नई दिल्ली। भाजपा ने 8 जुलाई को देर रात एक और बदलाव करते हुए हटाए गए प्रदेश अध्यक्षों बंडी संजय कुमार, अश्विनी शर्मा को राष्ट्रीय कार्यसमिति में जगह दे दी। इसके अलावा राजस्थान के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया को भी राष्ट्रीय कार्यसमिति में स्थान दिया गया है। इस विस्तार में डॉ. संजय जायसवाल और किरोड़ी लाल मीणा को लाकर यूपी-राजस्थान में पार्टी की आंतरिक लड़ाई को शांत करने की कोशिश की गई है। इसके अलावा सुरेश कश्यप, विष्णुदेव साय, धरमलाल कौशिक और दीपक प्रकाश को भी राष्ट्रीय कार्यसमिति में स्थान दिया गया है। केरल में के. एस. कन्नथ को पार्टी का संगठन महासचिव बनाया गया है।
इस बदलाव के ठीक अगले दिन यानी 9 जुलाई को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हैदराबाद में दक्षिण भारत के 11 प्रदेश अध्यक्षों के साथ बैठक कर पार्टी के चुनावी अभियान को मजबूत करने वाले हैं। इस बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के अलावा तेलंगाना के नए प्रदेश अध्यक्ष जी. किशन रेड्डी, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बंडी संजय कुमार और तेलंगाना में सहचुनाव प्रभारी सुनील बंसल और अन्य शीर्ष पदाधिकारी भी उपस्थित रहेंगे। इसे पूर्व की टीम और नई टीम में संयोजन स्थापित करने और चुनाव में बेहतर तालमेल के साथ उतरने के लिहाज से महत्त्वपूर्ण बताया जा रहा है।
दरअसल, तेलंगाना के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बंडी संजय कुमार को लेकर पार्टी में काफी समय से विवाद चल रहा था। वे स्वयं को अगले मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर रहे थे जिससे पार्टी के अन्य नेता असहज महसूस कर रहे थे। लेकिन प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से ही उन्होंने तेलंगाना की केसीआर सरकार के खिलाफ जमकर हमला बोला था और पार्टी का ग्राफ ऊपर करने में मदद की थी।
पार्टी को मजबूत करने में बंडी संजय की भूमिका अहम
तेलंगाना की राजनीति के विशेषज्ञ राजकुमार कहते हैं कि बंडी संजय कुमार ने अपना पद संभालने के साथ ही केसीआर सरकार पर भ्रष्टाचार के मामले में जोरदार हमला बोला था। इस क्रम में उन पर फर्जी केस भी दायर किये गए और उन्हें गिरफ्तार भी किया गया। लेकिन इस पूरी कोशिश में पार्टी का प्रदेश में ग्राफ बढ़ता गया। एक सर्वे के अनुसार जिस समय बंडी संजय कुमार ने अपना कार्यभार संभाला था उस समय पार्टी का मत प्रतिशत केवल छः फीसदी के करीब था जो अब 29 प्रतिशत के करीब पहुंच चुका है।
उपेक्षा संभव नहीं
उन्होंने कहा कि, बंडी संजय कुमार के इस योगदान को देखते हुए पार्टी उनकी उपेक्षा भी नहीं कर सकती थी। कहा जा रहा है कि पार्टी ने उन्हें केंद्र में मंत्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा है जिस पर अभी बातचीत चल रही है, लेकिन बंडी अपनी घरेलू राजनीति को देखते हुए तेलंगाना में ही अपनी भूमिका देखना चाहते हैं, लिहाजा वे तेलंगाना से हटने के लिए तैयार नहीं हैं।
एटला राजेंद्र पार्टी के लिए अहम क्यों
लेकिन एटला राजेंद्र केसीआर की कमजोर कड़ी के रूप में देखे जाते हैं। वे केसीआर की टीम में काम कर चुके हैं और उसी पार्टी से भाजपा में आए हैं। यही कारण है कि पार्टी ने एटला राजेंद्र को चुनाव समिति का प्रमुख बनाकर तेलंगाना में विजय का रास्ता बनाना चाहती है। तेलंगाना के विभिन्न वर्गों पर उनकी सीधी पकड़ पार्टी को तेलंगाना में मजबूत स्थिति में ला सकती है।
लेकिन एटला राजेंद्र और बंडी संजय कुमार की आपस में बिल्कुल नहीं बनती। यही कारण है कि एटला को बेहतर काम करने का माहौल देने के लिए बंडी संजय कुमार को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाना पड़ा और उनके स्थान पर जी. किशन रेड्डी को लाकर एटला को ‘फ्री हैंड’ देने का काम किया गया।
लेकिन बंडी को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने को लेकर भी संगठन में नाराजगी चल रही थी। संजय के करीबी लगातार पार्टी संगठन के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे। माना जा रहा है कि पार्टी बंडी संजय कुमार के समर्थकों की नाराजगी को थामने के लिए ही उन्हें राष्ट्रीय कार्यसमिति में स्थान दी और अब उनके साथ बैठक कर यह संकेत देने की कोशिश की जा रही है कि संगठन में उनकी अहमियत कमजोर नहीं हुई है।
पंजाब-राजस्थान में भी समीकरण साधने की कोशिश
पंजाब में अश्विनी शर्मा को राष्ट्रीय कार्यसमिति में स्थान देकर पंजाब के हिंदू मतदाताओं के बीच यही संकेत देने की कोशिश की गई है कि पार्टी में उनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण बनी हुई है। इधर किरोड़ी लाल मीणा राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया से खार खाए बैठे हैं। पार्टी के लिए वसुंधरा और उनके विरोधी खेमे को एक साथ संभालना मुश्किल हो रहा है। किरोड़ी लाल मीणा को राष्ट्रीय कार्यसमिति में लाकर इस अंतर्विरोध को भी कमजोर करने की कोशिश हुई है।