नईदिल्ली I पश्चिम बंगाल में एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं. इसके साथ ही ईडी और सीबीआई की ताबड़तोड़ रेड चल रही है. पहले पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी की करीबी अर्पिता मुखर्जी के फ्लैट से 52 करोड़ जब्त हुए थे. और अब फिर एक ट्रांसपोर्ट कारोबारी के घर से 17 करोड़ से ज्यादा बरामद हुए हैं. इस मामले में भी प्रभावशाली कनेक्शन सामने आ रहा है. शिक्षा भर्ती घोटाला, पशु तस्करी, कोयला तस्करी और चिटफंड मामले में लगातार टीएमसी नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं. इससे तृणमूल कांग्रेस की छवि को धक्का लग रहा है.
बंगाल विधानसभा चुनाव में जीत के बाद हालांकि राज्य के चुनावों में टीएमसी लगातार जीत रही है, लेकिन इन घोटालों ने कहीं-न-कहीं रास्ते में रोड़ा बन गये हैं. विधानसभा चुनाव के बाद ममता बनर्जी को टीएमसी नेताओं ने पीएम पद का उम्मीदवार बताया था, लेकिन अब सवाल उठने लगा है क्या बिहार की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुकाबले प्रधानमंत्री की दौड़ में ममता बनर्जी पिछड़ती जा रही हैं?
बता दें कि पड़ोसी राज्य बिहार में नीतीश कुमार ने भाजपा गठबंधन छोड़ दिया और राजद के तेजस्वी यादव के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई है. बिहार की राजनीति में परिवर्तन ने न केवल पटना में राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया, बल्कि दिल्ली में विपक्षी खेमे के गणित को भी बदल दिया है.
नीतीश के खेल में मात खा गई है भाजपा
महाराष्ट्र की सरकार अभी बदली है. महाराष्ट्र में एनसीपी प्रमुख शरद पवार को उद्धव ठाकरे के गुट को बड़ा झटका लगा है.यहां भाजपा का लोटस अभियान सफल रहा था, लेकिन नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़कर भाजपा को करारा झटका दिया है और वह लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी में जुट गए हैं. बिहार में महागठबंधन की नई सरकार के गठन के दौरान नीतीश का बयान था कि तेजस्वी राज्य की कमान संभालेंगे. उनके हाल के दिल्ली दौरे के दौरान वाम खेमे के तमाम नेताओं के साथ नीतीश कुमार ने शरद पवार और अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की. साथ ही उन्होंने अन्य विपक्षी पार्टी के नेताओं से भी चर्चा की. उन्होंने कहा कि कोई दूसरा या तीसरा मोर्चा नहीं, बल्कि विपक्ष का मुख्य मोर्चा होगा. साल 2024 के लोकसभा चुनाव में सभी विपक्षी दल एकजुट होंगे. एजेंडा तैयार करने के लिए सभी दल साथ आएंगे.
विरोधी दलों को एकजुट नहीं कर पाई थीं ममता
एक ओर, नीतीश कुमार विरोधी दल को एकजुट करने में जुटे हैं, तो दूसरी ओर राष्ट्रपति चुनाव में विरोधी दलों को एकजुट करने की ममता बनर्जी की कोशिश और उसके बाद उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद विरोधी दलों और कांग्रेस के साथ मनमुटाव होना जगजाहिर है. उसके बाद ममता बनर्जी ने दिल्ली का दौरा किया था. तीन दिनों के दिल्ली दौरे के बाद उनकी पीएम मोदी से चार बार मुलाकात हुई थी. पिछले दिल्ली दौरे के दौरान ममता ने किसी भी विरोधी दल के नेता के साथ मुलाकात नहीं की थी. उनके दिल्ली दौरे को विपक्षी दलों का ज्यादा समर्थन नहीं मिला था. जहां नीतीश कुमार और ममता बनर्जी को लेकर विपक्षी पार्टियों की बात है.
ममता बनर्जी की तुलना में विपक्षी खेमा नीतीश का पक्ष लेगा, क्योंकि नीतीश कुमार को वामपंथी खेमे के साथ गठबंधन में कोई कठिनाई नहीं होगी. नीतीश कुमार की सीताराम येचुरी, डी राजा और दीपांकर भट्टाचार्य के साथ एक बैठक से यह साफ हो गया है. बिहार में तीन सहयोगी दलों का समर्थन पाने में नीतीश को कोई दिक्कत नहीं होगी, जबकि ममता बनर्जी को वामपंथी पार्टियों और कांग्रेस का समर्थन मिलने में दिक्कत होगी.
बंगाल में भ्रष्टाचार से जूझ रही है तृणमूल कांग्रेस
वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस और तृणमूल के बीच दूरियां बढ़ गई हैं. हालांकि, राष्ट्रीय राजनीति को देखते हुए, नीतीश कुमार के लिए तृणमूल कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी के बिना विपक्ष को एकजुट करना संभव नहीं है, लेकिन राजनीतिक गलियारा इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि भ्रष्ट गतिविधियों से तबाह ममता बनर्जी प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार बनने की दौड़ में धीरे-धीरे पीछे हट रही हैं और अपना पूरा फोकस पार्टी को संगठित करने और बिगड़ रही इमेज को सुधारने में फिलहाल पूरा ध्यान दे रही हैं. इस बाबत पार्टी की ओर से लगातार बयान दिए जा रहे हैं और विपक्ष पर हमला बोला जा रहा है, लेकिन बीजेपी और माकपा ‘चोर धरो, जेल भरो’ का अभियान चलाकर तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व पर लगातार दबाव बना रहे हैं.