे गए एक पत्र में उनसे 19 अक्टूबर तक उनके विचार साझा करने को कहा था.

इस पर बीजेपी ने अपने जवाब में कहा कि मुफ्त चुनावी सौगात मतदाताओं को लुभाने के लिए होती हैं जबकि कल्याणवाद एक नीति है जिससे मतदाताओं का समावेशी विकास किया जाता है. समझा जाता है कि पार्टी को आयोग के इस विचार पर कोई आपत्ति नहीं है कि राजनीतिक दलों को अपने चुनावी वादों की वित्तीय व्यवहार्यता भी सौंपनी चाहिए.