नईदिल्ली I उत्तर प्रदेश की वाराणसी में जिला अदालत ने श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी मस्जिद केस में अहम फैसला सुनाया. जिसके बाद एक तरफ हिंदू पक्ष मिठाइयां बांटकर खुशियां मना रहा है. हर-हर महादेव, काशी विश्वनाथ के जयकारे लग रहे हैं, तो दूसरे पक्ष के लोग इस पूरे मामले को स्वीकार नहीं कर रहे हैं. बाबरी मस्जिद के पूर्व पैरोकार हाजी महबूब ने ज्ञानवापी मामले पर हिंदू पक्ष और आरएसएस को लेकर तल्ख टिप्पणी की है. हाजी महबूब ने चेतावनी दी है कि आरएसएस के साथ मिलकर हुकूमत अगर सब कुछ गलत करेगी, तो अब मुल्क में खून खराबा के अलावा और कुछ नहीं है. हाजी महबूब ने यह भी कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद है और वह मस्जिद ही रहेगी. हम लोग इस फैसले को लेकर ऊपर की अदालत में जाएंगे.
हाजी महबूब ने राम मंदिर मामले को लेकर भी अपना दर्द बयां किया है. हाजी महबूब ने कहा है कि अयोध्या का मसला दूसरा था, हम लोगों ने अयोध्या के मसले पर खामोशी बढ़ती और अदालत का फैसला माना और मामला खत्म हो गया. अयोध्या के मामले को लेकर हम लोगों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन अगर ज्ञानवापी मामले को लेकर इस तरह का वाकया हुआ तो यह बहुत बुरा होगा. अगर ऐसा हुआ तो पूरे मुल्क में अब खून खराबा के अलावा कुछ नहीं है.
बाबरी मस्जिद के पूर्व पैरोकार हैं हाजी महबूब
मालूम हो कि हाजी महबूब रामजन्म भूमि विवाद में बाबरी मस्जिद की तरफ से पैरोकार थे. लंबी अदालती लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्यों के आधार पर अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद पर ऐतिहासिक फैसला दिया था. जिसमें राम जन्मभूमि पर राम मंदिर का निर्माण और मस्जिद के निर्माण के लिए रौनाही थाना क्षेत्र के धनीपुर गांव में 5 एकड़ की जमीन को मुस्लिम पक्ष को देने का फैसला सुनाया था. वर्तमान समय में राम जन्मभूमि पर रामलला के दिव्य और भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है. हाजी महबूब अपने विवादित बयानों को लेकर जाने जाते हैं.
‘ज्ञानवापी पर कोर्ट का फैसला उपासना स्थल कानून का उल्लंघन’
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने मंगलवार को दावा किया कि ज्ञानवापी मामले में जिला अदालत का फैसला उपासना स्थल कानून, 1991 का स्पष्ट उल्लंघन है. माकपा ने एक बयान में कहा कि न्यायपालिका के एक हिस्से की तरफ से कानून की गलत व्याख्या किए जाने से इसके गंभीर नतीजे होंगे कि मानो यह कानून किसी चीज को रोकने के लिए था. वाम दल ने आरोप लगाया है कि इसमें कोई गोपनीय बात नहीं है कि बीजेपी इतिहास से छेड़छाड़ करती है, ताकि अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाया जा सके.
उसने कहा कि 1991 का कानून सांप्रदायिक सद्भाव के राष्ट्रीय हित को कायम रखने के लिए बनाया गया था. वाराणसी के जिला जज एके. विश्वेश की अदालत ने ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की विचारणीयता को चुनौती देने वाले मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि यह मामला उपासना स्थल अधिनियम और वक्फ अधिनियम के लिहाज से वर्जित नहीं है, लिहाजा वह इस मामले की सुनवाई जारी रखेगी. मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी.