नई दिल्ली । तलाक-ए-किनाया और तलाक-ए-बैन समेत मुस्लिमों में सभी तरह के एकतरफा और गैर-न्यायिक तलाक को अमान्य और असंवैधानिक घोषित करने की मांग संबंधी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार और अन्य से जवाब तलब किया। जस्टिस एसए नजीर और जस्टिस जेबी पार्डीवाला की पीठ ने कानून एवं न्याय मंत्रालय, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और अन्य को नोटिस जारी किए।
दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देने की मांग
शीर्ष अदालत कर्नाटक निवासी सईदा अंबरीन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उक्त प्रकार के तलाक को मनमाना और विवेकहीन के अलावा समानता, भेदभाव से मुक्ति, जीवन व धर्म पालन के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध बताया गया है। याचिकाकर्ता ने केंद्र को तलाक के लैगिक एवं धार्मिक असमानता से मुक्त आधार और सभी नागरिकों के लिए तलाक की समान प्रक्रिया के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के निर्देश देने की मांग की है।
याचिका में यह दी गई दलील
याचिका में कहा गया है कि एकतरफा व गैर-न्यायिक तलाक सती के समान एक कुप्रथा है जो लगातार मुस्लिम महिलाओं को परेशान कर रही है और बेहद गंभीर स्वास्थ्य, सामाजिक, आर्थिक, नैतिक व भावनात्मक जोखिम की स्थिति पैदा करती है। इमाम मौलवी, काजी आदि धार्मिक अधिकारी जो तलाक-ए-किनाया, तलाक-ए-बैन और एकतरफा गैर-न्यायिक तलाक के अन्य रूपों का प्रचार व समर्थन करते हैं, वे मुस्लिम महिलाओं को इन प्रथाओं के अधीन रखने के लिए अपनी स्थिति, प्रभाव और शक्ति का घोर दुरुपयोग कर रहे हैं।
यह है मामला
याचिकाकर्ता ने कहा कि जनवरी, 2022 में उन्हें काजी कार्यालय से पहले से भरा हुआ एक पत्र प्राप्त हुआ था जिसमें अस्पष्ट आरोप लगाए गए थे। उनके पति की ओर से कहा गया कि इन शर्तों के चलते इस रिश्ते को जारी रखना संभव नहीं है और वैवाहिक संबंधों से उन्हें मुक्त कर दिया गया है। बता दें कि तलाक-ए-किनाया/तलाक-ए-बैन को एक ही बैठक में या तो उच्चारित या लिखित या इलेक्ट्रानिक रूप में दिया जाता है। यह एक तात्कालिक, अपरिवर्तनीय और गैर-न्यायिक तलाक है।