छत्तीसगढ़

किसी व्यक्ति के मूल राज्य तक सीमित नहीं SC/ST एक्ट का दायरा.., बॉम्बे हाईकोर्ट ने कही यह बात

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम का दायरा उस राज्य तक सीमित नहीं किया जा सकता, जहां किसी व्यक्ति को समुदाय का हिस्सा घोषित किया जाता है।

न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे, न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति एन जे जमादार की पूर्ण पीठ ने अपने फैसले में कहा कि यह अधिनियम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अत्याचार को रोकने के लिए बनाया गया था और इसका उद्देश्य एक वर्ग के लोगों के साथ होने वाले अपमान और उत्पीड़न को दूर करना व उन्हें मौलिक, सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक अधिकार सुनिश्चित करना है।

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण)  अधिनियम का दायरा उस राज्य तक सीमित नहीं हो सकता है जहां किसी व्यक्ति को अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय का सदस्य घोषित किया गया है।

अदालत ने कहा, ‘व्यक्ति देश के किसी अन्य हिस्से में, जहां अपराध किया जाता है, इस अधिनियम के तहत संरक्षण का हकदार है, हालांकि उसे वहां अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है।’ पीठ ने यह भी कहा कि सजा के बावजूद अधिनियम के तहत दायर सभी अपील उच्च न्यायालय की एकल पीठ के अधिकार क्षेत्र में होगी।’

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि जाति स्वत: ही किसी व्यक्ति से चिपक जाती है क्योंकि वह उस जाति या समूह के दो व्यक्तियों से जन्म लेता है। पीठ ने कहा, एक व्क्ति के पास कोई विकल्प नहीं है। व्यक्ति के लिए अपनी जाति के बोझ से छुटकारा पाना संभव नहीं है। हालांकि, वह व्यावसायिक समूह से या उस विशेष जाति की सामाजिक स्थिति से बाहर आ सकता है और जाति में अपने साथियों को पीछे छोड़कर सामाजिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ सकता है। 

अदालत ने कहा कि अत्याचार अधिनियम तब लागू किया गया, जब यह महसूस किया गया कि जब भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्य संविधान के तहत उन्हें उपलब्ध अधिकारों का दावा करते हैं और वैधानिक सुरक्षा की मांग करते हैं, तो उन्हें डराया जाता है, उन्हें आंतकित किया जाता है या अपमानित किया जाता है। 

इसमें कहा गया है, ‘जातिविहीन समाज का निर्माण, जहां एक व्यक्ति समान व्यवहार का हकदार है, एक स्वतंत्र भारत के लिए हासिल किया जाने वाला अंतिम सपना है, ताकि मानव का एक वर्ग मौजूद रहे और देश के सभी नागरिकों को मुक्ति मिले और उनके साथ समान व्यवहार किया जाए, जैसा कि संविधान निर्माताओं ने सपना देखा था।’