नई दिल्ली । समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता की मांग पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार द्वारा इसे अभिजात्य अवधारणा बताए जाने की दलील से असहमति जताते हुए टिप्पणी में कहा कि शहरी क्षेत्रों में अधिक लोगों के सामने आने का मतलब समलैंगिक विवाह शहरी आभिजात्य अवधारणा नहीं है।
शादी के अधिकार की भेदभावपूर्ण मनाही की जा रही है : सिंघवी
सरकार ने इसके शहरी आभिजात्य अवधारणा के बारे में कोई आंकड़ा नहीं दिया है। ये टिप्पणी संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने उस वक्त की जब एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी बहस कर रहे थे। सिंघवी ने कहा कि यौन अभिरुचि और जेंडर पहचान के बारे में आरोपित सोच के आधार पर शादी के अधिकार की भेदभावपूर्ण मनाही की जा रही है।
इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, आपका कहना है कि राज्य किसी व्यक्ति के साथ उस गुण के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता जिस पर व्यक्ति का नियंत्रण नही है। जब आप देखते हैं कि यह सहज गुण हैं तो इसके जवाब में एक दलील दी जाती है कि यह शहरी आभिजात्य अवधारणा है या एक वर्ग का पूर्वाग्रह है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जो गुण सहज है, उसे क्लास बायस नहीं कहा जा सकता। शहरी शायद इसलिए क्योंकि इसकी अभिव्यक्ति करने वालों में शहरी ज्यादा हैं।
सरकार ने ऐसे कोई आंकड़े नहीं दिए हैं जो दर्शाते हों कि समलैंगिक विवाह आभिजात्य अवधारणा है। सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां और बहस केंद्र सरकार के हलफनामे में समलैंगिक विवाह को शहरी आभिजात्य अवधारणा कहे जाने के जवाब में थी। केंद्र के हलफनामें में शहरी आभिजात्य अवधारणा की बात पर पक्षकारों के वकीलों ने कोर्ट में कुछ याचिकाकर्ताओं का उदाहरण देते हुए बताया कि कोई ट्रांसजेंडर है या कुछ और है, इनके लिए ऐसा कैसे कहा जा सकता है। वह ट्रांसजेंडर काउंसिल की सदस्य है, उसे सरकार ने नामित किया है। दूसरे वकीलों ने भी ऐसे उदाहरण दिए।
कानूनी मान्यता के परिणामों पर भी विचार
सुनवाई के दौरान पीठ ने गोद लेने और पुरुष-महिला के लिए विवाह की अलग-अलग उम्र समेत समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता के परिणामों पर भी विचार किया। इस दौरान प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘भले ही कोई युगल समलैंगिक संबंध में हो, फिर भी उनमें से कोई एक गोद ले सकता है। तो यह पूरा तर्क कि इससे बच्चे पर एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ेगा, इस तथ्य से मिथ्या हो जाता है कि जब हमने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है तो लोगों के लिव-इन में रहने की आजादी है और उनमें से एक बच्चा गोद ले सकता है।’
कोर्ट से अपनी पूर्ण शक्ति के इस्तेमाल का आग्रह
बहस के दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने पीठ से अनुरोध किया कि वह अपनी ”पूर्ण शक्ति, प्रतिष्ठा और नैतिक अधिकार” का उपयोग करे ताकि समाज को ऐसे देश को स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जा सके जहां एलजीबीटीक्यूआइए (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, क्वेश्च¨नग, इंटरसेक्स, पैनसेक्सुअल, टू-स्पिरिट, असैक्सुअल एंड ऐली) व्यक्ति विषमलैंगिकों की तरह गरिमापूर्ण जीवन जी सके।
उन्होंने कहा कि सरकार को आगे आना चाहिए और समलैंगिक विवाह को मान्यता प्रदान करनी चाहिए। रोहतगी ने यह भी कहा कि एलजीबीटीक्यूआइए का संसद में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है इसीलिए उन्हें अदालतों में आना पड़ता है।