नईदिल्ली : बीते दिनों बंगलूरू में हुई एक घटना इस वक्त देश भर में चर्चा का विषय बनी हुई है। यहां सोमवार को आईटी पेशेवर अतुल सुभाष ने अपनी अलग रह रही पत्नी द्वारा कथित उत्पीड़न का हवाला देते हुए आत्महत्या कर ली। उन्होंने 24 पन्नों का एक सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें अपनी पत्नी के साथ-साथ ससुराल वालों के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाए। सुभाष के मामले ने दहेज कानून के दुरुपयोग पर बहस शुरू कर दी है। मंगलवार को देश की सर्वोच्च अदालत ने दहेज उत्पीड़न के मामलों में कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई।
बंगलूरू में आईटी पेशेवर की आत्महत्या का मामला क्या है? सुप्रीम कोर्ट ने दहेज कानूनों के दुरुपयोग पर क्या चिंता जताई है? देश में दहेज कानून क्या हैं? कानून के दुरुपयोग के बारे में आंकड़े क्या कहते हैं?
पहले जानते हैं कि आईटी पेशेवर की आत्महत्या का मामला क्या है?
बंगलूरू में एक निजी फर्म के 34 वर्षीय उपमहाप्रबंधक अतुल सुभाष ने सोमवार को आत्महत्या कर ली। वह मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिले के रहने वाले थे और काम के सिलसिले में बेंगलुरु में रहते थे। उनका ससुराल उत्तर प्रदेश के जौनपुर का था। अतुल 24 पन्नों का एक सुसाइड नोट छोड़ गए, जिसमें पत्नी, ससुराल वालों और एक न्यायाधीश पर ‘आत्महत्या, उत्पीड़न, जबरन वसूली और भ्रष्टाचार के लिए उकसाने’ का आरोप लगाया।
अब इस मामले में अतुल सुभाष की पत्नी निकिता सिंघानिया, सास निशा सिंघानिया, साले अनुराग उर्फ पीयूष सिंघानिया और चाचा ससुर सुशील सिंघानिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। यह शिकायत मृतक के भाई विकास कुमार ने दर्ज कराई है जिसमें पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी गई है। शिकायत में कहा गया है कि चारों आरोपियों ने अतुल के खिलाफ झूठा मामला दर्ज कराया और मामले के निपटारे के लिए 3 करोड़ रुपये देने की मांग की थी। आरोप है कि अतुल ने मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित होकर आत्महत्या जैसा घातक कदम उठा लिया।
अतुल ने 24 पन्नों के सुसाइड नोट के हर पन्ने पर ‘न्याय मिलना चाहिए’ लिखा है। पत्नी निकिता और ससुराल वालों के साथ-साथ सुभाष ने जौनपुर में एक पारिवारिक न्यायालय के जज पर भी उनकी सुनवाई न करने का आरोप लगाया। सुभाष ने अपने कथित उत्पीड़न को बताने के लिए एक वीडियो भी रिकॉर्ड किया। इसमें परिजनों से कहा गया है कि न्याय मिलने तक उनकी अस्थियों को विसर्जित न किया जाए। नोट में चार साल के बेटे के लिए भी एक संदेश था जिसे अतुल से अलग रखा गया था। नोट में अतुल ने अपने माता-पिता को उनके बच्चे की कस्टडी देने की भी मांग की। नोट और वीडियो का लिंक एक एनजीओ के व्हाट्सएप ग्रुप पर भेजा गया था, जिससे अतुल जुड़े हुए थे। सुभाष ने अपने नोट में आरोप लगाया कि पत्नी निकिता सिंघानिया ने उनके खिलाफ हत्या, यौन उत्पीड़न, पैसे के लिए उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और दहेज सहित नौ मामले दर्ज कराए थे।
आखिर क्या हैं देश में दहेज कानून?
दहेज कुप्रथा को रोकने के लिए हमारे देश में कई कानून बनाए हैं। असहाय महिलाओं के खिलाफ हिंसा को कम करने के लिए कानून बनाने पर जोर दिया गया था। इसके चलते दहेज निषेध अधिनियम, 1961 बना। दहेज की मांग के बाद घरेलू हिंसा की घटनाएं भी सामने आती रही हैं ऐसे में ‘घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005’ पारित किया गया।
इसके साथ ही पुरानी आईपीसी में दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्याओं को रोकने के लिए कई प्रावधान किए गए थे। आईपीसी की धारा 498 दहेज से पहले और बाद में किसी भी रूप में उत्पीड़न को दंडनीय और गैर-जमानती बनाती है। 1983 में संसद द्वारा एक आपराधिक अधिनियम ‘आईपीसी 498 ए’ पारित किया था जो कहता था कि दहेज वसूलने के लिए की गई क्रूरता पर तीन या अधिक वर्षों की अवधि की सजा और जुर्माना देना होगा। दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्याओं को रोकने के लिए आईपीसी 1961 में एक नई धारा ‘आईपीसी 304 बी’ जोड़ी गई। आईपीसी 304 बी में ‘दहेज हत्या’ का जिक्र है। भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी में कहा गया है कि अगर किसी महिला की शादी के सात साल के भीतर किसी भी जलने या शारीरिक चोट से मृत्यु हो जाती है या यह पता चला है कि उसकी शादी से पहले वह अपने पति या पति के किसी अन्य रिश्तेदार द्वारा क्रूरता या उत्पीड़न के संपर्क में थी। दहेज मांगने का संबंध तब महिला की मृत्यु को दहेज मृत्यु माना जाएगा। दहेज हत्या के लिए सजा सात साल के कारावास की न्यूनतम सजा या आजीवन कारावास की अधिकतम सजा है।कानून पारित होते ही दहेज उत्पीड़न के हजारों मामले दर्ज होने लगे। कई बार यह विवाहित महिला के लिए सुरक्षा के बजाय हथियार बन गया जिस पर समय-समय पर अदालतों ने भी चिंता जताई।
सुप्रीम कोर्ट ने दहेज कानूनों के दुरुपयोग पर क्या चिंता जताई?
