नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस उज्जल भुइंया ने शुक्रवार को केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई को जमकर फटकार लगाई। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस भुइंया ने कहा कि केजरीवाल की गिरफ्तारी अनुचित थी। जस्टिस भुइंया ने सीबीआई की आलोचना करते हुए कहा कि उसे पिंजरे में बंद तोता होने की धारणा को दूर करना चाहिए। उन्होंने सीबीआई द्वारा केजरीवाल को गिरफ्तार करने के समय पर सवाल उठाते हुए कहा कि सीबीआई की गिरफ्तारी का उद्देश्य केजरीवाल को जेल से बाहर आने से रोकना था।
‘लोकतंत्र में धारणा मायने रखती है’
जस्टिस भुइंया ने कहा कि ‘सीबीआई देश की एक प्रमुख जांच एजेंसी है। यह जनहित में है कि सीबीआई न केवल निष्पक्ष दिखे, बल्कि उसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाने वाली किसी भी धारणा को दूर करने की भी उसे हरसंभव कोशिश करनी चाहिए।’ उन्होंने कहा कि ‘कानून के शासन द्वारा संचालित लोकतंत्र में धारणा मायने रखती है। जांच एजेंसी को निष्पक्ष होना चाहिए। कुछ समय पहले इसी अदालत ने सीबीआई की निंदा करते हुए इसकी तुलना पिंजरे में बंद तोते से की थी। यह जरूरी है कि सीबीआई इस धारणा को दूर करे।’
‘असहयोग का मतलब आत्म-दोषी होना नहीं’
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने कहा कि ‘जब केजरीवाल को पीएमएलए कानून के कठोर प्रावधानों के तहत जमानत मिल चुकी है तो उसी अपराध के संबंध में सीबीआई द्वारा उन्हें हिरासत में लेना पूरी तरह से अस्वीकार्य है। सीबीआई ने 22 महीनों तक अपीलकर्ता (केजरीवाल) को गिरफ्तार करने की जरूरत महसूस नहीं की, लेकिन जब वह ईडी मामले में रिहाई के कगार पर थे, तो तब सीबीआई द्वारा जल्दबाजी में अपीलकर्ता की गिरफ्तारी समझ से परे है।’ जस्टिस भुइंया ने केजरीवाल की गिरफ्तारी का सीबीआई द्वारा विरोध किए जाने पर कहा कि ‘केजरीवाल द्वारा टालमटोल वाले जवाबों का हवाला देकर गिरफ्तारी और हिरासत को सही नहीं ठहराया जा सकता। असहयोग का मतलब आत्म-दोषी होना नहीं हो सकता।’
ईडी मामले में केजरीवाल को जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शर्त लगाई थी कि उनके सीएम कार्यालय में प्रवेश करने और सरकारी फाइलों पर हस्ताक्षर करने पर रोक रहेगी। इन शर्तों पर जस्टिस भुइंया ने कहा कि मैं न्यायिक अनुशासन के कारण केजरीवाल पर लगाई गई शर्तों पर टिप्पणी नहीं करूंगा क्योंकि यह अलग ईडी मामला था। उल्लेखनीय है कि दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा दिल्ली शराब नीति और इसके क्रियान्वयन से जुड़ी कथित अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच के आदेश के बाद 2022 में आबकारी नीति को खत्म कर दिया गया था। सीबीआई और ईडी के अनुसार, आबकारी नीति को संशोधित करते समय अनियमितताएं की गईं और लाइसेंस धारकों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया।