रांची I झारखंड में सरकार की उदासीनता और स्वास्थ्य विभाग की मनमानी की एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जो पूरे सरकारी सिस्टम की पोल खोलने के लिए काफी है. इस तस्वीर में एक परिवार के लोगों को अस्पताल से पोस्टमार्टम हाउस तक शव ले जाने के लिए भी एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं हो पायी. मजबूरी में परिवार के लोगों ने खुद ही कभी कंधे पर तो कभी रिक्शे में रखकर पोस्टमार्टम हाउस पहुंचाया. यह तस्वीर सोशल मीडिया में जब वायरल हुई तो अधिकारियों की नींद खुली है. अब अधिकारी मामले की जांच कराने का दावा कर रहे हैं.
मामला गरमाते देख उन पुलिसकर्मियों पर दोष मढ़ने का प्रयास किया जा रहा है, जिन्होंने परिवार को शव पोस्टमार्टम हाउस ले जाने के लिए कहा था. दरअसल ये पूरा मामला झारखंड के गुमला जिले का है. यहां सदर थाना क्षेत्र के कुंबाटोली गांव में रहने वाली 60 साल की वृद्ध महिला लीलो देवी को इलाज के लिए गुमला सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां उनकी मौत हो गई. बताया जा रहा है कि लीलो देवी की हालत मारपीट की घटना के बाद खराब हुई थी.
ऐसे में पुलिस ने उनकी मौत के बाद शव का पोस्टमार्टम कराने के लिए कहा. अस्पताल से शव पोस्टमार्टम हाउस तक पहुंचाने की जिम्मेदारी परिजनों पर डाल दी गई. साथ में यह भी निर्देश दिया गया कि जल्दी पहुंचो. पुलिस के इस आदेश के आगे लाचार और बेबस परिजनों ने काफी देर तक एंबुलेंस का इंतजार किया, लेकिन जब एंबुलेंस नहीं मिली तो खुद कंधे पर लेकर अस्पताल से निकले और फिर रिक्शे पर लादकर 4 किलोमीटर दूर पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे.
पहले भी सामने आ चुकी हैं इस तरह की घटनाएं
इस तरह की यह कोई पहली घटना नहीं है. इससे पहले भी इसी तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं. हाल ही में साहिबगंज जिले में एक मरीज को एंबुलेंस नहीं मिलने की दशा में परिजनों ने खाट पर ही लेटाकर करीब 12 किमी दूर अस्पताल पहुंचाया था. उस समय भी तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हुई थी. सरकार ने जांच के भी आदेश दिए थे, लेकिन अब तक उस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है. अब यह नया मामला सामने आ गया है.
बड़ा सवाल, आखिर क्यों नहीं मिल रही एंबुलेंस
इस घटना को लेकर झारखंड के लोगों में अब सवाल उठने लगा है. लोग अब पूछने लगे हैं कि आखिर जरूरतमंदों को एंबुलेंस क्यों नहीं मिल रही. आखिर सभी सरकारी एंबुलेंस कहां हैं, इनका संचालन कैसे हो रहा है. यह सभी सवाल सोशल मीडिया के जरिए सरकार से लोग पूछ तो रहे हैं, लेकिन अभी तक सरकार की ओर से या स्वास्थ्य विभाग की ओर से इन सवालों का जवाब देने की कोशिश नहीं हुई है.