नई दिल्ली। कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध के विरोध में बहस कर रहे मुस्लिम छात्रा के वकील ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अगर एक मुस्लिम महिला सोचती है कि हिजाब पहनना उसके धर्म के अनुकूल है तो कोई भी अधिकारी या कोर्ट अन्यथा नहीं कह सकता। हिजाब के पक्ष में सोमवार को दलीलें रखते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा कि हिजाब इस्लाम की धार्मिक परंपरा का हिस्सा है और इस पर रोक से मुस्लिम छात्राओं को संविधान में मिले अभिव्यक्ति की आजादी (अनुच्छेद 19(1)(ए)), व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनुच्छेद 21) और धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) के मौलिक अधिकार का हनन होता है।
आज भी जारी रहेगी सुनवाई
मामले में बहस मंगलवार को भी जारी रहेगी। कर्नाटक हाई कोर्ट ने कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब पर रोक और यूनीफार्म अनिवार्य करने के आदेश को सही ठहराया था। हाई कोर्ट ने फैसले में यह भी कहा था कि हिजाब इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है। इस आदेश को कई मुस्लिम छात्राओं और संस्थाओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। मामले में आजकल न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की पीठ सुनवाई कर रही है।
वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने बहस की
सोमवार को एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने बहस की। दवे ने भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विभिन्नता के उदाहरण दिए और धार्मिक स्वतंत्रता को संरक्षित करने वाले अनुच्छेद 25 के मौलिक अधिकार पर संविधान सभा में हुई बहस का हवाला दिया। दवे ने कहा कि अगर मुस्लिम लड़की हिजाब पहनती है तो यह नहीं कहा जा सकता कि उससे किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचती है।
हिजाब पर रोक का विरोध
हिजाब हमारी पहचान है। दवे ने हिजाब पर रोक का विरोध करते हुए कहा कि अल्पसंख्यकों को हाशिये पर रखने का पैटर्न नजर आता है। कोर्ट को अनुच्छेद 19, 21 और 25 की व्यापक और विस्तृत नजरिये से उदार व्याख्या करनी चाहिए। दवे ने कहा कि अकबर ने हिन्दू महिला से शादी की थी और उसे कृष्ण की पूजा की इजाजत थी और आज के समय में अगर कोई प्रेम करता है और शादी करता है तो हम सोचते हैं कि ये मतांतरण की कोशिश है पता नहीं हम कहां जा रहे हैं।
धार्मिक विविधिता को बढ़ावा देने की जरूरत बताई
वैसे तो ये मामला स्कूल में यूनीफार्म का है लेकिन वास्तव में इसके पीछे कुछ और ही उद्देश्य है। ये मामला कानूनी विद्वेष का है। इसमें अल्पसंख्यक समुदाय से कहा जा रहा है कि तुम वही करोगे जो हम कहेंगे। दवे ने धार्मिक विविधिता को बढ़ावा देने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि मुस्लिम देश ईराक, सीरिया में 10000 आत्मघाती हमले हुए लेकिन भारत में सिर्फ एक हुआ। इसका मतलब है कि अल्पसंख्यकों को हमारे देश पर भरोसा है।
वर्षों से मुस्लिम महिलाएं हिजाब पहन रहीं
दवे ने कहा कि सैकड़ों वर्षों से मुस्लिम महिलाएं हिजाब पहन रही हैं। जैसे सिखों के लिए पगड़ी जरूरी है वैसे ही मुस्लिम महिलाओँ के लिए हिजाब जरूरी है। ये उनकी आस्था है। कुछ लोग तिलक लगाना चाहते हैं, कुछ क्रास पहनते हैं सभी को अधिकार है और सामाजिक जीवन की यही खूबसूरती है। क्या हिजाब पहनने से भारत की एकता और अखंडता को खतरा हो जाएगा? इस दलील पर जस्टिस धूलिया ने कहा कि ऐसा कोई नहीं कह रहा। यहां तक कि हाई कोर्ट के फैसले में भी ऐसा नहीं कहा गया है।
पब्लिक प्लेस में मौलिक अधिकार निलंबित नहीं होता
दवे ने कहा कि पब्लिक प्लेस में मौलिक अधिकार निलंबित नहीं होता। कर्नाटक सरकार के आदेश से मौलिक अधिकार का हनन होता है इसलिए वह गैरकानूनी है। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि उन्होंने जितने पूर्व फैसले देखें है वे सभी धार्मिक स्थलों के भीतर धार्मिक परंपराओं के पालन के बारे में हैं। हाई कोर्ट ने भी आदेश में इसके अनिवार्य धार्मिक प्रथा होने पर कहा है कि यह सिर्फ डायरेक्ट्री है।
क्लास रूम में होते हैं तो मौलिक अधिकार नहीं
हाई कोर्ट ने मौलिक अधिकार पर कहा है कि जब क्लास रूम में होते हैं तो मौलिक अधिकार नहीं होता। दवे ने कहा कि यह ज्यादा ही प्रतिबंध है। अनुच्छेद 25 में मिला धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार हर जगह है फिर चाहें वह बेडरूम हो या क्लासरूम। उन्होंने कहा कि बार काउंसिल ने वकीलों के लिए एक ड्रेस तय की है लेकिन अगर कोई टोपी पहन कर कोर्ट आए तो क्या कोर्ट उसे रोक देगा। वकीलों के टोपी या पगड़ी पहनने की परंपरा है।
क्लास रूम भी सम्मानित स्थान
इस पर जस्टिस गुप्ता ने टिप्पणी की कि ये परंपरा है कि जब आप कहीं सम्मानित जगह जाते हैं तो सिर ढका होता है। दवे ने कहा कि क्लास रूम भी सम्मानित स्थान है। उन्होंने प्रधानमंत्री का उदाहरण दिया और कहा हमारे प्रधानमंत्री को देखिए कि वे महत्वपूर्ण दिनों पर कितनी खूबसूरती से पगड़ी पहनते हैं। ये लोगों का सम्मान करने का एक तरीका है। उनकी बहस मंगलवार को भी जारी रहेगी।