नईदिल्ली : हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने नोमा रोग को उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों (एनटीडी) की अपनी आधिकारिक लिस्ट में शामिल कर लिया है. इस लिस्ट में सर्पदंश का जहर, खुजली, जम्हाई, ट्रेकोमा, लीशमनियासिस और चगास रोग जैसे उन बीमारियों को रखा गया है जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों यानी एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका, मेक्सिको और प्रशांत द्वीपों में आम है.
यहां के लोगों में इन बीमारियों के होने की एक वजह ये भी है कि इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के पास पीने के लिए साफ पानी या मानव अपशिष्ट के निपटारे के लिए सुरक्षित तरीकों की सुविधा नहीं है.
क्या है नोमा
यह मुंह और चेहरे पर होने वाली एक गंभीर बीमारी है. जिसे ‘कैंक्रम ओरिस’ या ‘गैंग्रीनस स्टोमाटाइटिस’ के नाम से भी जाना जाता है. इस बीमारी का नाम ग्रीक शब्द ‘नोमो’ से लिया गया है जिसका मतलब है खा जाना. क्योंकि नोमा चेहरे के टिशूज और हड्डियों को खा जाता है.
यह दुनिया की सबसे कम पहचानी जाने वाली स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक है. आम तौर पर यह बीमारी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 2 से 6 वर्ष तक के बच्चों को प्रभावित करता है. लेकिन एचआईवी और ल्यूकेमिया जैसी बीमारियों से पीड़ित कम इम्युनिटी वाले वयस्कों में भी इस बीमारी का होना आम है.
नोमा गैर संक्रामक बीमारी है यानी इसे छूने या नोमा से पीड़ित व्यक्ति के आस पास रहने से सामने वाले में इस रोग के संक्रमण का खतरा नहीं होता. डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार नोमा बीमारी ज्यादातर उन क्षेत्रों में होती है जहां गरीबी, कुपोषण और कम स्वच्छता हो. इन बीमारियों के मृत्यु दर भी लगभग 90% अधिक है.
नोमा रोग के लक्षण
- यह रोग मुंह में बैक्टीरिया से होने वाली मसूड़ों की सूजन के रूप में शुरू होता है. प्रभावी ढंग के इलाज योग्य इस चरण को एक्यूट नेक्रोटाइजिंग मसूड़े की सूजन के रूप में भी जाना जाता है.
- अगर इस सूजन का समय पर इलाज न किया जाए तो यह बैक्टीरिया तेजी से वहां के टिशू और हड्डियों को क्षति पहुंचाना शुरू करता है और ज्यादातर मामलों में इस रोग के कारण मृत्यु हो जाती है. इतना ही नहीं जो लोग इस बीमारी से बच जाते हैं उन्हें जिंदगी भर चेहरे की विकृति का सामना करना पड़ता है.
- यूएन एचआरसीएसी की एक रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि जो लोग, खासकर बच्चे नोमा बीमारी से बच जाते हैं उन्हें जिंदगी भर सांस लेने, निगलने, बोलने, दृष्टि और मुंह बंद करने में तकलीफ झेलनी पड़ती है. इतना ही नहीं बाकियों से अलग चेहरा हो जाने के कारण ऐसे बच्चों को समाज से भी अलग कर दिया जाता है. उन्हें जिंदगी भर भेदभाव का सामना करना पड़ता है.
इस बीमारी का इलाज
यूएन एचआरसीएसी के रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार अगर शुरुआत में ही इस बीमारी का इलाज हो जाए तो मरीज को चेहरे के विकार और बीमारी दोनों से बचाया जा सकता है. पहले चरण में ही इलाज मिले तो नोमा की पूरी शुरुआत को रोका जा सकता है.
शुरुआती चरण का ये इलाज काफी आसान भी जैसे एंटीबायोटिक लेना, समय समय पर मुंह को धोना और सही पोषण लेना. लेकिन एक बार नोमा फैल जाने के बाद चेहरे के विकार को खत्म करने के लिए सर्जरी की मदद भी नहीं ली जा सकती. इसका सबसे बड़ा कारण है कि इस तरह की सर्जरी काफी महंगी और जटिल होती है.
एनटीडी बीमारियों के लिस्ट में कितने रोग शामिल
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग यानी एनटीडी स्थितियों का एक विविध समूह है, जो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में प्रचलित है, जहां वे गरीब समुदायों में रहने वाले 1 अरब से ज्यादा लोगों को प्रभावित करते हैं.
उन्हें उपेक्षित कहा जाता है क्योंकि ये बीमारियां ज्यादातर वैश्विक स्वास्थ्य एजेंडे में शामिल नहीं होता है. इस लिस्ट में शामिल बीमारियां ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों, संघर्ष क्षेत्रों और संसाधनों की सीमित उपलब्धता वाले दुर्गम क्षेत्रों में पनपते हैं.
एनटीडी की इस लिस्ट में 21 बीमारियां शामिल है. जिनमें चगास रोग, डेंगू, चिकनगुनिया, लीशमनियासिस, कुष्ठ रोग, लिम्फैटिक फाइलेरियासिस, मायसेटोमा आदि शामिल है.
भारत और उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (एनटीडी)
साल 2017 में डब्ल्यूएचओ ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके अनुसार भारत 82 प्रतिशत शहरों और जिलों में कुष्ठ रोग को खत्म करने में सक्षम था. उसी साल स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने भी इस बात का जिक्र किया था कि भारत ने देश से पुरानी बीमारी यॉज़ के साथ-साथ संक्रामक ट्रैकोमा को भी लगभग खत्म कर दिया है.
एनटीडी के लिस्ट में जिन 21 बीमारियों को जगह दी गई है. उसमें से भारत में सबसे आम बीमारी है लिम्फेटिक फाइलेरियासिस, विसेरल लीशमनियासिस, रेबीज, लेप्टोस्पायरोसिस, डेंगू और मृदा-संचारित हेलमाइंथिक संक्रमण (एसटीएच).
ऊपर बताया गया है कि एनटीडी लिस्ट में शामिल बीमारियां गरीबी में रहने वाले लोगों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है और यही कारण है कि भारत में भी हर साल कई लोग इन बीमारियों से पीड़ित होते हैं.
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, भारत दुनिया के अन्य देशों की तुलना में कई प्रमुख एनटीडी के मामलों में नंबर 1 स्थान पर है. हालांकि भारत को लेकर इस संबंध में अच्छी खबर ये है कि इस देश ने कई बीमारियों को नियंत्रित करने में जबरदस्त प्रगति की है.
अब भारत में कुष्ठ रोग एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता नहीं रह गया है. इसके अलावा फाइलेरिया के प्रति संवेदनशील लोगों के लिए बड़े पैमाने पर उपचार कवरेज भी हासिल किया गया है.