छत्तीसगढ़

क्या पति-पत्नी का लड़का-लड़की होना ही जरूरी है? सुप्रीम कोर्ट का बड़ा सवाल, अयोध्या की तर्ज पर होगी सुनवाई

नईदिल्ली : समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. गुरुवार को तीसरे दिन की सुनवाई के दौरान केंद्र और याचिकाकर्ता की दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर कई टिप्पणियां की. सेम सेक्स मैरिज पर सुनवाई अभी जारी है.

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इस दौरान सवाल किया कि क्या शादी के लिए दो अलग-अलग लिंग का होना जरूरी है. पांच जजों की संविधान पीठ के समक्ष चल रही सुनवाई का लाइव प्रसारण कोर्ट की वेबसाइट और यूट्यूब पर हो रही है.

सीजेआई ने इस दौरान अहम टिप्पणी भी की. उन्होंने कहा कि समलैंगिक संबंध सिर्फ शारीरिक नहीं है बल्कि इससे कहीं ज्यादा यह इमोशनल रिश्ता है. 69 साल पुराने मैरिज एक्ट के दायरे का विस्तार करना गलत नहीं है. अब ये रिश्ता हमेशा के लिए टिके रहने वाले हैं

चीफ जस्टिस ने और क्या-क्या कहा?

चीफ जस्टिस ने कहा कि समलैंगिक शादी के लिए पुराने स्पेशल मैरिज एक्ट के दायरे का विस्तार करना गलत नहीं है.सुप्रीम कोर्ट जिस तरह से अयोध्या मामले की सुनवाई की ठीक उसी तरह से इस मामले की भी सुनवाई करेगा.

कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई की पूरी रूपरेखा तय कर दी है. जिसके आधार पर अब आगे की सुनवाई होगी.कोर्ट ने कहा कि हम केवल इतना देखेंगे कि स्पेशल मैरिज एक्ट में समलैंगिक शादी की व्याख्या की जा सकती है?सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि हम अब इस मामले को अयोध्या केस की तरह सुनेंगे.

सुनवाई के दौरान अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने जस्टिस विवियन बोस की टिप्पणी का भी जिक्र किया.वहीं, याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि नैतिकता का यह मुद्दा 1800 के दशक में आया था.याचिकाकर्ता ने कहा कि भारतीय ग्रंथों को देखें तो सैकड़ों साल पहले दीवरों पर कई तस्वीरों को चित्रित किया गया था.

वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्र ने दलील देते हुए कहा कि अमृतसर की एक युवती जिसने दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की है कि वो दलित है जबकि उसकी पार्टनर ओबीसी से ताल्लुक रखती है.