छत्तीसगढ़

National Doctor Day 2023: ये हैं भारत की पहली महिला डॉक्टर, जिसने स्त्रियों को दिखाई नई राह

नईदिल्ली : चिकित्सक को भगवान की तरह माना जाता है। एक स्वस्थ जीवन जीना कुछ कठिन सा हो गया है। लोग अक्सर बीमार हो जाते हैं या किसी न किसी स्वास्थ्य समस्या से परेशान रहते हैं। ऐसे में चिकित्सक उन्हें स्वस्थ जीवन की राह दिखाते हैं। रोगी का इलाज कर उन्हें एक नया जीवन देते हैं। डॉक्टरों की इसी उपयोगिता को समझाने और उनके काम व सेवा भाव के लिए सम्मानित करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 1 जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे मनाया जाता है। भारत में सैकड़ों डॉक्टर हैं, जो विभिन्न प्रकार के रोग और समस्याओं से ग्रस्त मरीजों के इलाज के लिए काम करते हैं।

कोरोना काल में डॉक्टर की भारी जरूरत आ गई थी, उस समय डॉक्टरों ने मरीजों के इलाज के लिए घंटों तक काम किया। इस दौरान उन्होंने खुद संक्रमित होने या अपनी जान की परवाह तक नहीं की। दुनियाभर में आज कई रोगों के लिए अलग अलग डॉक्टर हैं। पुराने जमाने में भारत में वैद्य और दायी हुआ करते है लेकिन बाद में पुरुषों के साथ ही महिला डॉक्टरों की भूमिका भी मेडिकल के क्षेत्र में दमदार हुई। महिलाओं का चिकित्सा के क्षेत्र में आना ही एक बड़ी उपलब्धि है। हालांकि महिलाओं के लिए डॉक्टर बनने की राह खोलने का काम देश की पहली महिला डॉक्टर ने किया था।

भारत की पहली महिला डॉक्टर 

देश की पहली महिला डॉक्टर का नाम आनंदीबाई जोशी है। उनका जन्म 31 मार्च 1865 को पुणे के जमींदार परिवार में हुआ था। शादी से पहले तक आनंदीबाई को यमुना कहा जाता था। उन दिनों शादी के बाद लड़कियों के सरनेम के साथ ही उनका पहला नाम भी ससुराल वाले बदल देते थे।

डाॅ. आनंदीबाई जोशी का जीवन परिचय

जब आनंदी महज 9 वर्ष की थीं, तो उनका विवाह 16 साल बड़े गोपालराव से कर दी गई। 25 साल के गोपाल ने पहली पत्नी के निधन के बाद आनंदी से विवाह किया। गोपालराव और उनका परिवार आनंदी को बहुत प्यार करता था। 14 वर्ष की आयु में आनंदी ने एक बच्चे को जन्म दिया, लेकिन नवजात की महज 10 दिन में ही मृत्यु हो गई।

बच्चे की मृत्यु ने आनंदी को दी नई राह

बच्चे की मौत का सदमा झेल रही आनंदी ने सोचा कि अगर उनका बच्चा बीमार न होता, तो वह दुनिया में होता। उन्होंने सोच लिया कि वह किसी बच्चे को बीमारी के कारण मरने नहीं देंगी। आनंदी ने खुद डॉक्टर बनने की ठानी। पति ने भी आनंदी का साथ दिया और मिशनरी स्कूल में पढ़ने भेजा। हालांकि समाज और परिवार से उन्हें इसके लिए ताने भी सुनने पड़े पर आनंदी ने हार नहीं मानी।

एमडी की डिग्री हासिल करने वाली पहली महिला आनंदी

आगे की पढ़ाई के लिए आनंदी ने पेंसिल्वेनिया के महिला मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। पढ़ने के लिए आनंदी ने अपने सारे गहने बेच दिए। पति ने और कई शुभचिंतकों ने भी आनंदी को सहयोग किया। जिसके बाद 19 साल की उम्र में आनंदीबेन ने एमडी की डिग्री हासिल कर ली। उनके नाम यह बड़ी उपलब्धि है कि आनंदी पहली भारतीय महिला थीं, जिन्होंने एमडी की डिग्री हासिल की थी।

पढ़ाई के बाद वह स्वदेश लौटी और कोल्हापुर रियासत के अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल के महिला वार्ड में प्रभारी चिकित्सक पद पर कार्य करने लगीं। लेकिन प्रैक्टिस के दौरान टीबी की बीमारी से ग्रस्त होने के चलते 26 फरवरी 1887 को महज 22 साल की उम्र में आनंदीबाई का निधन हो गया।