छत्तीसगढ़

क्षुद्रगहों से पृथ्वी को बचाने की बड़ी पहल, नासा के यान ने किया एस्टेरॉयड को चूर-चूर

नईदिल्ली I अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का 34.40 करोड़ डॉलर की लागत वाला अंतरिक्ष यान पृथ्वी को क्षुद्र ग्रहों ‘एस्टेरॉयड‘ के हमलों से बचाने में जुटा हुआ है। यह डार्ट यान पृथ्वी के बचाव के लिए नासा की अनूठी रक्षा प्रणाली का हिस्सा है। इसे डबल एस्टेरॉयड रिडायरेक्शन टेस्ट (DART) मिशन यानी डार्ट नाम दिया गया है। इस यान के जरिए पृथ्वी की ओर आ रहे एस्टेरॉयड की दिशा मोड़ने या उन्हें तोड़कर खत्म करने की तकनीक का परीक्षण किया जा रहा है। इसका नासा द्वारा सीधा प्रसारण किया गया।

डार्ट मिशन का यह यान पृथ्वी से करीब 10 माह पहले रवाना हुआ था। इसे धरती की रक्षा के लिए जानबूझकर डिमोर्फोस एस्टेरॉयड से टकराया है। 24,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से यात्रा कर रहा डार्ट आज डिमोर्फोस से टकराया।

इस परीक्षण के जरिए नासा काइनैटिक इंपेक्टर टेक्नालॉजी का परीक्षण कर रहा है। इसके आधार पर भविष्य में पृथ्वी की ओर आने वाले एस्टेरॉयड से बचाव किया जाएगा। दरअसल, ये एस्टेरॉयड धरती की संचार प्रणाली व उपग्रह आदि को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसलिए नासा लंबे समय से इस समस्या का हल निकालने की प्रौद्योगिकी तैयार कर रहा है। 

नासा के डार्ट अंतरिक्ष यान ने धरती की ओर आ रहे डिमोर्फोस एस्टेरॉयड को उसकी कक्षा व दिशा बदलने के लिए टक्कर मारी। डिमोर्फोस, डिडिमोस एस्टेरॉयड सिस्टम का एक हिस्सा है। नासा का यान इसे टक्कर मारकर दूसरी कक्षा में धकेलेगा। इस पूरे घटनाक्रम व उसके प्रभाव पर जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप और हबल टेलीस्कोप सहित तमाम कैमरो और टेलीस्कोप से यान पर नजर रखी जा रही है।

डिमोर्फोस, पृथ्वी से 96 लाख किलोमीटर दूर है। इसका नाम ग्रीक भाषा के शब्द ‘डिडिमोस‘ पर आधारित है। इसका अर्थ जुड़वां होता है। असल में यह 2500 फीट के क्षुद्रग्रह ‘डिडिमोस‘ का हिस्सा है। डिडिमोस की खोज 1996 में की गई थी। डिमोर्फोस करीब 525 फीट लंबा है और यह डिडिमोस से 1.2 किलोमीटर की दूरी पर परिक्रमा कर रहा है।

नासा के इस डार्ट मिशन में एक ही उपकरण होता है। इसका काम एस्टेरॉयड का पीछा करना, उसे निशाना बनाना और उसकी दिशा बदलना है। इस प्रक्रिया में एस्टेरॉयड खंड-खंड होकर मलबे के ढेर में बदल जाता है। हालांकि नासा के इस अहम मिशन की कामयाबी के सत्यापन में कुछ सप्ताह का वक्त लगेगा। इसके बाद ही पता चलेगा कि नासा इस मामले में कितना कामयाब रहा।