मुम्बई : महाराष्ट्र में नई सरकार का गठन गुरुवार को हो जाएगा. देवेंद्र फडणवीस तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. एनसीपी प्रमुख अजीत पवार और शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे का डिप्टी सीएम बनना तय है. इस तरह एकनाथ शिंदे का नई सरकार के पावर शेयरिंग में पावर कम हो रहा है. ढाई साल तक सत्ता की बागडोर संभालने वाले शिंदे का सीएम की कुर्सी छोड़कर डिप्टी सीएम बनना, उनके राजनीतिक करियर के लिए जोखिम भरा कदम माना जा रहा है, क्योंकि सत्ता की शक्ति से उन्होंने उद्धव ठाकरे को शिकस्त दी है. अब जब सत्ता पर पकड़ कमजोर हुई है, तो शिंदे के सामने शिवसेना पर अपनी पकड़ मजबूत रखने की चुनौती बढ़ गई है.
सत्ता की कमान संभालने जा रहे देवेंद्र फडणवीस ने बुधवार को प्रेस कॉफ्रेंस के दौरान कहा था कि हम चाहते हैं, कि एकनाथ शिंदे नई सरकार में काम करें. उम्मीद है कि वे सकारात्मक प्रतिक्रिया देंगे. इसके बाद देर रात फडणवीस शिंदे से मिलने उनके सरकारी बंगले पर पहुंचे थे. इस दौरान दोनों के बीच सरकार में पावर शेयरिंग को लेकर भी चर्चा हुई, जिसके बाद ही एकनाथ शिंदे डिप्टी सीएम की शपथ लेने के लिए रजामंद हुए हैं. ऐसा माना जा रहा है कि अजीत पवार को डिप्टी सीएम के साथ वित्त मंत्रालय मिलना तय है, लेकिन शिंदे को डिप्टी सीएम के साथ गृह मंत्रालय का विभाग मिलने की तस्वीर साफ नहीं है.
शिंदे के सामने सबसे बड़ी चुनौती
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एकनाथ शिंदे 57 सीट जीतकर उद्धव ठाकरे से शिवसेना की विरासत की लड़ाई जीत चुके हैं, लेकिन ढाई साल तक सीएम रहने के बाद अब डिप्टी सीएम बनना एक तरह का डिमोशन माना जा रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो पावर शेयरिंग में ताकतवर मंत्रालय शिंदे को नहीं मिले तो उनके कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी असर पड़ेगा. ऐसे में उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती शिवसेना के विधायकों को साथ में जोड़े रखने की चुनौती होगी. शिवसेना के विस्तार पर असर पड़ सकता है.
शिंदे की बढ़ेंगी मुश्किलें
एकनाथ शिंदे बाखूबी समझते हैं कि अपने हाथ में सत्ता रखने के चलते अपने विधायकों और सहयोगियों को ताकत देने में सक्षम थे. इसके चलते ही उद्धव ठाकरे से शिवेसना से असली-नकली की लड़ाई जीते हैं. शिवसेना के विधायकों की संख्या को बढ़ाया है.सत्ता की शक्ति के कारण सियासी शिखर को छू हुआ है, लेकिन अब मुख्यमंत्री पद की ताकत नहीं होगी. इस तरह कोई ताकतवर मंत्रालय नहीं होगा, तो उनकी पार्टी के लिए भविष्य की राह मुश्किल हो जाएगी. शिवसेना के कई विधायक शिंदे के साथ कम और सियासी पावर के चलते ज्यादा साथ हैं.
शिंदे के लिए चुनौती बनेगी बीजेपी
महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार विनीत भांगे कहते हैं कि पावर के बिना शिंदे को अपने विधायकों को जोड़े रखना आसान नहीं है. इसीलिए वे शक्तिशाली मंत्रालय के लिए मशक्कत कर रहे हैं. अगर उनकी पार्टी को गृह, शहरी विकास और पीडब्ल्यूडी जैसे मजबूत मंत्रालय नहीं मिले तो महाराष्ट्र में उनकी छवि बेहद कमजोर हो जाएगी. शिंदे अपनी छवि झंडा उठाने वाले नेता की नहीं बनने देना चाहते हैं, बल्कि एक मजबूत नेता की बनाए रखने की है. इतना ही नहीं उद्धव ठाकरे की शिवसेना में टूट के बाद एकनाथ शिंदे ने हिंदुत्व की राजनीति की है. इसी मुद्दे पर उन्होंने बगावत करते हुए कहा था कि उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर शिवसेना संस्थापक बालासाहेब की हिंदुत्व की राजनीति से समझौता कर लिया है. जिसके लिए उन्होंने बीजेपी से हाथ मिलाया है.
महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना दोनों ही हिंदुत्व की राजनीति करती रही हैं. बीजेपी जिस तरह 132 सीटें जीतने में सफल रही है और अब अपना मुख्यमंत्री बनाने जा रही है, उसके चलते शिंदे की सियासी टेंशन बढ़ गई है. प्रदेश की राजनीति में शिंदे की शिवसेना के सामने विपक्षी दलों से ज्यादा बीजेपी ही चुनौती बनेगी. इसीलिए एकनाथ शिंदे पावर शेयरिंग में ज्यादा से ज्यादा पावर अपने हिस्से में लेना चाहते हैं. इसके लिए मंत्रिमंडल में ज्यादा से ज्यादा मंत्री और उसके बाद हाई प्रोफाइल मंत्रालय की डिमांड है.
शिंदे के लिए बैलेंस बनाना मुश्किल
शिंदे की शिवसेना को उपमुख्यमंत्री पद के अलावा करीब 12 से 13 मंत्री पद मिलने की उम्मीद है. महाराष्ट्र की राजनीतिक शक्ति के बंटवारे का इम्पैक्ट आगामी बीएमसी के चुनाव पर भी पड़ेगा. राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि एकनाथ शिंदे कुछ और समय तक मुख्यमंत्री रहते तो पार्टी का मनोबल बढ़ता, और उनका मानना है कि स्थानीय चुनावों में भी बेहतर प्रदर्शन होता. शिंदे कोटे से ढाई साल तक कैबिनेट का हिस्सा रहे सभी मंत्री चुनाव जीतकर आए हैं, जिसके चलते वो अपने पद को बरकरार रखने की कवायद में है, तो कुछ नए चेहरे भी मंत्रिमंडल में अपनी जगह चाहते हैं. शिंदे के साथ 2022 में 38 विधायक आए थे, जिनमें से 10 मंत्री थे. इस बार 57 विधायक चुनाव जीते हैं और चार निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन है. इस तरह शिवसेना की ताकत में इजाफा हुआ है, लेकिन मंत्री पद के बंटवारे में चुनौती खड़ी हो गई है.
मुख्यमंत्री के बजाय अब डिप्टी सीएम के रूप काम करने पर एकनात शिंदे के लिए संतुलन बनाना मुश्किल होगा. शिंदे के सामने क्षेत्रीय और जातीय समीकरण बनाने का भी चैलेंज होगा, क्योंकि 12 से 13 मंत्री पद में किसे जगह दें और किसे नहीं. भरत गोगावले और संजय शिरसाट जैसे कई विधायक 2022 से ही मंत्री पद के लिए प्रयास कर रहे हैं. इसके अलावा पुराने मंत्रियों में से किसी को नई कैबिनेट में जगह नहीं मिलती तो उन्हें शांत रखना आसान नहीं है. इसके अलावा शिंदे की कमजोरी का लाभ उद्धव ठाकरे को उठाने का मौका मिल जाएगा. इस बात की चुनौती शिंदे के सामने खड़ी हो गई है.