नईदिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आर्मी डेंटल कोर (एडीसी) में महिला अभ्यर्थियों के लिए सिर्फ 10 फीसदी सीटों को समानता के सांविधानिक अधिकार का प्रथमदृष्टया उल्लंघन बताया है। शीर्ष कोर्ट ने कहा, अत्यधिक मेधावी महिला अभ्यर्थियों को चयन प्रक्रिया से वंचित करना घड़ी को विपरीत दिशा में ले जाने जैसा है।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने केंद्र सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया कि यह विभिन्न आकस्मिकताओं के आधार पर है, जो रक्षा सेवाओं के लिए जरूरी है। कोर्ट ने कहा, मौजूदा चयन प्रक्रिया का यह पहलू, जहां सिर्फ 10 फीसदी सीटें महिला अभ्यर्थियों के लिए आरक्षित हैं, संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन है। पीठ दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उम्मीदवारों के लैंगिक भेदभाव के दावे के कारण एडीसी भर्ती नतीजों पर पूर्व में दिए यथास्थिति के आदेश को रद्द कर दिया गया था। एडीसी में पुरुषों के लिए 90 फीसदी रिक्तियां आरक्षित करने के सरकार के कदम के खिलाफ कई याचिकाकर्ता विभिन्न हाईकोर्ट में पहुंचे थे।
कम मेधावी पुरुष हिस्सा ले सकते लेकिन अधिक मेधावी महिला नहीं
पीठ ने कहा, इस व्यवस्था से विषम स्थिति पैदा हो गई है, जहां महिला उम्मीदवार की तुलना में 10 गुणा कम मेधावी पुरुष को चयन प्रक्रिया में शामिल होने की अनुमति है। पर, पुरुष से 10 गुणा मेधावी महिला अभ्यर्थी चयन प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया, 2,394 रैंक तक के पुरुष अभ्यर्थी चयन प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं, लेकिन महिला अभ्यर्थियों का कट-ऑफ 235 था। शीर्ष कोर्ट ने हालांकि यथास्थिति रखने के निर्देश के साथ हाईकोर्ट पहुंचे अभ्यर्थियों (छूटे हुए) के साक्षात्कार लेने के भी आदेश दिए। वहीं, केंद्र ने कहा, वह याचिकाकर्ताओं के साक्षात्कार लेने को तैयार है, जिनकी नीट (एमडीएस)-2022 में रैंकिंग 235 से काफी नीचे है। शीर्ष कोर्ट ने कहा-नीट के नतीजे महिला अभ्यर्थियों के साक्षात्कार के बाद घोषित किए जा सकते हैं।
बाल विवाह निषेध कानून लागू करने में केंद्र उठाए कदम
उधर, सुप्रीम कोर्ट ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के प्रावधानों को लागू करने के लिए केंद्र के उठाए कदमों के बारे में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने केंद्र सरकार से इस मुद्दे पर विभिन्न राज्यों के आंकड़ों को समेटने और उसके समक्ष एक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा। पीठ सोसायटी फॉर इनलाइटमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें दावा किया गया कि बाल विवाह के एक सदी पहले बंद किए जाने और 2006 में नया कानून बनने के बावजूद 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी कराई जा रही है।
केंद्र की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान ने कहा, महिलाओं की शादी की उम्र 21 साल तक बढ़ाने के प्रावधान वाला एक बिल 2001 से स्थायी समिति के पास लंबित है। इस पर पीठ ने कहा, यह बिल भी बाल विवाह निषेध अधिनियम के कार्यान्वयन के मुद्दे को संबोधित नहीं करेगा। हम मंत्रालय को बाल विवाह निषेध अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए अब तक उठाए गए कदमों पर एक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हैं।