नईदिल्ली : 2024 लोकसभा चुनाव में अभी भी छह महीने से अधिक का वक्त बचा है। इससे पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष की ओर से तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। कौन कहां से चुनाव लड़ेगा इसे लेकर भी पार्टियां मंथन कर रही हैं। इस बीच, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा ने अपनी पत्नी के चुनावी मैदान में उतरने को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने शनिवार को कहा है निश्चित रूप से प्रियंका को लोकसभा में होना चाहिए। इस बयान के बाद कयास लग रहे हैं कि प्रियंका रायबरेली या अमेठी से चुनाव मैदान में उतर सकती हैं।
इससे पहले कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी ने भी प्रियंका गांधी से उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ने की अपील की गई है। इस बीच हमें जानना जरूरी है कि आखिर रॉबर्ट वाड्रा ने प्रियंका को लेकर क्या बयान दिया है? अमेठी और रायबरेली सीटों की चर्चा क्यों होती है? इन सीटों का सियासी इतिहास क्या है? प्रियंका के यूपी से चुनाव लड़ने से कांग्रेस को क्या फायदा हो सकता है?
रॉबर्ट वाड्रा ने प्रियंका को लेकर क्या बयान दिया है?
रॉबर्ट वाड्रा ने पत्नी प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की वकालत की है। उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि प्रियंका को संसद में होना चाहिए। उन्हें निश्चित रूप से लोकसभा में होना चाहिए। उनके पास वो सभी योग्यताएं हैं, जो एक अच्छे नेता में होनी चाहिए। वह वहां अच्छा काम करेंगी। वह वहां होने की हकदार हैं। इसलिए मैं निश्चित रूप से चाहूंगा कि कांग्रेस पार्टी इस पर विचार करेगी और उनके लिए बेहतर तैयारी करेगी।’
अमेठी और रायबरेली सीटों की चर्चा क्यों होती है?
इस बयान से उन कयासों को और भी जोर मिल गया है जिसमें कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी रायबरेली या अमेठी से चुनाव लड़ सकती हैं। जुलाई में ही उत्तर प्रदेश कांग्रेस इकाई के अध्यक्ष बृजलाल खाबरी ने कहा था कि सोनिया गांधी का चुनाव लड़ना तय है। प्रियंका से भी उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ने की अपील की गई है। पार्टी प्रदेश में पूरी सक्रियता से चुनावी तैयारी कर रही हैं। रायबरेली और अमेठी में टीमें डटी हुईं हैं। इन दोनों सीटों के अलावा प्रियंका गांधी के लिए दूसरी सीटों का भी आंकलन किया जा रहा है। हर पहलू पर रिपोर्ट तैयार करके जल्द ही प्रियंका गांधी को रिपोर्ट सौंपी जाएगी।
अमेठी सीट का सियासी इतिहास क्या है?
उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट गांधी परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है। अमेठी संसदीय सीट पर अबतक 17 लोकसभा चुनाव और दो उपचुनाव हुए हैं। इनमें से कांग्रेस ने 16 बार जीत दर्ज की है। 1977 में लोकदल और 1998 और 2019 में भाजपा को यहां से जीत मिली है। 1967 में परिसीमन के बाद अमेठी लोकसभा सीट वजूद में आई और कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी सासंद बने। 1971 में फिर जीते, लेकिन 1977 में नए प्रत्याशी बनाए गए संजय सिंह चुनाव हार गए। 1980 में इंदिरा गांधी ने बेटे संजय गांधी को रण में उतारा और तब से यह गांधी परिवार की पारंपरिक सीट हो गई। 1980 में ही दुर्घटना में संजय के निधन के बाद उनके भाई राजीव गांधी अमेठी से सांसद बने।
1984 में ‘गांधी’ के सामने थीं ‘गांधी’
1984 में राजीव गांधी और संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी के बीच चुनावी टक्कर हुई थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर राजीव गांधी के पाले में गई। मेनका चुनाव हार गईं और अमेठी के मतदाताओं ने तीन लाख से भी ज्यादा अंतर से राजीव गांधी को जिताया।
सोनिया ने बेटे राहुल के लिए छोड़ी सीट
1989 और 1991 में राजीव गांधी फिर चुनाव जीते, लेकिन 1991 के नतीजे आने से पहले उनकी हत्या हो गई। इसके बाद कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा चुनाव जीते। 1998 में वह भाजपा के संजय सिंह से हार गए। 1999 में अमेठी से सोनिया ने आम चुनाव में कदम रखा और पहली बार सांसद बनीं। 2004 में उन्होंने बेटे राहुल गांधी के लिए यह सीट छोड़ दी और रायबरेली चली गईं। राहुल गांधी ने 2019 के पहले तीन चुनाव यहां से जीते, लेकिन 2019 में स्मृति ईरानी ने गांधी परिवार का अजेय किला भेद दिया।
रायबरेली सीट का सियासी इतिहास क्या कहता है?
