छत्तीसगढ़

हरियाणा में कुमारी सैलजा की नाराजगी कांग्रेस को कितनी पड़ेगी भारी, खट्टर के सियासी ऑफर का गणित

नईदिल्ली : एक तरफ कुमारी सैलजा की नाराजगी, दूसरी तरफ मनोहर लाल खट्टर के सियासी ऑफर ने कांग्रेस की टेंशन बढ़ा दी है. कहा जा रहा है कि सैलजा अगर सच में नाराज हुईं तो 10 साल से सियासी वनवास को दूर करने में जुटी ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस को हरियाणा में झटका लग सकता है. वजह है कुमारी सैलजा का सियासी कद और हरियाणा का चुनावी समीकरण.

हरियाणा विधानसभा की 90 सीटों के लिए 5 अक्टूबर को मतदान प्रस्तावित है, जहां कांग्रेस और बीजेपी में सीधा मुकाबला है.

कांग्रेस में कुमारी सैलजा नाराज क्यों?

हरियाणा में विधानसभा चुनाव के बीच सिरसा से सांसद कुमारी सैलजा की नाराजगी की खबर है. कहा जा रहा है कि टिकट बंटवारे में तरजीह न मिलने से सैलजा नाराज हैं. कांग्रेस ने जिन 89 सीटों पर टिकट की घोषणा की है, उसमें से सैलजा गुट को सिर्फ 9 सीटों पर ही तवज्जो दी गई है.

भूपिंदर हुड्डा गुट को 72 और रणदीप सुरजेवाला गुट को 2 टिकट दिए गए हैं. सैलजा ने हाल ही में मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी ठोकी थी, लेकिन हाईकमान ने इसमें कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई. इसके बाद से ही सैलजा मेन पिक्चर से गायब हैं. हाल ही में सैलजा ने कांग्रेस प्रभारी पर एक ही पक्ष के लिए काम करने का आरोप लगाया था.

इतना ही नहीं, कांग्रेस ने हरियाणा को लेकर जब मेनिफेस्टो जारी किया तो उस मंच पर भी सैलजा नजर नहीं आईं. हालांकि, पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में उनका नाम जरूर शामिल है.

खट्टर का सैलजा को सियासी ऑफर

करनाल के घरौंडा में चुनाव प्रचार करने पहुंचे पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर ने कुमारी सैलजा को बीजेपी में आने का ऑफर दिया. खट्टर ने कहा कि सैलजा को कांग्रेस में अपमानित किया जा रहा है. यह सभी दलित वर्गों का अपमान है.

खट्टर ने आगे कहा कि आज कांग्रेस के भीतर कुमारी सैलजा को गालियां दी जा रही हैं. उन्हें राजनीति के मैदान तक नहीं आने दिया जा रहा है. मैं चाहूंगा कि सैलजा बीजेपी में आए और यहां काम करें.

पूर्व सीएम खट्टर ने आगे कहा कि हरियाणा में कांग्रेस के भीतर सिर्फ 2 लोगों की ही चल रही है. एक बाप और दूसरे बेटे की. खट्टर ने कहा कि बाप-बेटा मुख्यमंत्री पद के लिए एक दूसरे से ही लड़ रहे हैं.

सैलजा की नाराजगी कांग्रेस को पड़ेगी भारी?

मनोहर लाल खट्टर के सियासी ऑफर और कुमारी सैलजा की नाराजगी के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या हरियाणा के चुनाव में कांग्रेस को यह भारी पड़ सकता है? इस सवाल को समझने के लिए आइए जानते हैं कि सैलजा हरियाणा की राजनीति में कितनी मजबूत हैं?

1. विरासत में राजनीति, दलित चेहरा

कुमारी सैलजा को राजनीति विरासत में मिली है. उनके पिता चौधरी दलबीर सिंह कांग्रेस के दिग्गज नेता थे. सैलजा भी मनमोहन सरकार में मंत्री रही हैं और वर्तमान में सिरसा से सांसद हैं. वे अंबाला से भी चुनाव जीत चुकी हैं.

कांग्रेस के भीतर सैलजा की छवि एक दलित नेत्री की है. हरियाणा में दलितों की आबादी करीब 20 फीसद है और इस समुदाय के लिए विधानसभा की 90 में से 17 सीटें आरक्षित हैं.

हालिया लोकसभा चुनाव में दलितों के वोट कांग्रेस को जमकर मिले थे. सैलजा भी बड़ी मार्जिन से चुनाव जीती थी. इसके बाद से ही कयास लग रहे थे कि सैलजा बड़ी भूमिका में होगी.

सीएसडीएस के मुताबिक लोकसभा चुनाव में 68 प्रतिशत दलितों ने कांग्रेस के पक्ष में वोट किए, जो 2019 से करीब 40 प्रतिशत ज्यादा था.

2. अंबाला और सिरसा की सीट पर पकड़

अंबाला और सिरसा लोकसभा के अधीन विधानसभा की 20 सीटें हैं और यहां पर सैलजा की मजबूत पकड़ है. सैलजा अंबाला और सिरसा सीट से चुनाव जीत चुकी हैं. सैलजा के जिन 9 लोगों को टिकट दिया गया है, वो भी इसी इलाके से आते हैं. पिछले चुनाव में अंबाला लोकसभा की 10 में से 5 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी.

इसी तरह सिरसा की 10 में से सिर्फ 2 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी. यानी कुल 20 में से 7 सीटें ही कांग्रेस 2019 में जीत पाई थी. कहा जा रहा है कि इस बार अगर सैलजा नाराज होती हैं तो इसका असर और ज्यादा सीटों पर होना तय है.

हरियाणा में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं, जहां सरकार बनाने के लिए कम से कम 46 विधायकों की जरूरत होती है. 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 40 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन तब निर्दलीय और जेजेपी विधायकों के सहारे बीजेपी ने सरकार बना ली थी.

हालिया लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को देखा जाए तो 90 में से 44 सीटों पर बीजेपी, 42 पर कांग्रेस और 4 सीट पर आप को बढ़त मिली थी.