नईदिल्ली : भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ मोर्चा खोले पहलवानों ने सोनीपत में एक पंचायत में शामिल होने के बाद जिस तरह यह कहा कि मामला सुलझे बगैर वे एशियन गेम्स नहीं खेलेंगे, उसे देखते हुए यह आवश्यक हो जाता है कि इस मुद्दे का समाधान शीघ्र हो। पहलवान यह भी आरोप लगा रहे हैं कि उन पर समझौते का दबाव बनाया जा रहा है। कहना कठिन है कि उनके इस आरोप में कितनी सत्यता है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वे एक लंबे समय से आंदोलनरत हैं।
यह ठीक नहीं कि किसी गंभीर मामले में जांच और न्याय के लिए किसी को भी धरना-प्रदर्शन का सहारा लेना पड़े। यह अच्छा नहीं हुआ कि उन पहलवानों को भी इसके लिए विवश होना पड़ा, जिन्होंने कुश्ती में देश के लिए नाम कमाया है। वैसे तो खेल मंत्री और पहलवानों के बीच वार्ता के बाद यह सहमति बनी है कि 15 जून तक इस मामले में आरोप पत्र दाखिल कर दिया जाएगा, लेकिन देखना यह है कि उससे आंदोलनरत पहलवान संतुष्ट होते हैं या नहीं? जो भी हो, कायदे से अब तक दिल्ली पुलिस को अपनी जांच पूरी कर लेनी चाहिए थी।
यह ठीक है कि उस प्रकृति के आरोपों की जांच करना एक कठिन कार्य है, जैसे बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ लगाए गए हैं, लेकिन इसके बाद भी दिल्ली पुलिस को अब तक किसी नतीजे पर पहुंच जाना चाहिए था। इस मामले की जांच में दिल्ली पुलिस की ओर से जो देरी हुई, उससे देश-दुनिया को यही संदेश गया कि सत्तारूढ़ राजनीतिक दल का ताकतवर सांसद होने के चलते बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ वैसे कदम नहीं उठाए गए, जैसे यदि ऐसे ही सनसनीखेज आरोप किसी अन्य पर लगते तो उसके खिलाफ उठा लिए गए होते। यौन उत्पीड़न के किसी मामले की जांच में इसलिए देरी का कोई औचित्य नहीं कि आरोपित कोई सांसद है। जैसे यह आवश्यक है कि इस मामले की जांच प्रभावी और संतोषजनक ढंग से हो, वैसे ही यह भी कि आंदोलनरत पहलवान यह न तय करें कि पुलिस अपनी जांच कैसे करे?
यदि पहलवानों की ओर से पुलिस की जांच से पहले उसका निष्कर्ष तय किया जाएगा और यह मांग की जाएगी कि वही होना चाहिए, जैसा वे कह रहे हैं तो इससे बात बनने वाली नहीं है। आंदोलनरत पहलवान इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि नाबालिग महिला पहलवान ने अपने आरोपों में संशोधन-परिवर्तन किया है और वह भी अदालत के समक्ष। स्पष्ट है कि इसके बाद दिल्ली पुलिस को अपनी जांच की दिशा बदलनी पड़ सकती है। जो भी हो, इस मामले का एक सबक यह भी है कि जब किसी प्रकरण की जांच और कार्रवाई में अनावश्यक देरी होती है तो तरह-तरह के प्रश्न उठते हैं और वह राजनीति का विषय भी बनता है।