उत्तर प्रदेश में रायबरेली लोकसभा सीट आजादी के बाद से कांग्रेस का गढ़ रही है। कांग्रेस सुप्रीमो रहीं और वर्तमान में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी यहां से पांच बार चुनाव लड़ चुकी हैं। रायबेरली कांग्रेस का मजबूत किला कहा जाता है। यहां से पहली बार 1957 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी ने जीत हासिल की थी।
यहां से महज तीन बार कांग्रेस को हार मिली है। 1977 में जनता पार्टी के राज नारायण और फिर 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में आरपी सिंह ने कांग्रेस को हराया था। इसके अलावा कांग्रेस हमेशा यहां से जीतती आई है।
जब हारीं देश की पहली महिला प्रधानमंत्री
देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी के 1967 में चुनावी मैदान में उतरने के बाद यह सीट देशभर में सुर्खियों में आई। 1967 से लगातार वह दो बार सांसद बनीं और यहीं से वह देश की पहली प्रधानमंत्री बनीं। 1977 में भारतीय लोक दल के उम्मीदवार राज नारायण के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा। यह अबतक के इतिहास में पहला मौका था, जब कोई प्रधानमंत्री रहते चुनाव हारा हो। हालांकि, 1980 में इंदिरा गांधी रिकॉर्ड मतों से विजयी हुईं। 1984 और 1989 में जवाहर लाल नेहरू के भतीजे अरुण कुमार नेहरू यहां से सांसद चुने गए। 1989 और 1991 में कांग्रेस से शीला कौल ने जीत दर्ज की। 1996 और 1998 में अशोक सिंह ने यहां भाजपा का कमल खिलाया, लेकिन उसके बाद से कोई कांग्रेस से दो-दो हाथ नहीं कर पाया है।
2004 में रायबरेली के रण में उतरीं सोनिया
साल 2004 में सोनिया गांधी यहां से चुनावी मैदान में उतरीं। इससे पहले वह अपने पति राजीव गांधी की सीट अमेठी से जीतती रहीं थी। बेटे राहुल के लिए उन्होंने 2004 में अमेठी छोड़ दी और रायबरेली को अपनी कर्मभूमि बनाया। 2014 में मोदी लहर में भी सोनिया गांधी को भाजपा चुनौती नहीं दे पाई और भाजपा उम्मीदवार अजय अग्रवाल को करीब 3.5 लाख वोटों से हरा दिया।
अगले चुनाव यानि 2019 कांग्रेस ‘इस बार पांच लाख पार’ नारे के साथ चुनावी मैदान में उतरी। वहीं सपा-बसपा गठबंधन ने यहां गांधी परिवार का सम्मान करते हुए उम्मीदवार ही नहीं उतारा था। इस चुनाव में सोनिया का जीत का अंतर घटकर 1,67,178 हो गया लेकिन चुनाव उन्होंने जीत लिया।
तो प्रियंका के लिए क्या समीरकण बन रहे हैं?
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि सोनिया गांधी के न लड़ने पर रायबरेली से प्रियंका भाग्य आजमा सकती हैं। राहुल गांधी का अमेठी से उतरना भी करीब-करीब तय माना जा रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से राहुल की हार और कांग्रेस के रायपुर अधिवेशन में सोनिया गांधी के बयान से इन सीटों को लेकर चर्चाएं तेज हो गई थीं। रायपुर अधिवेशन में सोनिया ने कहा था-भारत जोड़ो यात्रा मेरी राजनीतिक पारी का अंतिम पड़ाव हो सकती है।
कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश से लोकसभा के सियासी संग्राम में उतर सकती हैं। जबकि कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के रायबरेली से चुनाव लड़ने की संभावना अभी खत्म नहीं हुई है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी रायबरेली और अमेठी में जुट गई हैं। गांधी परिवार के लिए अन्य संभावित सीटों पर भी गुणा- गणित शुरू हो गया है। कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व के नजदीकी सूत्रों का कहना है कि तीसरी रणनीति भी बनाई गई है। यदि सोनिया गांधी रायबरेली और राहुल गांधी अमेठी से मैदान में उतरते हैं तो प्रियंका गांधी को अन्य किसी सीट से मैदान में उतारा जा सकता है। इसके लिए सीटों पर वोटबैंक का मंथन चल रहा है।
प्रियंका के यूपी से चुनाव लड़ने से कांग्रेस को क्या फायदा हो सकता है?
प्रदेश की सियासी नब्ज पर नजर रखने वाले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रो रेहान अख्तर कहते हैं कि प्रियंका के प्रति जनता में आकर्षण हैं। वह हिमाचल, कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश में सक्रिय हैं। जहां भी प्रियंका की जनसभा होती है, लोग उनकी बात को गौर से सुनते हैं। ऐसे में प्रियंका के जरिए पार्टी उत्तर प्रदेश में फिर से खुद को खड़ा कर सकती है। पिछले दिनों प्रियंका ने कहा भी था कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का आदेश होगा तो वह चुनाव लड़ेंगी। प्रियंका अभी चुनावी राज्यों में निरंतर सक्रिय हैं। उम्मीद है कि देर सबेर वह उत्तर प्रदेश में सक्रियता बढ़ाएंगी। लोग प्रियंका गांधी के अंदर उनकी दादी की छवि देखते हैं। उनकी सिर्फ शक्ल ही अपनी दादी से नहीं मिलती बल्कि उनके काम करने का अंदाज भी कुछ वैसा ही है।