जयपुर : राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी ने दो कमेटियों का गठन किया है. बीजेपी ने चुनाव प्रबंधन समिति की कमान नारायण पंचारिया को सौंपी है तो संकल्प समिति (मेनिफेस्टो) के संयोजक केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल बनाए गए हैं. राजस्थान चुनाव को लेकर गठित दोनों कमेटियों में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को जगह नहीं मिल सकी है. ऐसे में सवाल उठने लगा है कि राजस्थान की सियासत में वसुंधरा राजे के साथ क्या ‘खेला’ हो गया है?
राजस्थान की सियासी जंग फतह करने की कवायद में बीजेपी जुटी है. बीजेपी ने सूबे के चुनाव को लेकर दो महत्वपूर्ण कमेटियों का गठन किया है, लेकिन किसी में भी वसुंधरा राजे को जगह नहीं दी गई है. वसुंधरा राजे प्रदेश में बीजेपी की सबसे बड़ी नेता हैं, वो राज्य में दो बार की सीएम रह चुकी हैं और तीसरी बार मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में भी शामिल हैं. इसके बाद भी बीजेपी सीएम फेस को लेकर अपने पत्ते नहीं खोल रही है जबकि वसुंधरा खेमा लगातार प्रेशर पॉलिटिक्स का दांव चल रहा है.
बता दें कि बीजेपी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में किसी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाए जाने के बजाय सामूहिक नेतृत्व में उतरना चाहती है. बीजेपी मोदी के चेहरे पर ही किस्मत आजमाने की कोशिश में है. कई नेता इसके संकेत भी दे चुके हैं, जिसके चलते लगता है कि वसुंधरा राजे ने पार्टी के चुनावी अभियान से किनारा किए हुई हैं. न ही गहलोत सरकार के खिलाफ होने वाले प्रदर्शन में नजर आईं और न ही बीजेपी की बैठकों में दिख रही हैं.
वसुंधरा राजे के करीबी और सात बार के विधायक रहे देवीसिंह भाटी साफ तौर पर कह चुके हैं कि राजस्थान में वसुंधरा राजे के मुकाबले ऐसा कोई चेहरा नहीं जो बीजेपी की सत्ता में वापसी करवा सके. वसुंधरा को चेहरा नहीं बनाया जाता है तो उनके समर्थक तीसरा मोर्चा बनाएंगे. बीजेपी में जिस तरह से मास लीडर और स्थानीय नेताओं को साइड लाइन कर रही है. ये बीजेपी के लिए ठीक नहीं है. राजस्थान में यह हुआ तो बीजेपी को यहां भी हार का सामना करना पड़ेगा.
पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव में उतरने का प्लान
राजस्थान में बीजेपी का अब तक प्लान है कि पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनावी रण में उतरेगी. चुनावी अभियान को धार देने की मुहिम को सीधे नरेंद्र मोदी संभाल रहे हैं. इसके लिए उन्होंने राजस्थान नेताओं के साथ दिल्ली में बैठक भी की थी, जिसमें उन्होंने बीजेपी के सांसदों से फीडबैक लिया था. वसुंधरा राजे भी सांसदों के साथ हुई बैठक में शिरकत की थी लेकिन पीएम मोदी ने सीएम चेहरे को लेकर किसी तरह के कोई संकेत नहीं दिए हैं. ये इस बात का संकेत है कि राजस्थान चुनाव में बीजेपी केंद्र सरकार के काम और पीएम मोदी के चेहरे पर जोर लगा रही है.
2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में अलग ही नारा गूंज रहा था कि पीएम मोदी से बैर नहीं है और वसुंधरा राजे की खैर नहीं. पार्टी पिछले चुनाव में वसुंधरा राजे को आगे करके चुनाव लड़ा था, जिसका खामियाजा भी उठाना पड़ा था. यही वजह है कि बीजेपी इस बार किसी तरह का कोई राजनीतिक रिस्क लेने के मूड में नहीं है. ऐसे में किसी भी स्थानीय चेहरे को आगे करने की बजाय सामूहिक नेतृत्व के साथ चुनाव में उतरने की स्ट्रैटेजी बना रखी है.
वसुंधरा राजे के लिए भी उम्मीद
राजस्थान की सियासत में वसुंधरा राजे को बीजेपी के चुनाव प्रबंधन समिति और संकल्प समिति (मेनिफेस्टो) में जगह नहीं मिलने से उम्मीद खत्म नहीं हुई हैं. अभी भी उनके पास विकल्प बचा हुआ है. राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर सबसे अहम माने जाने वाले इलेक्शन कैंपेन कमेटी की घोषणा होना बाकी है. किसी भी चुनावी राज्य में पार्टी के दिग्गज नेताओं की इलेक्शन कैंपेन कमेटी के चैयरमेन पद पर काबिज होने की होती है, क्योंकि यह वह व्यक्ति होता है जिसके पास पूरी पार्टी के चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी होती है.
वसुंधरा राजे की नजर निश्चित तौर पर इलेक्शन कैंपेन कमेटी की कमान अपने हाथों में लेने ही है, क्योंकि इस कमेटी पर काबिज होने से एक बात साफ हो जाएगी कि चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद की प्रबल दावेदार हो सकती हैं. इसीलिए वसुंधरा राज का विरोधी खेमा यह नहीं चाहता है कि उन्हें कैंपेन कमिटी जिम्मेदारी दी जाए. हालांकि, जनाधार और सियासी पकड़ के मामले में वसुंधरा राजे राजस्थान बीजेपी की सबसे बड़ी नेताओं में एक हैं और उनके सियासी कद का कोई दूसरा नेता नहीं है. ऐसे में बीजेपी के लिए वसुंधरा राजे को इग्नोर करके राजस्थान की सियासी जंग को जीतना आसान नहीं है?