नईदिल्ली I राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि अब हमें ‘वर्ण‘ और ‘जाति‘ जैसी अवधारणाओं को पूरी तरह से त्याग देना चाहिए. एक किताब के विमोचन के वक्त उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जाति व्यवस्था की वर्तमान में कोई प्रासंगिकता नहीं है. भागवत एक कार्यक्रम में डॉ मदन कुलकर्णी और डॉ रेणुका बोकारे द्वारा लिखित पुस्तक वज्रसूची तुंक के विमोचन में शिरकत कर रहे थे. इस किताब का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, सामाजिक समानता भारतीय परंपरा का हिस्सा थी जिसे पूरी तरह से भुला दिया गया है. इस वजह से आज की स्थिति बनी है जिसके परिणाम बहुत हानिकारक हैं.
भागवत ने कहा कि वर्ण और जाति व्यवस्था का मूल रूप भेदभाव नहीं था, बल्कि इसके उपयोग थे. हालांकि आज इन व्यवस्थाओं की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि आज कोई अगर इन संस्थानों के बारे में पूछे तो जवाब होना चाहिए कि ‘यह अतीत है, इसे भूल जाओ.’ इस दौरान उन्होंने इस व्यवस्था को खत्म करने पर जोर दिया. उन्होंने कहा, ‘जो कुछ भी भेदभाव का कारण बनता है उसे खत्म कर देना चाहिए.’
जनसंख्या असंतुल पर भागवत का बयान
इससे पहले भागवत ने बुधवार को कहा था कि भारत को सभी सामाजिक समूहों पर समान रूप से लागू एक सुविचारित, व्यापक जनसंख्या नियंत्रण नीति तैयार करनी चाहिए. साथ ही उन्होंने जनसांख्यिकीय ‘असंतुलन’ के मुद्दे को उठाया और कहा कि जनसंख्या असंतुलन से भौगोलिक सीमाओं में परिवर्तन होता है. उन्होंने कहा कि समुदाय आधारित ‘जनसंख्या असंतुलन’ एक महत्वपूर्ण विषय है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि जनसंख्या असंतुलन से भौगोलिक सीमाओं में परिवर्तन होता है.
भागवत ने कहा, ‘पचहत्तर साल पहले, हमने अपने देश में इसका अनुभव किया. 21 वीं सदी में, तीन नए देश जो अस्तित्व में आए हैं – पूर्वी तिमोर, दक्षिण सूडान और कोसोवो – वे इंडोनेशिया, सूडान और सर्बिया के कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या असंतुलन के परिणाम हैं.
उन्होंने कहा कि संतुलन बनाने के लिए नई जनसंख्या नीति सभी समुदायों पर समान रूप से लागू होनी चाहिए. उन्होंने कहा, ‘इस देश में समुदायों के बीच संतुलन बनाना होगा.’ उन्होंने कहा, ‘जन्म दर में अंतर के साथ-साथ लालच देकर या बलपूर्वक धर्मांतरण,और घुसपैठ भी बड़े कारण हैं. इन सभी कारकों पर विचार करना होगा.’