नईदिल्ली I कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर लगातार चर्चा जारी है. लंबे इंतजार के बाद इस पद के लिए मुकाबला कराया जा रहा है और इस बार यह मुकाबला तीन नेताओं के बीच है. लेकिन मल्लिकार्जुन खरगे की दावेदारी बेहद मजबूत मानी जी रही है क्योंकि उन्हें गांधी परिवार का समर्थन हासिल है. लेकिन इन सभी के बीच आज हम एक ऐसी विदेशी महिला के बारे में बात करने जा रहे हैं, जो कभी कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष रही थीं. उन्होंने इस पद पर रहते हुए देश की आजादी के साथ- साथ सामाजिक उत्थान के लिए भी अनेकों कार्य किए. उनके देश की आजादी में योगदान के लिए आज भी याद किया जाता है.
दरअसल, हम बात कर रहे हैं आयरिश मूल की महिला एनी बेसेंट के बारे में, जिनकी आज जयंती (175वीं) है. एनी बेसेंट का जन्म भले ही यूरोप में हुआ हो, लेकिन उन्होंने अपने राजनीतिक और सामाजिक कार्यों से कांग्रेस ही नहीं बल्कि पूरे भारत का दिल जीत लिया. लोग उनके द्वारा किए गए कार्यों के कारण आज भी उन्हें याद करते हैं.
लंदन के मध्यवर्गीय परिवार में जन्म
एनी बेसेंट का जन्म 1 अक्टूबर 1847 में लंदन के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था. वह आयरिश मूल की महिला थीं. जब वह पांच साल की थीं तो उनके पिता इस दुनिया से चस बसे. ऐसे में परिवार के पालन-पोषण के लिए एनी की मां ने हैरो में लड़कों के लिए एक छात्रावास खोला. कहा जाता है कि एनी बेसेंट ने बहुत ही कम उम्र में पूरे यूरोप का भ्रमण कर लिया था. इससे उन्हें विभिन्न देशों की संस्कृति और सामाजिक परिस्थितियों के बारे में गहरी जानकारी हुई. ऐसे में समाज और लोगों के प्रति उनका दृष्टिकोण भी बदल गया. 1867 में फ्रैंक बेसेंट नामक एक पादरी से एनी बेसेंट की शादी हो गई. लेकिन उनकी यह शादी ज्यादा समय तक नहीं चल सकी. वे 1873 में क़ानूनी तौर पे अपने पति से अलग हो गए. हालांकि, दंपति जीवन के दौरान एनी को दो संतानों की प्राप्ति हुईं.
अंधविश्वास का किया विरोध
कहा जाता है कि धार्मिक मान्यताओं को लेकर ऐनी का उनके पति से मतभेद हुआ था. यही वजह है कि उन्हें फ्रैंक बेसेंट से शादी तोड़नी पड़ी. खास बात यह है कि तलाक लेने के बाद एनी ने लंबे समय से चली आ रही धार्मिक मान्यताओं और परम्पराओं के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी. उन्होंने चर्च पर हमला करते हुए उसके काम करने के तरीकों और लोगों की जिंदगियों को बस में करने के बारे में लिखना शुरू कर दिया. उन्होंने विशेष रूप से धर्म के नाम पर अंधविश्वास फैलाने के लिए इंग्लैंड के एक चर्च पर तीखे हमले किए.
थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्य के रूप में पहुंचीं भारत
एनी बेसेंट एक प्रसिद्ध राजनीतिक कार्यकर्ता, स्वतंत्रता सेनानी और चर्च विरोधी आंदोलन की चैंपियन थीं. उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए बहुत काम किया था. वह भगवान से जुड़ने के थिओसोफी के तरीके से काफी प्रभावित हुई थीं. थियोसोफिकल सोसाइटी जाति, रंग, वर्ग में भेदभाव के खिलाफ थी और सर्वभौमिक भाईचारे की सलाह देती थी. मानवता की ज्यादा से ज्यादा सेवा करना उसका परम उद्देश्य था. बता दें कि वह भारतीय थियोसोफिकल सोसाइटी के एक सदस्य के मदद से ही वो वर्ष 1893 में भारत पहुंची थीं. भारत आने के बाद वह हिंदू धर्म और उसके आध्यात्मिक आदर्शों के प्रति आकर्षित हुईं. फिर कुछ दिनों बाद वह ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता के लिए चल रहे संघर्ष से प्रभावित हुईं और धीरे-धीरे इसका सक्रिय हिस्सा बन गईं.
होम रूल लीग
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एनी बेसेंट का सबसे उल्लेखनीय योगदान 1916 में ‘होम रूल लीग’ की स्थापना करना था. लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के साथ बेसेंट ने ऐतिहासिक आंदोलन को आगे बढ़ाया जो दशकों तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण माध्यम बना रहा. कहा जाता है कि आयरिश होम रूल आंदोलन की तर्ज पर भारत में भी उन्होंने इस विचार को स्थापित किया. यह आंदोलन दो साल तक चला, जिसमें इंडियन होम रूल लीग की गतिविधियों ने स्वतंत्रता संग्राम को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
बेसेंट को नजरबंद किया गया
1917 में, होमरूल आंदोलन में भाग लेने के लिए बेसेंट को नजरबंद कर दिया गया था. हालांकि, उनकी गिरफ्तारी के कारण व्यापक विरोध हुआ और बाद में उन्हें छोड़ दिया गया. कारावास में रहते हुए, वह अवज्ञाकारी रहीं और उन्होंने हरा और लाल झंडा फहराया जो होमरूल आंदोलन का प्रतीक था. सन 1917 में वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनी थीं. इस पद को ग्रहण करने वाली वह प्रथम महिला थीं. उन्होंने ‘न्यू इंडिया’ नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया, जिसमें ब्रिटिश शासन की आलोचना की और इस विद्रोह के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा. महात्मा गांधी के भारतीय राष्ट्रीय मंच पर आने के बाद एनी बेसेंट का उनसे मतभेद हो गया. इस वजह से वह धीरे-धीरे राजनीति से अलग हो गईं. 20 सितम्बर 1933 को अड्यार (मद्रास) में एनी बेसेंट का निधन हो गया.