नईदिल्ली I केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने देशद्रोह के कानून को स्थगित रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नाराजगी जताई है. उन्होंने कहा कि कानून में बदलाव लाने के लिए केंद्र तैयारी कर चुका था. लेकिन इसकी सूचना होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्थगित करने का आदेश जारी किया है. रिजिजू ने एक राष्ट्रीय चैनल के कार्यक्रम में यह बात कही है. उन्होंने कहा, ‘हमने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार देशद्रोह कानून के प्रावधान को बदलने के बारे में सोच रही है. इसके बावजूद शीर्ष कोर्ट ने देशद्रोह कानून के प्रावधानों को रद्द कर दिया. मैं इसे लेकर बहुत परेशान था.’
रिजिजू इस दौरान ‘रिकॉर्मिंग ज्यूडिशियरी’ कार्यक्रम में इस विषय पर अपने रुख को स्पष्ट करते हुए कहा, ‘हर किसी की एक लक्ष्मण रेखा (सीमा) होती है, जिसे पार नहीं की जानी चाहिए.’ बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस साल मई में भारतीय दंड संहित की धारा 124ए (देशद्रोह) के तहत लंबित आपराधिक मुकदमे और अदालती कार्यवाही को निलंबित कर दिया था.
न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने पर भी रिजिजू ने अपना पक्ष स्पष्ट किया. उन्होंने कहा, ‘हम न्यायाधीशों के रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने की फिलहाल नहीं सोच रहे हैं. मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के लिए 65 साल और हाई कोर्ट के लिए 62 साल पर्याप्त है. अगर जरुरत लगेगी तो इस विषय पर काम किया जाएगा. फिलहाल ऐसा कोई प्लान नहीं है.’
पद खाली हैं, इसका ये मतलब नहीं
उन्होंने कहा: ‘एक गलत धारणा है कि बड़ी रिक्तियों के कारण, मामले लंबित हैं … हम लोगों को तेजी से न्याय देने के वास्तविक मुद्दे पर उतर रहे हैं.’ उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के साढ़े आठ साल में न्यायपालिका और न्यायाधीशों के अधिकार को कम करने के लिए कुछ भी नहीं किया गया है.
‘लेकिन न्यायपालिका को कार्यपालिका की भूमिका में नहीं आना चाहिए. देश को कौन चलाना चाहिए? न्यायपालिका को देश चलाना चाहिए या चुनी हुई सरकार? ‘जब न्यायाधीश मौखिक टिप्पणी करते हैं, तो इसे व्यापक कवरेज मिलता है, भले ही इस तरह की टिप्पणियों का (मामले पर) कोई असर नहीं पड़ता है. एक न्यायाधीश को अनावश्यक टिप्पणी करने और आलोचना को आमंत्रित करने के बजाय अपने आदेश के माध्यम से बोलना चाहिए.’