छत्तीसगढ़

सौरव गांगुली और जय शाह के कार्यकाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट आज सुना सकता है फैसला, कूलिंग ऑफ पीरियड का है मामला

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट बुधवार को BCCI की उस याचिका पर फैसला सुना सकता है, जिसमें उसने अध्यक्ष सौरव गांगुली और सचिव जय शाह का कार्यकाल बढ़ाने के लिए उन्हें कूलिंग ऑफ पीरियड से छूट देने की अपील की है। इस याचिका में बीसीसीआई के संविधान में संशोधन की मांग की गई है।

मौजूदा नियमों के मुताबिक राज्य क्रिकेट बोर्ड या बीसीसीआई में छह साल तक पदारुढ़ रहने के बाद दूसरा पद हासिल करने से पहले तीन साल की कूलिंग आफ पीरियड का पालन करना होता है। मंगलवार को हुई सुनवाई में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है।

इसमें राज्य क्रिकेट संघों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों के कार्यकाल के बीच अनिवार्य ‘कूलिंग ऑफ’ पीरियड (तीन साल तक कोई पद नहीं संभालना) को समाप्त करना शामिल है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पदाधिकारियों के कार्यकाल के बीच कूलिंग ऑफ पीरियड को समाप्त नहीं किया जाएगा, क्योंकि ‘कूलिंग ऑफ पीरियड का उद्देश्य यह है कि किसी प्रकार का निहित स्वार्थ न हो।’ शीर्ष अदालत ने कहा कि वह बुधवार को सुनवाई जारी रखेगी और फिर आदेश पारित करेगी।

जानिए क्या कूलिंग ऑफ पीरियड?

बीसीसीआई द्वारा अपनाए गए संविधान के अनुसार, एक पदाधिकारी को राज्य संघ या बीसीसीआई या दोनों संयुक्त रूप से लगातार दो कार्यकालों के बीच तीन साल की कूलिंग-ऑफ पीरियड से गुजरना पड़ता है।

क्या थी बीसीसीआई की राय?

बीसीसीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शुरुआत में न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ से कहा था कि देश में क्रिकेट का खेल काफी सुव्यवस्थित है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि बीसीसीआई एक स्वायत्त संस्था है और सभी बदलावों पर क्रिकेट संस्था की एजीएम ने विचार किया है।

सॉलिसिटर मेहता ने कहा, ‘जैसा कि आज संविधान मौजूद है, कूलिंग ऑफ पीरियड है। अगर मैं एक कार्यकाल के लिए राज्य क्रिकेट संघ और लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए बीसीसीआई का पदाधिकारी हूं, तो मुझे कूलिंग ऑफ अवधि के लिए जाना होगा।’ उन्होंने कहा कि दोनों निकाय अलग हैं और उनके नियम भी अलग हैं और जमीनी स्तर पर नेतृत्व विकसित करने के लिए पदाधिकारी के लगातार दो कार्यकाल बहुत कम हैं।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘नेतृत्व जमीनी स्तर पर विकसित होता है और यह राज्य संघ में रहता है। जब तक उनका बीसीसीआई में पदोन्नत होने का समय आता है, उन्हें अनिवार्य रूप से तीन साल की कूलिंग-ऑफ पीरियड के लिए जाना पड़ता है। एक यदि वह राज्य संघ का सक्रिय सदस्य नहीं है तो वह बीसीसीआई का सदस्य नहीं बन सकता है।’ इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कूलिंग ऑफ पीरियड के लिए बीसीसीआई पदाधिकारी द्वारा राज्य संघ में पद धारण करने पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।