नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समन जारी करना महज औपचारिकता भर नहीं है और मजिस्ट्रेट को आरोपित के खिलाफ कार्यवाही के लिए पर्याप्त आधार होने का पता लगाने में अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार ने एक दवा कंपनी के निदेशकों के खिलाफ जारी समन को खारिज करते हुए उक्त टिप्पणी की। पीठ ने कहा, ‘आरोपित के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला होने के निष्कर्ष तक पहुंचने का यदि कोई कारण नहीं बताया जाता है तो आदेश निरस्त किए जाने योग्य है। नि:संदेह, आदेश में विस्तृत कारणों का उल्लेख किए जाने की जरूरत नहीं है।’
पीठ ने कहा कि महज इसलिए कि एक व्यक्ति कंपनी का निदेशक है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह ‘औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम,1940 के तहत आवश्यकताओं को पूरा करता है, ताकि उसे जिम्मेदार ठहराया जा सके। अदालत ने कहा, ‘एक व्यक्ति को तब तक जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि वह खास समय में प्रभारी न हो और कंपनी के कामकाज के संचालन के लिए जिम्मेदार भी न हो।’ पीठ ने कहा, महज इसलिए कि एक व्यक्ति कंपनी का निदेशक है, यह जरूरी नहीं कि वह कंपनी के दिन-प्रतिदिन के कामकाज के बारे में जानता हो।