छत्तीसगढ़

IRCTC होटल घोटाला: लालू और तेजस्वी की बढ़ी मुश्किलें, CBI को मिली बहस करने की इजाजत

पटना I बिहार में गरमाई सियासत के बीच राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव समेत 11 अन्य आरोपियों की मुश्किलें एक बार फिर से बढ़ गई है। दरअसल, आईआरसीटीसी होटल घोटाले में दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना वर्चुअल स्टे हटा लिया है। हाईकोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को निचली अदालत में आरोपी के खिलाफ आरोप तय करने पर बहस शुरू करने की मंजूरी दे दी है। बता दें कि 2019 में आरोपी विनोद कुमार अस्थाना की दलील सुनने के बाद सुनवाई को टाल दी गई थी लेकिन अब दिल्ली उच्च न्यायालय के नवीनतम आदेश के साथ, सीबीआई को अब प्रसाद और अन्य सह-आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने के लिए दबाव बनाने की उम्मीद है।

क्या है IRCTC होटल घोटाला
IRCTC घोटाला 2004 में लालू के रेल मंत्री रहने के दौरान हुआ। दरअसल, रेलवे बोर्ड ने उस वक्त रेलवे की कैटरिंग और रेलवे होटलों की सेवा को पूरी तरह IRCTC को सौंप दिया था। इस दौरान रांची और पुरी के बीएनआर होटल के रखरखाव, संचालन और विकास को लेकर जारी टेंडर में अनियमिताएं किए जाने की बातें आई थीं।  ये टेंडर 2006 में एक प्राइवेट होटल सुजाता होटल को मिला था। आरोप है कि सुजाता होटल्स के मालिकों इसके बदले लालू यादव परिवार को पटना में तीन एकड़ जमीन दी, जो बेनामी संपत्ति थी। इस मामले में भी लालू यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव समेत  11 लोग आरोपी हैं।

इस मामले में कब क्या-क्या हुआ?
आपको बता दें कि सीबीआई ने जुलाई 2017 में लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव समेत 11 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। इसके बाद सीबीआई(CBI) की एक विशेष अदालत ने जुलाई 2018 में लालू प्रसाद और अन्य के खिलाफ दायर आरोपपत्र पर संज्ञान लिया था। लेकिन आरोप तय करने को लेकर बहस शुरू नहीं हो सकी। इसके बाद फरवरी 2019 में एक आरोपी विनोद कुमार अस्थाना ने चार्जशीट पर संज्ञान लेने के विशेष अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इसके बाद दो अन्य सह-आरोपियों ने भी आवेदन दायर कर दिए।

दोनों आरोपियों की दलील के बाद बहस पर लग गई थी रोक
दोनों आरोपियों ने दावा किया था कि सीबीआई ने उनके अभियोजन की मंजूरी नहीं मांगी, जो कि आवश्यक था क्योंकि जब वह कथित अपराध किया गया था तब वह एक सरकारी कर्मचारी थे। उच्च न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए सह-आरोपी विनोद कुमार अस्थाना को निचली अदालत के समक्ष पेश होने से छूट दे दी। दो अन्य सह-आरोपियों, जो पूर्व सरकारी कर्मचारी भी थे, ने निचली अदालत के समक्ष इसी तरह के आवेदन दायर किए। इन घटनाक्रमों ने मुकदमे को एक तरह से रोक दिया और आरोप तय करने पर आज तक कोई बहस नहीं हुई। दिल्ली उच्च न्यायालय के नवीनतम आदेश के साथ, सीबीआई को अब प्रसाद और अन्य सह-आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने के लिए दबाव बनाने की उम्मीद है।