नईदिल्ली : एक तरफ जहां समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लेकर देश में राजनीतिक हलचल तेज है वहीं, इस संवेदनशील मुद्दे पर प्रतिक्रिया देने की समय सीमा अब शुक्रवार (14 जुलाई) को खत्म होने वाली है. लॉ कमीशन को इस मामले पर अब तक 50 लाख से भी ज्यादा ऑनलाइन सुझाव मिल चुके हैं. साथ ही इसको लेकर हार्ड कॉपी के जरिए भी सुझाव मिले हैं.
वेबसाइट पर ऑनलाइन प्रतिक्रियाएं मिलने के अलावा आयोग को हार्ड कॉपी भी मिली हैं. साथ ही समय सीमा खत्म होते होते इनकी संख्या कहीं ज्यादा होने वाली है.
वहीं, कुछ संगठनों ने यूसीसी पर व्यक्तिगत सुनवाई की मांग करते हुए कानून पैनल से संपर्क किया है. सूत्रों ने कहा कि प्रतिक्रियाओं की जांच करते हुए संगठनों को व्यक्तिगत सुनवाई के लिए आमंत्रित करने पर निर्णय लिया जाएगा. 14 जून को विधि आयोग ने सार्वजनिक और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों सहित हितधारकों से विचार मांगकर यूसीसी पर एक नई परामर्श प्रक्रिया शुरू की.
21वें लॉ कमीशन ने 2018 में मांगे थे विचार
इससे पहले 21वें लॉ कमीशन ने साल 2018 में इस मद्दे की जांच और दो मौकों पर सभी हितधारकों से विचार मांगे थे. इसके बाद अगस्त 2018 में पारिवारिक कानून में सुधार को लेकर एक परामर्श लेटर जारी किया गया था. हालांकि इस परामर्श लेटर को जारी किए हुए तीन साल से अधिक का समय बीत चुका है. इसलिए 22वें विधि आयोग ने इस पर नए सिरे से विचार-विमर्श किया.
2018 के परामर्श लेटर में क्या था?
न्यायमूर्ति बीएस चौहान (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाले पिछले कानून आयोग ने 31 अगस्त 2018 को जारी अपने परामर्श पत्र में कहा था कि भारतीय संस्कृति की विविधता का जश्न मनाया जा सकता है और मनाया जाना चाहिए. समाज के विशिष्ट समूहों या कमजोर वर्गों को इस प्रक्रिया से वंचित नहीं किया जाना चाहिए.
इसमें कहा गया कि आयोग समान नागरिक संहिता प्रदान करने के बजाय ऐसे कानूनों से निपटा है जो भेदभावपूर्ण हैं, जो इस स्तर पर न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है. अधिकांश देश अब मतभेदों को पहचानने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और मतभेदों का अस्तित्व भेदभाव ही नहीं है बल्कि एक मजबूत लोकतंत्र का संकेत है.
इसमें आगे कहा गया कि संक्षेप में, यूसीसी का मतलब देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होना है जो धर्म पर आधारित नहीं है.