छत्तीसगढ़

ऐसे तो टुकड़ों में बंट जाएगा बंगाल! एक प्रदेश में 3 राज्यों की मांग क्यों?

कोलकाता : ब्रिटिश काल में साल 1905 में लार्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन की घोषणा की थी. लार्ड कर्जन की घोषणा के बाद पूरा बंगाल जल उठा था और इसके खिलाफ पूरे बंगाल में उग्र प्रदर्शन हुए थे और अंततः लार्ड कर्जन को विभाजन का प्रस्ताव वापस लेना पड़ा था. लेकिन साल 1947 में देश को आजादी तो मिली, लेकिन बंगाल पूर्वी बंगाल (वर्तमान में बांग्लादेश) और पश्चिम बंगाल में विभाजित हो गया. उस विभाजन का दर्द अभी भी बंगाल के लोग नहीं भूले हैं. ओपार बांग्ला और एपार बांग्ला (उस पार बांग्लादेश और इस पार पश्चिम बंगाल) में अभी भी लोगों की रिश्तेदारियां हैं और साल 1971 के बांग्लादेश युद्ध के समय भी काफी लोग पश्चिम बंगाल और देश के अन्य सीमावर्ती इलाकों में पलायन के लिए बाध्य हुए थे.

देश विभाजन के समय डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी के प्रयास से पश्चिम बंगाल के कई जिले पूर्वी बंगाल में शामिल नहीं होने बच गये और पश्चिम बंगाल का अस्तित्व बच पाया था. लेकिन समय-समय पर पश्चिम बंगाल में विभाजन की मांग उठती रही है. बुधवार को भाजपा के बंगाल ईकाई के अध्यक्ष और केंद्रीय राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और उन्होंने उत्तर बंगाल के आठ राज्यों को पूर्वोत्तर राज्यों के साथ विलय का प्रस्ताव दिया.

हालांकि बीजेपी का कहना है कि पार्टी बंगाल विभाजन के खिलाफ है. सुकांत मजूमदार ने उत्तर बंगाल को नॉर्थ ईस्टर्न काउंसिल में शामिल करने का प्रस्ताव दिया है, ताकि उत्तर बंगाल को भी सिक्किम की तरह उत्तर पूर्वी राज्यों के विकास के मद में मिलने वाले आवंटन का लाभ मिल सके.

ऐसा नहीं है कि पश्चिम बंगाल में अभी उत्तर बंगाल को अलग राज्य की मांग उठी है. इसके पहले भी उत्तर बंगाल में अलग राज्य की मांग उठती रही है. केवल उत्तर बंगाल में ही दार्जिलिंग में अलग गोरखालैंड की मांग, कूचबिहार में ग्रेटर कूचबिहार की मांग, कामतापुरी अलग राज्य की मांग और दक्षिण बंगाल में अलग राज्य रार बंगाल गठित करने की मांग उठती रही है.

सुकांत मजूमदार से पहले साल 2021में पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री और अलीपुरद्वार से पूर्व सांसद जॉन बारला सहित कुछ भाजपा नेताओं ने उत्तर बंगाल के आठ जिलों कूचबिहार, दार्जिलिंग, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर, जलपाईगुड़ी, मालदा, अलीपुरद्वार और कलिम्पोंग को मिलाकर एक केंद्र शासित प्रदेश बनाने का सुझाव दिया था. जॉन बारला की मांग पर जब हंगामा मचने लगा था, उस समय प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने उस मांग से किनारा कर लिया था.

उत्तर बंगाल की सियासत में बीजेपी का दबदबा

उत्तर बंगाल के इन जिलों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जातियों का बाहुल्य है. यहां के लोगों ने साल 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के समर्थन में वोट दिया है. उत्तर बंगाल राज्य में आठ जिलों आठ लोकसभा क्षेत्र और 54 विधानसभा क्षेत्र हैं. इनमें से छह पर बीजेपी का कब्जा है. साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में बीजेपी सीटों की संख्या 18 से घटकर 12 हो गई. वहीं उत्तर बंगाल में केवल एक लोकसभा सीट कमी है. उत्तर बंगाल की आठ लोकसभा सीटों में से छह पर बीजेपी का कब्जा है.

उत्तर बंगाल के इन आठ जिलों की सीमाएं नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से साझा करती है और रणनीतिक दृष्टि से भी काफी अहम हैं. इन जिलों में कोचेस, राजबंशी, गोरखा और आदिवासी जातियां हैं. इससे पहले अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद (एबीएवीपी), गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम), कामतापुर पीपुल्स पार्टी और अन्य को उत्तर बंगाल के अलग राज्य की मांग की थी.

पहले भी उठ चुकी है अलग उत्तर बंगाल की मांग

ऐसा नहीं है कि उत्तर बंगाल में पहली बार अलग राज्य की मांग उठ रही है. कामतापुर प्रोग्रेसिव पार्टी, जॉय बिरसा मुंडा उलगुलान, एससी/एसटी आंदोलन समिति, प्रोग्रेसिव पीपुल्स पार्टी, जीजेएम (बिमल गुरुंग), कामतापुर पीपुल्स पार्टी (यूनाइटेड), ग्रेटर कूच बिहार पीपुल्स एसोसिएशन, अखिल भारतीय राजबंशी समाज और भूमिपुत्र उन्नयन समिति जैसे नौ संगठनों ने इससे पहले भी अलग उत्तर बंगाल राज्य की मांग की थी. उत्तर बंगाल अलग राज्य की मांग को लेकर पहले भी कई आंदोलन हो चुके हैं.

दार्जिलिंग में अलग गोरखालैंड की मांग

उत्तर बंगाल का दार्जिलिंग और पहाड़ी इलाकों में अलग गोरखालैंड राज्य गठन करने की मांग को लेकर हिंसक आंदोलन हो चुके हैं. अलग गोरखालैंड राज्य की मांग के लिए सबसे गोरखा नेशनल लिबरेशन नेशनल लिबरेशन फ्रंट (GNLF) के संस्थापक सुभाष घीसिंग ने 1980 के दशक में आंदोलन किया था. तात्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के प्रयास से त्रिपक्षीय समझौते के बाद दार्जिलिंग में शांति आई थी, लेकिन फिर सुभाष घीसिंग के सहयोगी बिमल गुरुंग ने GNLF से अलग होकर अपनी पार्टी गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (GJM) बनाई और अलग गोरखालैंड की मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन किया. इसके मद्देनजर साल 2017 में दार्जिलिंग में 104 दिनों का बंद रहा, लेकिन बाद में गुरुंग और अन्य नेताओं के खिलाफ कार्रवाई हुई. जीटीए का गठन किया गया है. फिलहाल वहां शांति है, लेकिन अभी भी अलग गोरखालैंड की मांग उठती रहती है.