छत्तीसगढ़

आसान नहीं राजनीति की पिच पर अजहरुद्दीन की दूसरी पारी, इस धुरंधर से है मुकाबला, क्या है इस सीट का राजनीतिक समीकरण ?

नईदिल्ली : क्रिकेट के मैदान पर अपनी कलात्मक बैटिंग और स्लिप में अपनी फील्डिंग के लिए मशहूर रहे भारतीय टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन ने राजनीति की पारी में शानदार डेब्यू किया था और 2009 में मुरादाबाद सीट से अपने पहले ही चुनाव में जीत दर्ज कर सांसद बने, लेकिन यह पारी लंबी नहीं चली और अगले लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद अजहरुद्दीन कोई चुनाव नहीं जीत पाए.

अब तेलंगाना विधानसभा चुनाव में उन्हें दूसरी पारी खेलने का मौका मिला है. कांग्रेस ने उन्हें जुबली हिल्स से टिकट दिया है. अजहरुद्दीन को अब यहां जीत के लिए ‘अच्छी बैटिंग’ के साथ-साथ बुद्धिमानी से ‘अच्छी फील्डिंग’ भी करनी होगी. दरअसल, जुबली हिल्स की पिच पर उनका मुकाबला भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के मगंती गोपीनाथ से है, जो पहले से यहां जमे हुए हैं.

तेलंगाना में मौका मिलने से हैं खुश

अजहरुद्दीन ने अब जुबली हिल्स की गलियों में प्रचार करना शुरू कर दिया है. यह वीआईपी इलाका है जहां बाहुबली के निर्देशक एसएस राजामौली और आरआरआर फिल्म स्टार राम चरण जैसे बड़े नाम रहते हैं. अजहरुद्दीन वैसे तो हैदराबादी ही हैं, लेकिन राज्य की राजनीति में उन्होंने 14 साल बाद एंट्री की है. अजहर ने 2009 में राजनीति में एंट्री की थी. तब उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद सीट से जीत दर्ज की और 2014 तक सांसद रहे.

2014 में राजस्थान के टोंक-सवाई माधोपुर से सांसद का चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. अब वह अपने प्रदेश में आकर खुश हैं. हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में अजहरुद्दीन ने कहा, “मैं हमेशा हैदराबाद के लिए कुछ करना चाहता था. हालांकि पिछले कुछ वर्षों में चीजें उस तरह से नहीं हुईं जैसा मैं चाहता था, लेकिन इस बार मैं अडिग था.”

अल्पसंख्यक ओर मिश्रित आबादी निर्णायक

जुबली हिल्स पहले खैरताबाद विधानसभा सीट का हिस्सा था. तब खैरताबाद करीब छह लाख वोटों के साथ राज्य का सबसे बड़ा विधानसभा क्षेत्र बन गया था. 2002 में परिसीमन के बाद खैरताबाद को दो हिस्सों में बांटा गया, दूसरा हिस्सा जुबली हिल्स विधानसभा क्षेत्र कहलाया. वह खुद भी जुबली हिल्स निर्वाचन क्षेत्र के निवासी हैं. इस एरिया में एक बड़ी अल्पसंख्यक आबादी के साथ मिश्रित आबादी रहती है. जुबली हिल्स निर्वाचन क्षेत्र में वोटरों की संख्या 3,70,000 है. इसमें मुस्लिम वोटरों की संख्या करीब 98,000 है. ईसाई वोटर 30,000 हैं. एससी और एसटी वोटर की संख्या 28,000 और ओबीसी वोटरों की संख्या 24,000 है. इसके अलावा रेड्डी और कम्मा समुदाय के वोटर भी यहां हैं.

अजहरुद्दीन भी मान रहे कड़े मुकाबले की बात

अजहरुद्दीन खुद भी मानते हैं कि इस सीट पर मुकाबला कड़ा रहेगा. वह कहते हैं “इस निर्वाचन क्षेत्र में हमारे लिए एक कठिन लड़ाई है.” वहीं अजहरुद्दीन के लिए चुनाव प्रचार की योजना बना रहे एक कांग्रेसी पार्षद ने कहा, “बेशक प्रदेश में एक मजबूत सत्ता-विरोधी लहर है, लेकिन इस सीट पर मौजूदा विधायक काफी समय से काम कर रहे हैं. उन्होंने बूथ-स्तरीय समितियों का गठन कर रखा है. वह पिछले एक साल से निर्वाचन क्षेत्र में लोगों के बीच घूम रहे हैं.” वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता कलुवा सुजाता अजहरुद्दीन की जीत को लेकर आश्वस्त हैं. वह कहते हैं कि “यह सीट एक जीतने वाली सीट है और पारंपरिक वोट उनके होंगे.”

स्थानीय समस्याओं को उठाकर जनता को दे रहे भरोसा

चुनाव प्रचार के दौरान अजहरुद्दीन अपनी मुस्कुराहट के साथ लोगों का अभिवादन करते हुए जल-जमाव और सीवर ओवरफ्लो की समस्या को उठाते और उसके समाधान का वादा करते हुए लोगों से वोट मांग रहे हैं. वह कहते हैं “मुझे खुशी है कि विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्र संसदीय क्षेत्र जितने बड़े नहीं हैं. संसदीय क्षेत्र में मुझे एक जगह से दूसरी जगह तक जाने में तीन घंटे से अधिक का समय लगता था. पर यहां ऐसा नहीं है. यहां मैं सभी मतदाताओं से संपर्क करने करने को लेकर आश्वस्त हूं.”

इस सीट पर अजहरुद्दीन के सामने रहेंगी ये चुनौतियां

अजहरुद्दीन के सामने इस सीट पर चुनौती कम नहीं होगी. दरअसल, इस सीट पर पिछले 15 साल में कांग्रेस का वोट बैंक अर्श से फर्श पर आ गया है. 2018 में हुए चुनाव में विष्णु रेड्डी बुरी तरह हार गए थे. यहां कांग्रेस कितनी नीचे जा चुकी है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस सीट पर पार्टी को 55,000 से अधिक वोट मिलते थे, वहां 2018 चुनाव में केवल 4,800 वोट मिले थे. अजहरुद्दीन के सामने बीआरएस उम्मीदवार मगंती गोपीनाथ बड़ी चुनौती होंगे. वह एक मजबूत कम्मा नेता हैं, जो चुनाव से पहले से अपने समर्थकों से जुड़े हुए हैं. हालंकि गोपीनाथ खुद मानते हैं कि अजहरुद्दीन के आने से अब इस सीट पर मुकाबला बराबरी का होगा.