नईदिल्ली : भारतीय टीम के पूर्व ऑफ स्पिनर रविचंद्रन अश्विन ने जब से संन्यास लिया है तभी से उनके इस फैसले को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। अश्विन ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के बीच में ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया था। अश्विन ने तीसरे टेस्ट के बाद यह फैसला लिया था, लेकिन उन्हें उस दौरे पर सिर्फ एक मैच में ही खेलने का मौका मिला था जिसके बाद उन्होंने करियर समाप्त करने का निर्णय लिया।
अश्विन के संन्यास लेने के बाद कई तरह की थियोरी सामने आई। भारतीय टीम के पूर्व बल्लेबाज मनोज तिवारी का कहना था कि अश्विन का अपमान किया गया, वहीं पूर्व भारतीय गेंदबाजी कोच भरत अरुण ने कहा कि अश्विन का दिल टूटा जिस वजह से उन्होंने यह निर्णय लिया। अब अश्विन ने खुद इस बारे में राय रखी और विदाई टेस्ट नहीं मिलने पर चुप्पी तोड़ी है।
अश्विन ने कहा, मुझे इस ब्रेक की जरूरत थी। मैंने सीरीज के बीच में ही खेल छोड़ा और मैं क्रिकेट को लेकर ज्यादा बात नहीं करना चाहता। सिडनी और मेलबर्न टेस्ट के बाद मैंने सोशल मीडिया पर काफी चीजें पोस्ट की। मैंने संन्यास के बारे में बात नहीं की क्योंकि मैं ड्रेसिंग रूम का हिस्सा था और मेरे लिए जरूरी था कि मैं ड्रेसिंग रूम का सम्मान करूं। फैन वॉर आज के दिनों में काफी जहरीला किस्म का हो गया है।
उन्होंने कहा, आपको पता होना चाहिए कि कभी-कभी यह सहज रूप से किया जाता है। लोग बहुत सी बातें कह रहे हैं लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। उस समय मुझे लगा कि मैंने अपनी रचनात्मकता खो दी है। अंत भी सुखद हो सकता है, ज्यादा अटकलें लगाने का कोई कारण नहीं है। मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि विदाई मैच कोई महत्वपूर्ण नहीं होता है। मैं बस ईमानदार रहना चाहता हूं। जरा सोचिए, अगर मुझे विदाई टेस्ट मिलता, लेकिन मैं टीम में जगह पाने का हकदार नहीं हूं, तो मुझे खुशी नहीं होगी। मेरे क्रिकेट में दम था, लेकिन मेरे ख्याल से उस वक्त थम जाना जरूरी है जब लोग आपसे कहें कि आप क्यों जा रहे हो।
भारत के दूसरे सफल स्पिनर के तौर पर समाप्त किया करियर
अश्विन ने टेस्ट में भारत के दूसरे सबसे सफल गेंदबाज के तौर पर अपना करियर समाप्त किया। 106 टेस्ट मैचों में अश्विन ने 537 विकेट झटके और वह बस पूर्व स्पिनर अनिल कुंबले से पीछे थे जिन्होंने अपने टेस्ट करियर में 619 विकेट लिए हैं। 38 वर्षीय इस खिलाड़ी ने ऑस्ट्रेलिया दौरे पर सिर्फ एक मैच खेला था। अश्विन को पर्थ में खेले गए पहले टेस्ट मैच के लिए प्लेइंग-11 में मौका नहीं दिया गया था, जबकि वह एडिलेड में खेले गए पिंक बॉल टेस्ट के लिए टीम में शामिल थे जो उनके करियर का अंतिम मैच रहा। तीसरे टेस्ट में अश्विन की जगह रवींद्र जडेजा को मौका दिया गया था।