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि अदालतों को दहेज उत्पीड़न के मामलों में कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। उन्हें सतर्क रहना होगा कि कहीं कानून का दुरुपयोग कर पति के रिश्तेदारों को फंसया तो नहीं जा रहा। अदालतों को निर्दोष परिवार के सदस्यों को अनावश्यक परेशानी से बचाना चाहिए।
जस्टिस बीवी नागरत्ना व जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि वैवाहिक विवाद से उत्पन्न आपराधिक मामले में सक्रिय संलिप्तता का संकेत देने वाले विशिष्ट आरोपों के बिना परिवार के सदस्यों के नाम का उल्लेख शुरू में ही रोक दिया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि यह एक सर्वविदित तथ्य है और न्यायिक अनुभव से प्रमाणित भी कि जब वैवाहिक कलह के कारण घरेलू विवाद उत्पन्न होते हैं, तो अक्सर पति के परिवार के सभी सदस्यों को फंसाने की कोशिश की जाती है। ऐसे में अदालतों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि किसी कानून का दुरुपयोग कर किसी निर्दोष को न फंसाया जा सके। इन टिप्पणियों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें एक व्यक्ति, उसके माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ पत्नी के दर्ज कराए गए दहेज उत्पीड़न के मामले को रद्द करने से इन्कार कर दिया गया था।
यह पहली बार नहीं है जब न्यायालय ने धारा 498ए के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की है। सितंबर में न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि यह कानून सबसे अधिक दुरुपयोग किये जाने वाले कानूनों में से एक है। इससे पहले मई में सुप्रीम कोर्ट ने संसद से बीएनएस की संबंधित धारा में संशोधन करने का अनुरोध किया था। पत्नी द्वारा पति और ससुराल वालों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के दुरुपयोग पर गंभीर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 3 मई को संसद से नए आईपीसी यानी भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) में आवश्यक बदलाव लाने का अनुरोध किया था। इसी साल लागू हुए बीएनएस में आईपीसी की धारा 498ए के जैसे प्रवधान बीएनएस की धारा 85 और 86 में शामिल किए गए हैं।
दहेज कानून के दुरुपयोग के बारे में आंकड़े क्या कहते हैं?
संसद में दी गई जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) दहेज उत्पीड़न के फर्जी मामलों के आंकड़ों को अलग से नहीं रखा जाता है। हालांकि, ब्यूरो 2014 से ‘दहेज निषेध अधिनियम, 1961’ के तहत झूठे मामले के रूप में अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाले मामलों पर डेटा इकट्ठा करता है। एनसीआरबी के अनुसार, 2022 के दौरान इस अधिनियम के तहत कुल 356 मामले सामने आए, जिनमें झूठे मामले के रूप में अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। साल 2021 में ऐसे 418 मामले सामने आए थे। 2020 में ये मामले घटकर 297 रह गए थे। पिछले कुछ वर्षों में 2019 ऐसा वर्ष रहा जब सबसे ज्यादा 462 झूठे मामले सामने आए।
इस बीच, मुंबई की वकील आभा सिंह ने अतुल सुभाष के मामले को ‘कानून का घोर दुरुपयोग’ बताते हुए कहा कि झूठे आरोपों और उत्पीड़न के कारण पीड़ित की मौत हो गई। वकील ने एएनआई से कहा कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए दहेज कानूनों का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि अगर कुछ महिलाएं इन कानूनों का दुरुपयोग करने जा रही हैं, तो यह सीधे तौर पर उन महिलाओं को न्याय से वंचित करेगा जिन्हें इसकी जरूरत है। दिल्ली स्थित पुरुष अधिकार कार्यकर्ता बरखा त्रेहान ने कहा कि अतुल को सिस्टम ने विफल कर दिया था, जिसके कारण अंततः उन्हें आत्महत्या करनी पड़ी।