नईदिल्ली : अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने का निर्णय अकेले राजनीतिक कार्यपालिका का नहीं था, इसमें संसद को भी भरोसे में लिया गया था। पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले इस अनुच्छेद को रद्द करने के फैसले को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर करने वाले वकील अश्विनी उपाध्याय की तरफ से यह दलील रखी गई। बहस 4 सितंबर को भी जारी रहेगी।
मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष उपाध्याय की तरफ से दलील रखते हुए वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा, अनुच्छेद 370 (3) में उल्लिखित ‘सिफारिश’ शब्द का अर्थ यह था कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सहमति आवश्यक नहीं थी। उन्होंने आगे कहा, प्रावधान को निरस्त करना एक कार्यकारी निर्णय नहीं था और संपूर्ण संसद को विश्वास में लिया गया था जिसमें जम्मू-कश्मीर के संसद सदस्य (सांसद) भी शामिल थे।
अनुच्छेद 370 (3) कहता है कि इस अनुच्छेद के पूर्वगामी प्रावधानों में किसी भी बात के बावजूद, राष्ट्रपति सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकते हैं कि यह अनुच्छेद लागू नहीं होगा या केवल ऐसे अपवादों और संशोधनों के साथ और ऐसी तारीख से लागू होगा जो वह निर्दिष्ट कर सकता है बशर्ते कि राष्ट्रपति की ओर से ऐसी अधिसूचना जारी करने से पहले खंड (2) में निर्दिष्ट राज्य की संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक होगी।
समान स्वतंत्रता नहीं प्राप्त थी
द्विवेदी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा और भारतीय संविधान सभा के बीच को अंतर को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा, जम्मू-कश्मीर के लिए संविधान बनाते समय इसकी संविधान सभा को वही स्वतंत्रता नहीं मिली थी जो भारत की संविधान सभा को प्राप्त थी।
14वें दिन हुई सुनवाई
पीठ, जिसमें जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल हैं, अनुच्छेक को निरस्त करने के केंद्र के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर 14वें दिन सुनवाई कर रही थी। पीठ के समक्ष द्विवेदी ने कहा, जम्मू-कश्मीर संविधान सभा भारतीय संविधान के विभिन्न आदेशों सहित विभिन्न चीजों से बंधी हुई थी। उन्होंने कहा, इसे न्याय, स्वतंत्रता, भाईचारा सुनिश्चित करना था। यह अनुच्छेद 1 के जरिये भी बंधा हुआ था। वह यह घोषित नहीं कर सका कि हम भारत की संघीय इकाई नहीं हैं। वे यह नहीं कह सकते थे कि उनके क्षेत्र का कोई भी हिस्सा भारत का हिस्सा नहीं हो सकता।
अनुच्छेद 370 हमेशा अस्थायी प्रावधान माना गया
सरकार के फैसले का बचाव करते हुए द्विवेदी ने कहा कि अनुच्छेद 370 को हमेशा एक अस्थायी प्रावधान ही माना गया। डॉ. बीआर आंबेडकर, एनजी आयंगर (संविधान सभा में), जवाहर लाल नेहरू और गुलजारी लाल नंदा (संसद में) के भाषण स्पष्ट संकेत देते हैं कि कि जम्मू-कश्मीर राज्य को अन्य राज्यों के समान देश में पूरी तरह से शामिल करने की परिकल्पना शुरुआत से ही की गई थी। इसलिए, भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 का जिक्र एक अस्थायी और तत्कालिक व्यवस्था के रूप में किया गया है।