नईदिल्ली I वाराणसी के ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी केस में जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश की कोर्ट ने हिंदू पक्ष के हक में फैसला सुनाया. कोर्ट ने यह माना कि श्रृंगार गौरी की पूजा-अर्चना की मांग को लेकर दायर की गई याचिका सुनवाई योग्य है. जिला अदालत ने मुस्लिम पक्ष की उस अर्जी को खारिज कर दिया, जिसमें मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में पोषणीय नहीं होने की दलील देते हुए याचिका को खारिज करने की मांग की थी. कोर्ट के इस फैसले से जहां हिंदू पक्ष जश्न मना रहा है तो वहीं मुस्लिम पक्ष में नाराजगी है. मुस्लिम पक्ष का कहना है वह कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती देंगे.
वहीं कोर्ट के फैसले पर नाराजगी जाहिर करते हुए मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता मेराजुद्दीन सिद्दीकी ने कोर्ट पर ही विवादित बयान दे डाला. मेराजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा, “ये सब लोग बिक गए हैं. कोर्ट ने यह फैसला बिल्कुल गलत दिया है. हमारे लिए यह कहीं से भी न्यायोचित नहीं है. हम कोर्ट के इस फैसले को ऊपर हाईकोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं. फैसले में पूरी तरह से प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 का उल्लंघन किया गया है. फैसला देते समय कहीं से भी एक्ट के नियमों का पालन ही नहीं किया गया.”
अधिवक्ता मेराजुद्दीन सिद्दीकी ने तल्ख टिप्प्णी करते हुए कहा कि जज साहब के ऑर्डर ने संसद के कानून को दरकिनार कर दिया. हालांकि हमारे लिए हाईकोर्ट के दरवाजे खुले हुए हैं. हम वहां पर कोर्ट के आदेश को चुनौती भी देंगे. मेराजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि, “न्यायपालिका आपकी है. आप संसद के नियम को नहीं मानेंगे तो क्या कह सकते हैं, सब लोग बिक गए हैं.” अधिवक्ता मेराजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि जज साहब ने हिंदू पक्ष की जिस याचिका पर यह फैसला दिया है, वो न तो न्यायोचित और न ही न्याय संगत है. जज साहब ने अपने विवेक से फैसला लिया है. अगर वर्शिप एक्ट को ध्यान में रखते तो यह फैसला न देते.
हिंदू पक्ष की याचिका पोषणीय नहीं थी
अधिवक्ता मेराजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि कोर्ट ने हमारी अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सिविल संहिता प्रकिया के आदेश 7 नियम 11 के तहत इस मामले की सुनवाई हो सकती है. कोर्ट की तरफ से 22 सितंबर की तारीख सुनवाई के लिए तय की गई है. हालांकि उससे पहले ही हम होईकोर्ट जाने पर विचार कर रहे हैं. कोर्ट का ये फैसला वर्शिप एक्ट का सरासर उल्लंघन करता है. हमने अपनी अर्जी में कोर्ट में दलील दी कि वर्शिप एक्ट के तहत यह केस सुना ही नहीं जाना चाहिए. यह याचिका पोषणीय नहीं है, लेकिन उसके बावजूद भी पता नहीं क्या सोचकर कोर्ट ने कहा कि नहीं केस की सुनवाई हो सकती है.