नईदिल्ली : म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के फिल्म दंगल का यह डायलॉग भारतीय बेटियों पर पूरी तरह से सटीक बैठता है. खासकर जब बात आसमान की ऊंचाइयां छूने की हो तो. भारत की बेटी कल्पना चावला ने बादलों से भी ऊपर अंतरिक्ष में जाकर दुनिया की भलाई के लिए अपनी जिंदगी न्योछावर कर दी तो अब एक और बेटी सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में फंसी हैं. इस बार वह अपना जन्मदिन भी अंतरिक्ष में ही मना रही हैं. इसी मौके पर आइए जान लेते हैं सुनीता विलियम्स की जिंदगी के कुछ रोचक पहलू.
वैसे तो अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स अमेरिकी नागरिक हैं पर उनकी जड़ें गहराई तक भारत में हैं. 19 सितंबर 1965 को अमेरिका के यूक्लिड में जन्मीं सुनीता विलियम्स के गुजरात में झुलसाणा के रहने वाली हैं. उनके पिता डॉ. दीपक पांड्या का जन्म गांधीनगर से 40 किमी दूर इसी गांव में हुआ था, जहां आज सात हजार लोग रहते हैं. साल 1957 में डॉ. दीपक पांड्य मेडिकल की पढ़ाई के लिए अमेरिका गए तो वहीं बस गए. वहां उन्होंने उर्सलीन बोनी से विवाह किया. इन्हीं दोनों की बेटी हैं सुनीता विलियम्स.
नेवी से स्पेस की दुनिया में कैसे आईं?
सुनीता ने अपनी हाईस्कूल की पढ़ाई नीधम हाईस्कूल, नीधम से पूरी की. फिर साल 1983 में भौतिक विज्ञान में स्नातक की उपाधि हासिल की. अमेरिकी नौसेना अकादमी में 1987 में प्रवेश लिया. इसके बाद साल 1995 में फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग प्रबंधन में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की. सुनीता के जीवन में टर्निंग पॉइंट आया जब 1998 में वह नासा के अंतरिक्ष यात्री कार्यक्रम में शामिल हुईं. इसके लिए रूस की रशियन फेडरल स्पेस एजेंसी ने मॉस्को में उन्हें ट्रेनिंग दी.
सुनीता विलियम्स को जून 1998 में नासा द्वारा अंतरिक्ष यात्री के रूप में चुना गया था. अगस्त 1998 से उन्होंने प्रशिक्षण शुरू कर दिया था. पहली बार 9 दिसंबर 2006 को उन्होंने साथी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ उड़ान भरी और 11 दिसंबर 2006 को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंची थीं. इस अभियान के दौरान चालक दल के सदस्य के रूप में सुनीता विलियम्स ने फ्लाइट इंजीनियर के रूप में काम किया था. तब उन्होंने 29 घंटे और 17 मिनट के कुल समय में चार बार अंतरिक्ष में चहलकदमी कर महिलाओं के लिए विश्व रिकॉर्ड बनाया था. 22 जून 2007 को कैलिफोर्निया के एडवर्ड्स एयरफोर्स बेस पर उनका अंतरिक्ष यान लौटा और चालक दल के साथ वह सकुशल पृथ्वी पर लौट आईं.
सुनीता अपनी तीसरी अंतरिक्ष उड़ान पर हैं. इस बार वह 6 जून को रात 11 बजे बोइंग के स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट से अपने साथी बुच विल्मोर के साथ इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंचीं, जिसके बाद स्पेसक्राफ्ट में खराबी आ गई. वह आठ दिन की यात्रा पर गई थीं पर फरवरी 2025 में ही वापस आने की उम्मीद है.
2012 में दूसरी अंतरिक्ष यात्रा पर गईं
सुनीता विलियम्स ने अपनी दूसरी अंतरिक्ष यात्रा 14 जुलाई 2012 को रूस के सोयुज कमांडर यूरी मालेनचेंको और जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी के फ्लाइट इंजीनियर अकिहिको होशिदे के साथ कजाकिस्तान के बैकोनूर कोस्मोड्रोम से शुरू की थी. 17 जुलाई 2012 को वह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंचीं और वहां चार महीने बिताए. 18 नवंबर 2012 को उनका अंतरिक्ष यान कजाकिस्तान में उतरा और इसके साथ ही 50 घंटे और 40 मिनट अंतरिक्ष में चहलकदमी का रिकॉर्ड भी अपने नाम किया.
सुनीता विलियम्स को अब तक कुल 30 अलग-अलग विमानों में 3,000 घंटे से ज्यादा की भी उड़ान भरने का अनुभव है. उन्होंने नासा के अलावा सोसायटी ऑफ एक्सपेरिमेंटल टेस्ट पायलट्स, मेरिकी हेलिकॉप्टर एसोसिएशन और सोसायटी ऑफ फ्लाइट टेस्ट इंजीनियर्स जैसी संस्थाओं के साथ भी काम किया है.
इतनी जगह में सोतीं हैं, टॉयलेट का पानी पीती हैं
फिलहाल सुनीता इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में दूसरे नौ अंतरिक्ष यात्रियों के साथ छह बेडरूम वाले घर जितनी बड़ी जगह में समय बिता रही हैं. वह इसे अपने पसंदीदा स्थानों में से एक बताती हैं. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों की धरती से हर पांच मिनट पर मिशन कंट्रोल टीम निगरानी करती है. अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में सुबह जल्दी उठते हैं और साढ़े 6 बजे अपने-अपने फोन बूथ के साइज के बड़े स्लीपिंग क्वार्टर से निकलते हैं.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के हार्मनी नामक मॉड्यूल में सभी इकट्ठा होते हैं, जो कॉमन रूम की तरह है. यहां से निकलकर अंतरिक्ष यात्री बाथरूम जाते हैं. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में अंतरिक्ष यात्रियों के पसीने और टॉयलेट को रिसाइकिल कर पानी बनाया जाता है और वे इसी को पीते हैं.
दोनों अभियान पूरा कर गांव आईं सुनीता
भले ही सुनीता विलियम्स का जन्म भारत में नहीं हुआ है पर उन्होंने अपनी विरासत और संस्कृति से बड़ा लगाव है. वह एक बार अपने साथ अंतरिक्ष में श्रीमद्भगवद गीता की एक प्रति और भगवान गणेश की मूर्ति लेकर गई थीं. उनका अपनी जड़ों से कितना गहरा नाता है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने पहले के दोनों अंतरिक्ष अभियान पूरा करने के बाद वह भारत आईं और अपने गांव गईं. पहली बार वह 2007 और दूसरी बाद 2013 में गुजरात के अपने गांव गईं. वर्तमान अभियान के दौरान जब सुनीता इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में फंसी हैं, तो उनकी सकुशल वापसी के लिए गांव में पूजा-पाठ निरंतर जारी है.
भारत समेत अलग-अलग देश कर चुके सम्मानित
करियर की ऊंचाइयां छू चुकीं सुनीता विलियम्स को कई सम्मान मिल चुके हैं. इनमें नेवी कमेंडेशन मेडल और ह्यूमैनिटेरियन सर्विस मेडल शामिल हैं. भारत सरकार भी देश की इस बेटी को साल 2008 में पद्म भूषण से नवाज चुकी है. रूस ने मेडल ऑफ मेरिट इन स्पेस एक्सप्लोरेशन से उन्हें सम्मानित किया है तो स्लोवेनिया ने गोल्डन ऑर्डर ऑफ मेरिट से नवाजा है. नासा का प्रतिष्ठित स्पेसफ्लाइट मेडल भी सुनीता के पास है.