नई दिल्ली। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिये जाने की मांग पर शुरू हुई चर्चा के बीच सरकार और जमीयत उलमा ए हिंद के वकील कपिल सिब्बल ने कई आशंका तो जता दी है लेकिन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ का बयान अहम है। उन्होंने सिर्फ सीमित मुद्दों पर सुनवाई शुरू करते हुए कहा कि भविष्य की पीढ़ियों को बांध कर नहीं रखा जा सकता है।
विवाह करना हमारा मौलिक अधिकार: मुकुल रोहतगी
मंगलवार को याचिकाकर्ताओं ने संविधान मे मिले बराबरी के मौलिक अधिकार की दुहाई देते हुए कहा कि उन्हें भी विपरीत लिंगीयों के समान समझा जाए और विपरीत लिंगियों की तरह समलैंगिकों की शादी को भी कानूनी मान्यता दी जाए। याचिकाकर्ता की ओर से पेश पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि विवाह करना हमारा मौलिक अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट अपने पूर्व के कई फैसलों में कह चुका है कि सभी को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार है। रोहतगी ने कहा कि उनकी मांग है कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जाए और उनकी शादी पंजीकृत हो। कोर्ट ने आइपीसी की धारा 377 के आपराधिक भाग को खत्म कर दिया था अब बात बराबरी की है। उनकी दलीलों पर पीठ ने कहा कि कोर्ट को इस मामले में कानून के विधायी पहलू को भी ध्यान में रखना होगा।
इस मामले में कानून न होने पर कोर्ट किस हद तक आदेश दे सकता है। रोहतगी ने कहा कि विशाखा जजमेंट की तरह कोर्ट गाइडलाइन जारी करे और कानून बनने तक वह लागू रहे। संसद के कानून बनाने का इंतजार नहीं किया जा सकता और कोर्ट भी संसद को कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकता।
यह जटिल मुद्दा है
सालिसिटर जनरल ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट में पुरुष और स्त्री की बात की गई है। सामाजिक संबंधों की स्वीकृति कभी भी कानून से नहीं आती ये अंदर से आती है। सीजेआइ ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट में पुरुष और स्त्री की अवधारणा सिर्फ जननांग पर आधारित नहीं है। यहां सवाल यह नहीं है कि जननांग क्या है यह ज्यादा जटिल मुद्दा है।
मेहता ने कहा कि कोर्ट कह रहा है कि वह पर्सनल ला पर विचार नहीं करेगा ऐसे ही पिछले फैसले में कोर्ट ने कहा था कि वह विवाह की मान्यता के मुद्दे पर विचार नहीं कर रहा लेकिन उससे विंडो तो खुल गई। और अब दोबारा वैसी ही विंडो खुल जाएगी।
वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी जो कि एक राज्य सरकार की ओर से पेश हुए थे, ने मेहता की दलीलों का समर्थन करते हुए राज्यों को नोटिस जारी कर उनका पक्ष सुने जाने की मांग की। राकेश द्विवेदी ने याचिका में की गई मांगों का विरोध करते हुए कहा कि पहले यह तय होना चाहिए कि क्या इस मामले में समलैगिंक लोगों को विपरीत लिंगीय लोगों के बराबर माना जा सकता है। नवतेज के फैसले में कोर्ट ने उन्हें बराबर नहीं माना है सिर्फ उस धारा का आपराधिक चरित्र खत्म किया है।
जमीयत उलेमा हिन्द की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि उनका मानना है कि लोगों को निजी स्वतंत्रता होनी चाहिए लेकिन अगर समलैंगिग शादी को मान्यता दी जाती है तो आगे के परिणामों पर भी विचार होना चाहिए। अगर वह शादी टूटती है तो बच्चों की देखभाल कौन करेगा। कौन पिता माना जाएगा कौन माता मानी जाएगी। ऐसे मामले को टुकड़ों में नहीं तय किया जा सकता।
बुधवार को भी बहस जारी रहेगी
कोर्ट को पूरे मामले पर हर पहलू से विचार करना होगा। याचिकाकर्ताओं की ओर से शादी से जुड़े बच्चा गोद लेने के अधिकार के अलावा बैंक में खाता खुलवाने, बीमा में साथी को नामिनी बनाने और घर किराए पर लेने आदि के दौरान आने वाली दिक्कतें गिनाई गईं जिस पर सालिसिटर जनरल ने ट्रांसजेंडर एक्ट का हवाला देते हुए कहा कि इस कानून में इस तरह के सारे अधिकारों को संरक्षित किया गया है इसकी परिभाषा व्यापक है। मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से बुधवार को भी बहस जारी रहेगी।