नई दिल्ली । गिरफ्तारी से पूर्व जमानत की मांग करने वाली याचिकाएं कोई धन वसूली कार्यवाही नहीं हैं और इस तरह की राहत के लिए आरोपी पर पीड़ित को अंतरिम क्षतिपूर्ति के रूप में भुगतान करने की शर्त थोपना न्यायोचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी पत्नी से अलग हुए पति और उसके परिवार के सदस्यों की ओर से दायर अग्रिम जमानत की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की।
झारखंड हाई कोर्ट के आदेश को किया संशोधित
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ ने झारखंड हाई कोर्ट के उस आदेश को संशोधित किया जिसके तहत उसने तीन लोगों को 25-25 हजार रुपये के बांड भरने के अलावा वैवाहिक मामला दर्ज कराने वाली महिला को अंतरिम मुआवजे के रूप में साढ़ सात लाख रुपये जमा करने पर अग्रिम जमानत दी थी।
साढ़े सात लाख रुपये जमा कराने की नहीं दी जा सकती अनुमति
सुप्रीम कोर्ट ने 29 सितंबर के आदेश में कहा कि गिरफ्तारी पूर्व जमानत के रूप में राहत की मांग करना धन वसूली की कार्यवाही नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि गिरफ्तारी से पहले जमानत देने के लिए उस व्यक्ति को भुगतान के लिए कहना न्यायोचित नहीं जिसे गिरफ्तार किये जाने की संभावना है। पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी पूर्व जमानत की राहत देने के उद्देश्य से साढ़े सात लाख रुपये जमा कराने की शर्त को अनुमति नहीं दी जा सकती।