नई दिल्ली । आरबीआई के 2000 रुपये के नोटों को चलन से वापस लेने के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में एक और जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में इस संबंध में आरबीआई द्वारा जारी अधिसूचना को रद करने की मांग की गई है।
साथ ही नोट बदलने आने वाले लोगों को 500 रुपये मुआवजे के तौर पर अधिक दिए जाने की मांग की गई है। इससे पहले भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने भी 2000 के नोटों को लेकर एक याचिका दायर कर रखी है।
वकील रजनीश भास्कर गुप्ता ने याचिका में बताया है कि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 के तहत आरबीआई किसी भी मूल्य के बैंक नोट को बंद करने के लिए स्वतंत्र शक्ति नहीं है। आरबीआई अधिनियम 1934 की धारा 24 (2) के तहत ये शक्ति केवल केंद्र सरकार के पास है।
2000 के नोट को वापस लेने का इतना बड़ा मनमाना निर्णय लेने के पीछे आरबीआई ने क्लीन नोट पॉलिसी के अलावा कोई तर्क नहीं दिया है। क्लीन नोट पॉलिसी में सिर्फ क्षतिग्रस्त, नकली या गंदे नोटों को वापस लिया जाता है, न कि अच्छे नोट।
याचिका में कहा गया है कि आरबीआई की अधिसूचना के बाद बाजार में व्यावहारिक रूप से सभी ने एक-दूसरे से 2000 रुपये का नोट लेना बंद कर दिया है। इससे बैंक से दूर और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं-पुरुषों के लिए बहुत कठिनाई हो गई है।
इतनी गर्मी में बिना किसी गलती के लोग अपने 2000 के नोट बदलने के लिए बैंक जाने को मजबूर हैं। आरबीआई और वित्त मंत्रालय न केवल प्रत्येक बैंक नोट पर छपाई के वर्ष का उल्लेख करते हैं, बल्कि आरबीआई की क्लीन नोट पालिसी के मद्देनजर ये भी अनुमान लगाते हैं कि संबंधित नोट कितने साल तक चल सकते हैं।