छत्तीसगढ़

के. कविता की जमानत पर सुनवाई 27 अगस्त तक टली; जाति व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित करने संबंधी याचिका खारिज

नईदिल्ली : प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि वह दिल्ली आबकारी नीति में कथित घोटाले से जुड़े धन शोधन मामले में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की नेता के कविता की जमानत अर्जी पर 22 अगस्त तक जवाब दाखिल करेगी। ईडी और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की तरफ से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ को बताया कि मामले में सीबीआई का जवाबी हलफनामा पहले ही दाखिल किया जा चुका है। राजू ने कहा कि ईडी का जवाबी हलफनामा ‘तैयार किया जा रहा है’ और इसे 22 अगस्त तक दाखिल कर दिया जाएगा। इसके बाद पीठ ने मामले की सुनवाई 27 अगस्त तक के लिए टाल दी।

हाईकोर्ट के फैसले को दी गई है चुनौती
शीर्ष अदालत ने 12 अगस्त को कविता की उन याचिकाओं पर ईडी और सीबीआई से जवाब मांगा था, जिनमें दोनों मामलों में उन्हें जमानत देने से इनकार करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने दोनों मामलों में कविता की जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि वह प्रथम दृष्टया दिल्ली आबकरी नीति 2021-22 के निर्माण एवं कार्यान्वयन से जुड़ी आपराधिक साजिश की मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक प्रतीत होती हैं। यह नीति बाद में रद्द कर दी गई थी।

मार्च में के कविता को किया गया था गिरफ्तार
सीबीआई और ईडी ने आबकारी नीति के निर्माण एवं कार्यान्वयन में कथित भ्रष्टाचार और धन शोधन को लेकर अलग-अलग मामले दर्ज किए हैं। ईडी ने कविता (46) को 15 मार्च को हैदराबाद के बंजारा हिल्स स्थित उनके आवास से गिरफ्तार किया था। वहीं, सीबीआई ने भ्रष्टाचार के मामले में उन्हें 11 अप्रैल को तिहाड़ जेल से गिरफ्तार किया था। कविता ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को खारिज किया है।

जाति व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित करने संबंधी याचिका खारिज
उच्चतम न्यायालय ने जाति व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित करने के निर्देश देने का अनुरोध करने वाली याचिका को मंगलवार को खारिज कर दिया। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं बनता। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, संविधान में शुरुआत से ही अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का उल्लेख है। उच्चतम न्यायालय वजीर सिंह पूनिया द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कहा गया था कि जाति व्यवस्था मौलिक अधिकारों के खिलाफ है।